सब बच्चों को मिले व्यावसायिक शिक्षा


स्कूल के पाठ्यक्रमों में व्यावसायिक शिक्षा को शामिल करने पर जोर दिया जा रहा है, क्योंकि ज्यादातर बच्चों के लिए स्कूल पूरा करने के बाद लाभकारी काम मायने रखता है।




भारत के स्कूली पाठ्यक्रमों में व्यावसायिक शिक्षा (वीई) को शामिल करने की वकालत 'स्कूली शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यक्रम ढांचा, 2023 (एनसीएफ) करता है। क्यों? क्योंकि, ज्यादातर बच्चों के लिए स्कूल पूरा करने के बाद लाभकारी काम मायने रखता है। इतना ही नहीं, जिन जरूरतमंदों को स्कूल के तुरंत बाद काम करने की जरूरत नहीं है, वे भी ऐसी शिक्षा से हासिल ज्ञान से बेहतर भविष्य की बुनियाद तैयार कर सकेंगे।


 इस राह में एनसीएफ को तीन चुनौतियां से निपटना होगा। पहली, व्यावहारिक रूप से यह कैसे संभव हो सकेगा ? दूसरी, मुख्यधारा की शिक्षा में सफल नहीं हो सकने वाले बच्चों के लिए व्यावसायिक शिक्षा को लेकर सामाजिक दृष्टिकोण किस तरह बनाया जाएगा ? और तीसरी, व्यावसायिक शिक्षा के प्रति भारतीय शिक्षा में मौजूद 'दार्शनिक पूर्वाग्रह' से कैसे निपटा जाएगा? एनसीएफ द्वारा इनसे पार पाने की बात कही गई है, पर यहां 'दार्शनिक पूर्वाग्रह' को समझना कहीं अधिक जरूरी है, क्योंकि इस पर बहुत कम चर्चा होती है।


दरअसल, स्कूली शिक्षा में बौद्धिकता की वकालत करने वाले नीति-नियंता यही मानते रहे हैं कि स्कूलों का लक्ष्य अच्छे इंसानों का विकास करना होना चाहिए, साथ ही उसे एक न्यायपूर्ण और मानवीय स्वभाव वाले समाज व एक जीवंत लोकतंत्र विकसित करना चाहिए। इस मत में निहित अंतर्विरोधों के बावजूद शिक्षा के आर्थिक लक्ष्य को, यानी छात्रों को व्यवसाय के लिए तैयार करना, प्राथमिकता से हटा दिया गया है। धारणा यह रही है कि अन्य सभी शिक्षाएं वैसे भी छात्रों को नौकरियों के लिए ही तैयार करती हैं; कि व्यावसायिक शिक्षा के माध्यम से बाजार शिक्षा पर नियंत्रण कर लेता है; कि कई परोक्ष, तो कुछ प्रत्यक्ष रूप से व्यावसायिक शिक्षा के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं होते।


तो, सवाल यह है कि एनसीएफ आखिर कैसे व्यावसायिक शिक्षा को आगे बढ़ाएगा? असल में, सभी छात्र स्कूली शिक्षा की शुरुआत से ही व्यावसायिक शिक्षा लेने लगेंगे। बुनियादी और प्रारंभिक चरणों में (कक्षा 5 तक) खेल व अन्य गतिविधियों के माध्यम से उम्र के अनुकूल ऐसी क्षमताएं पैदा की जाएंगी, जो काम के आधार होंगे। जैसे- किसी उपकरण पर सुरक्षित नियंत्रण बनाना या किसी काम को पूरा करने के लिए एकाग्र होना आदि। मध्य चरणों में, यानी कक्षा छह से आठ तक, सभी छात्रों को व्यवसायों की एक विस्तृत श्रृंखला से परिचय कराया जाएगा और प्रोजेक्ट के माध्यम से कई प्रकार के कामों की नींव तैयार की जाएगी। 


कक्षा नौ और दस में, सभी छात्र-छात्राओं को कुछ खास व्यवसाय सीखने होंगे। उल्लेखनीय है कि कक्षा छह से लेकर दस तक व्यावसायिक शिक्षा का महत्व गणित या विज्ञान की तरह ही होगा। इसे समय- सारणी में शामिल किया जाएगा और बच्चों का उचित मूल्यांकन भी होगा। दसवीं की बोर्ड परीक्षा में भी इसे शामिल किया जाएगा। 11वीं और 12वीं कक्षा में छात्र किसी एक या दो व्यवसायों में विशेषज्ञता ले भी सकता है और नहीं भी। 


प्रभावी व्यावसायिक शिक्षा के लिए जरूरी है कि भाषा, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, गणित जैसे अन्य विषयों में भी असरकारी शिक्षा मिले। व्यावसायिक क्षमताओं को उन तमाम कौशल, ज्ञान और मूल्यों के साथ जोड़ना होगा, जो स्कूली शिक्षा विकसित करते हैं। जैसे- क्रिटिकल थिंकिंग, संचार और सीखने- सिखाने की क्षमताएं। ये सभी व्यवसाय की दुनिया में समान रूप से महत्वपूर्ण हैं।


एनसीएफ दो जरूरतों को संतुलित करता है। बेशक, यह इसे निर्धारित नहीं कर सकता कि किस स्कूल में कौन से खास व्यवसाय की शिक्षा मिलनी चाहिए, क्योंकि व्यवसाय के तमाम रूप हैं, लेकिन इसे सभी छात्र-छात्राओं के लिए समान ढांचा मुहैया कराना होगा, जिसके लिए व्यवसायों का वर्गीकरण किया जा सकता है। इसमें ऐसे व्यवसाय एक साथ रखने होंगे, जिनमें बुनियादी रूप से समान तत्व हों और समान क्षमता व ज्ञान की आवश्यकता होती हो। इसमें तीन श्रेणियां हैं- पौधों, जीव व जंतु जैसे सजीवों से जुड़ा काम, सामग्री व मशीनों के साथ काम और मानव सेवा प्रदान करने का काम छात्र-छात्राओं की आकांक्षाओं, स्थानीय प्रासंगिकता और अवसरों की हकीकत (नए और उभरत व्यवसाय) को ध्यान में रखकर उनके लिए उचित व्यवसाय का चयन किया जाना चाहिए।


व्यावसायिक शिक्षा को लेकर एनसीएफ कुछ महत्वपूर्ण विचारों को भी स्वीकार करता है। व्यवसायों के लिए न सिर्फ उचित क्षमताओं की जरूरत होती है, बल्कि मूल्यों और ज्ञान की भी दरकार होती है, जो तमाम व्यावसायिक शिक्षा विकसित करते हैं। इसे कौशल प्रशिक्षण के साथ नहीं जोड़ा जाना चाहिए। वास्तव में, क्षमताएं व्यापक, गहरी और जटिल मानवीय योग्यताओं को समेटे होती हैं, जिनमें कई कौशल शामिल हो सकते हैं। मसलन, फसलों की उचित सिंचाई एक ऐसी क्षमता है, जिसके लिए ढलानों को समझने, खाई बनाने और यह जानने का कौशल होना चाहिए कि कितना व कब पानी देना है।


जाहिर है, सभी छात्र-छात्राओं को प्राथमिक क्षेत्र से लेकर तमाम सेवाओं तक व्यवसायों की पूरी श्रृंखला से अवगत कराया जाना होगा, ताकि भविष्य के व्यवसाय- विकल्पों के लिए आधार तैयार होने के साथ-साथ सभी प्रकार के कार्यों के लिए सम्मान की भावना पैदा हो। व्यावसायिक शिक्षा के छात्र-छात्राओं को यह सिखाना होगा कि अपने हाथों से कैसे काम करें और इसे पर्याप्त महत्व देना सीखें।


हमारे लाखों बच्चे पहले से ही अपने घरों व समाज में किसी न किसी काम में लगे हुए हैं। जीवन के ऐसे अनुभव अमूल्य होते हैं और इनको एक संसाधन के रूप में उपयोग किया जा सकता है। मौजूदा सामाजिक विषमताओं का समाधान निकालना होगा। स्कूलों को विशिष्ट समुदायों या लैंगिक आधार पर व्यवसाय की पहचान करने से बचना होगा। शिक्षा को असमानता नहीं, समानता लाने का माध्यम बनना चाहिए।


हमारे स्कूलों को वास्तविकता पहचानकर, स्कूल व आसपास उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करके ही व्यावसायिक शिक्षा लागू करनी होगी। इसमें अन्य विषयों के शिक्षकों को प्रशिक्षित करना भी शामिल है। अच्छी स्कूली शिक्षा से अच्छे इंसान और अच्छे समाज का विकास होता है। आर्थिक खुशहाली इसी का एक अभिन्न अंग है। एनसीएफ इसी वास्तविकता को स्कूलों में उचित स्थान देता है।


(ये लेखक के अपने विचार हैं)

✍️ लेखक : अनुराग बेहर
सीईओ, अजीम प्रेमजी फाउंडेशन


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