विद्यालय और महाविद्यालय केवल शिक्षा के केंद्र नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ी के स्वास्थ्य और भविष्य को गढ़ने वाले स्थान भी हैं। लेकिन भारत में शिक्षण संस्थानों के भीतर और बाहर अनियंत्रित रूप से खुल रही कैंटीनें मुनाफे की आग में सेहत को झोंक रही हैं। हर शिक्षण संस्थान में बिकते तले-भुने फास्टफूड, कोल्ड ड्रिंक्स और प्रोसेस्ड स्नैक्स छात्र छात्राओं को बीमारियों की ओर धकेल रहे हैं। हाल में मेक्सिको ने अपने स्कूलों में जंक फूड पर प्रतिबंध लगाकर बच्चों की सेहत को प्राथमिकता दी, लेकिन भारत में अब भी व्यावसायिक लाभ छात्रहित पर हावी है। आलेख के जरिए यह पूछना सामयिक है कि क्या प्रशासनिक तंत्र जागेगा और भारत के स्वस्थ भविष्य के लिए कोई ठोस कदम उठाएगा?
समय आ गया है कि भारत के शिक्षण संस्थानों में अब ज्ञान के साथ सेहत भी संजोई जाए!
मेक्सिको सरकार ने देश में बढ़ते मोटापे और डायबिटीज़ के संकट से निपटने के लिए सख्त कदम उठाए हैं। वहां के स्कूलों में अब किसी भी तरह के जंक फूड की बिक्री प्रतिबंधित कर दी गई है और स्वस्थ भोजन को बढ़ावा देने के उपाय किए गए हैं। भारत जैसे देश, जहां किशोरों में मोटापे की दर तेजी से बढ़ रही है, के लिए यह एक महत्वपूर्ण सबक है।
आखिर शिक्षण संस्थाओं में क्यों खुलती हैं कैंटीन?
भारत के स्कूलों और कॉलेजों के कैंपस के अंदर और बाहर कैंटीनों की संख्या लगातार बढ़ रही है। कई शिक्षण संस्थान इन कैंटीनों को संचालित करने के लिए निजी कंपनियों को ठेका देते हैं, जिससे वे अतिरिक्त आय अर्जित कर सकते हैं। कैंटीन खोलने के पीछे मुख्य उद्देश्य छात्रों को सुविधा देना बताया जाता है, लेकिन यह सुविधा कब स्वास्थ्य पर भारी पड़ जाती है, इसका ध्यान नहीं रखा जाता। आर्थिक दृष्टि से, कैंटीन संस्थानों और ऑपरेटरों के लिए फायदेमंद होती हैं, लेकिन छात्रों के स्वास्थ्य की कीमत पर यह लाभ उठाया जाना चिंताजनक है।
भारत में 1.25 करोड़ बच्चे मोटापे की चपेट में हैं, और यह संख्या 2030 तक 2.7 करोड़ तक पहुंचने की आशंका है। मेक्सिको के उदाहरण से स्पष्ट होता है कि जंक फूड पर पाबंदी लगाने से बच्चों की सेहत में सुधार लाया जा सकता है। भारत को भी इसी दिशा में कदम उठाने की जरूरत है, लेकिन हमारे यहां प्रशासनिक इच्छाशक्ति की कमी और शिक्षण संस्थान और फास्ट फूड उद्योग चला रहे उद्योगपतियों के दबाव के चलते कोई ठोस नीति बनती नहीं दिखती।
बड़ी खाद्य कंपनियों का प्रभाव भारतीय बाजार में इस कदर हावी है कि शिक्षा मंत्रालय भी इनके खिलाफ कोई कठोर कदम उठाने से बचता है। कैंटीनों में हेल्दी फूड अनिवार्य करने की नीति यदि लागू भी होती है, तो उसका पालन सुनिश्चित करवाने की प्रशासनिक क्षमता पर गंभीर प्रश्नचिह्न हैं। कई शिक्षण संस्थान खुद इन कैंटीनों से व्यवसायिक लाभ उठाते हैं, जिससे छात्रहित गौण हो जाता है। इसके अलावा, प्रशासन की अनदेखी और भ्रष्टाचार के कारण इन कैंटीनों में तय मानकों का पालन नहीं किया जाता, जिससे स्थिति और भी गंभीर हो जाती है।
विद्यालय केवल शैक्षणिक ज्ञान देने का स्थान नहीं होते, बल्कि वहां बच्चों की शारीरिक और मानसिक विकास की भी जिम्मेदारी होती है। ‘स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है’ – यह शिक्षा जगत का मूलभूत सिद्धांत है, जिसे व्यवहार में लाना आवश्यक है। मेक्सिको की तरह यदि भारत में भी जंक फूड पर पाबंदी लगाई जाए और पौष्टिक भोजन के लिए विशेष नीति बनाई जाए, तो निश्चित रूप से बच्चों की सेहत में सकारात्मक बदलाव आ सकता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में देशवासियों से भोजन में तेल की खपत को 10% तक कम करने का आह्वान किया, जो एक महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य पहल है। यह आह्वान बताता है कि सरकार अब लोगों की खान-पान की आदतों और उससे जुड़ी बीमारियों को लेकर अधिक सतर्क हो रही है। ऐसे में प्रशासनिक मशीनरी से यह अपेक्षा की जानी चाहिए कि वह सिर्फ आह्वानों तक सीमित न रहकर ठोस नीतियों पर भी कार्य करे। स्कूलों और कॉलेजों में जंक फूड और अत्यधिक तले-भुने खाद्य पदार्थों की उपलब्धता को नियंत्रित करना इसी दिशा में एक बड़ा कदम हो सकता है। यदि सरकार स्वास्थ्य सुधार के अपने संकल्प को गंभीरता से ले रही है, तो शिक्षण संस्थानों में भी हेल्दी फूड नीति को सख्ती से लागू करने की पहल करनी होगी।
भारत के शिक्षा संस्थानों को अब व्यवसायिक लाभ के बजाय छात्रहित को प्राथमिकता देनी होगी। सरकार को न केवल कैंटीनों में जंक फूड पर प्रतिबंध लगाना चाहिए, बल्कि स्कूल-कॉलेजों में हेल्दी फूड की व्यवस्था सुनिश्चित करनी चाहिए। साथ ही, शिक्षकों और अभिभावकों को भी इस दिशा में जागरूक किया जाना आवश्यक है। प्रशासन को भी इस मामले में अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी और नियमों का कड़ाई से पालन करवाना होगा। मेक्सिको ने जो कदम उठाए हैं, वे भारत के लिए एक मिसाल हैं और अब समय आ गया है कि हम भी अपने बच्चों के स्वास्थ्य को सर्वोपरि मानते हुए ठोस निर्णय लें।
✍️ लेखक : प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर
परिचय
बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।
शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।
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