लक्ष्य पर निगाह, संसाधन और शिक्षकों की संख्या से हटा ध्यान, बेसिक शिक्षा विभाग के तौर तरीकों पर उठ रहे सवाल
 
हेडमास्टर और शिक्षकों के वेतन रोके जाने की मानो होड़ सी लगी, असल सवाल पर जिम्मेदारों की चुप्पी



बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा नामांकन लक्ष्य को हासिल करने की कवायद को लेकर कई तरह के सवाल भी खड़े हो रहे हैं। लोगों का कहना है कि विभाग भले ही बीते सत्र के मुकाबले बीस फीसदी अधिक नामांकन चाहता है लेकिन उसे यह भी देखना पड़ेगा कि क्या बच्चों के बैठने के लिए कमरों व उन्हें पढ़ाने के लिए आरटीई के अनुपात में शिक्षकों की भी उपलब्धता है या नहीं। सिर्फ नामांकन कर देने से ही गुणवत्ता युक्त शिक्षा के उद्देश्य पूरे नहीं होंगे।

ब्लाक एवं विद्यालय वार तय लक्ष्य को लेकर इन दिनों बेसिक शिक्षा विभाग में अफरातफरी जैसी स्थिति है। शासन से लेकर बीएसए जहां हर हाल में नामांकन लक्ष्य को पूरा करना चाहते हैं तो वहीं नाम न छापने पर कई शिक्षकों व जागरूक अभिभावक इस पर सवाल उठा रहे हैं। 


लोगों का कहना है कि विभाग को यह भी देखना चाहिए कि क्या नामाकन लक्ष्य हासिल होने पर विद्यालय में बच्चों के बैठने की जगह है या नहीं, क्या संख्या के अनुसार विद्यालय में पर्याप्त भौतिक सुविधाएं एवं संसाधन हैं या नहीं। शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के अनुसार क्या छात्र शिक्षक अनुपात है या नहीं, इस तरह के कई सवाल लोगों के जेहन में मंडरा रहे हैं। जागरूक अभिभावक कहते हैं कि सिर्फ बच्चों को ही इकह्वा करके विभाग क्या हासिल कर लेगा जब तक कि उनके लिए विद्यालय में शिक्षक व संसाधन नहीं होंगे।


 
पूरे प्रदेश में नामांकन लक्ष्य पूर्ण न होने पर बीएसए द्वारा खंड शिक्षा अधिकारियों  से लेकर हेडमास्टर और शिक्षकों के वेतन रोके जाने की मानो होड़ सी लगी हुई है। हर दिन हर जिले से वेतन रोकने के बेतुके आदेशों की झड़ी लगी हुई है।


 बीते सत्र के नामांकन की तुलना में इस बार करीब बीस प्रतिशत अधिक नामांकन का लक्ष्य रखा गया था। विकास खंड नामांकन लक्ष्य तय होने पर खंड शिक्षा अधिकारियों ने भी अपने ब्लॉकों में बीते सत्र की छात्र संख्या के आधार पर बीस फीसदी अधिक नामांकन का लक्ष्य रखा था। इस बीच ग्रामीण इलाकों में गेहूं कटाई व महुआ बिनाई का काम हो रहा था। जिसके चलते अपेक्षित संख्या में अभिभावकों ने अपने पाल्यों का नामांकन नहीं कराया था। उधर शिक्षकों के सामने सबसे बड़ी चुनौती कक्षा पांच व आठ के छात्रों की भरपाई थी। शिक्षक पहले पिछले सत्र की बराबरी पर ध्यान लगा रहे थे।


एक माह का समय भी नहीं बीता: विभाग नामांकन लक्ष्य पूर्ण करने को लेकर कितनी जल्दबाजी में है, इसकी बानगी इसी से मिलती है कि लक्ष्य दिए हुए अभी एक माह भी पूरा नहीं हुआ और शिक्षकों, हेडमास्टरों व खंड शिक्षा अधिकारियों के वेतन पर रोक लगा दी गई है। विभाग की इस कार्रवाई से शिक्षकों में अंदरखाने काफी रोष है।



फिर क्यों दे रहे दनादन प्राइवेट स्कूलों को मान्यता

सूत्र बताते हैं कि जब बेसिक शिक्षा विभाग अधिसंख्य बच्चों को अपने यहां पढ़ाना चाहता है तो फिर प्राइवेट स्कूलों को लगातार मान्यता क्यों दी जा रही है। सीमित जनसंख्या बढ़ोत्तरी के दौर में जब प्राइवेट स्कूलों को लगातार मान्यता दी जा जाएगी तो फिर परिषदीय स्कूलों में बच्चे कहां से आएंगे। यदि प्राइवेट स्कूलों को विभाग ही मान्यता दे रहा है तो फिर उन्हें प्रतिस्पर्धी के तौर पर क्यों देखा जा रहा है। सूत्र बताते हैं कि इस तरह प्राइवेट स्कूल भी एक प्रकार से विभाग के ही अंग हैं।


आरटीई के तहत निजी स्कूलों में प्रवेश के रिकार्ड 

उधर आरटीई के तहत रिकार्ड प्रवेश पर भी सवाल उठ रहे कि एक तरफ सरकार निजी स्कूलों में  रिकार्ड प्रवेश पर अपनी पीठ ठोंक रही है वहीं परिषदीय विद्यालयों में छात्रों के प्रवेश का मनमाना दबाव बनाया जा रहा है। 


✍️ लेखक : अमित कुमार मिश्र

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