शिक्षक की आवाज सुनी जानी जरूरी है


आज जबकी देश को आजाद हुए 70 वर्ष से ज्यादा हो चुके हैं, यह समय बहुत ज्यादा नहीं तो काम भी नहीं है भारतीय समाज में  विविधताओं का समावेश है, जिसे समझने के लिए एक अंतर्दृष्टि की आवश्यकता है, इसके लिए शैक्षिक परिदृश्य का अवलोकन करना जरूरी होता है। 

बौद्धिक वैदिक काल से ही हमारी सभ्यता का शैक्षिक स्तर समृद्ध रहा है, शिक्षा के संदर्भ में उसके स्तंभों में से एक महत्वपूर्ण शिक्षक के गुण और उसके व्यवहार ,शिक्षण विधि उसके प्रभाव तथा कार्यों की विस्तृत व्याख्या की गई है। यह औपचारिक शिक्षा प्रणाली का कल था ,बाद में उपनिवेशवादी शिक्षा के दौर में गुणात्मक से यह परिणात्मक हो गया। अग्रिम समय में समय-समय पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति, आयोग का गठन  मे शिक्षा और शिक्षक प्रणाली में बदलाव के साथ-साथ आधुनिक शिक्षा पर जोर दिया गया । 

इस क्रम में 2002 में निशुल्क व अनिवार्य शिक्षा को मौलिक अधिकार अनुच्छेद 21 ए में सम्मिलित करके इसे व्यापक रूप में अंतिम स्तर तक पहुंचाने का प्रयत्न किया गया। आज भी देश में लगभग 30% जनसंख्या अनपढ  है यह एक बहुत बड़ा शैक्षिक असंतुलन का आंकड़ा है, इस जरूरी आंकड़े के अध्ययन के फल स्वरुप और बदलते समय समाज कार्य प्रणाली के मद्देनजर  NEP 2020 में शिक्षा के संदर्भ में आमूल चूल परिवर्तन की अवधारणा समाहित की गई है । 

इस समय में साक्षर बनाने की अपेक्षा सामाजिक और मानवीय भावनात्मक कौशलों के विकास की संकल्पना की गई है जिसे 2030 तक स्कूली शिक्षा का सर्वव्यापीकरण पूर्ण हो सके ,जिस प्रकार शिक्षा एक अंतहीन प्रक्रिया है इस प्रकार शिक्षण भी एक अंतहीन प्रक्रिया है,जिसे एक शिक्षक पूरी उम्र तक सीखता रहता है । 


एक शिक्षक की भूमिका और अधिक महत्वपूर्ण तब हो जाती है जब आज की पीढ़ी जितनी कुशल व अधतन है ,उससे कहीं अधिक स्थिर और विश्वास रहित है इन्हें ही तराश कर देश के कर्णधारों के रूप में शिक्षक देश को आगे बढ़ाने के लिए तैयार करता है, करेगा, करता रहेगा । यह एक बहुत ही सामान्य सी दिखने वाले किंतु बहुत ही महीन और कुशल कारीगरी की कला का परिणाम होता है, अतः शिक्षण/ शिक्षा एक कला है। क्षोभ इस बात का है कि आज शिक्षक को पेशेवर और शिक्षा को व्यवसाय के रूप में बदल दिया गया है,जिसे मशीनीकरण की तरफ धकेला जा रहा। विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास के लिए सर्वांगीण गुनण संयुक्त शिक्षक की आवश्यकता होती है जिसके लिए शिक्षक की मानसिक स्थिति का सुदृढ़ होना अत्यंत जरूरी होता है। 


एक शिक्षक सदैव विशेष होकर भी किसी विशेष समय सामग्री स्थान के भी अपने समस्त अनुभव विज्ञान को समाज को देने के लिए तरत्पर रहता है, एक शिक्षक उपनिवेशात्मक शिक्षा प्रणाली के दुष्प्रभावों से व्यथित हैं जिस प्रकार से शिक्षा का व्यवसाय किया जा रहा है उससे शिक्षक की प्रतिष्ठा नगण्य में हो गई है, यह किसी भी कल के लिए बहुत बड़ा कुठाराघात  जैसा है, जब एक शिक्षक कम से कम संसाधनों में भी बेहतर करता है और उसे कुछ विशेष सुविधा न देकर सामाजिक जीवन की महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां के  लिए दिए जाने वाले वित्तीय संदर्भ तथा अन्य आवश्यक संवैधानिक अधिकारों से वंचित किया जा रहा हो तब यह कष्टदायक होने के साथ-साथ ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी चलाने जैसा कार्य हो सकता है। 


शिक्षा सदैव मानसिक स्थिति और मन का वरण करती है यदि एक शिक्षक को अत्यंत आवश्यक जरूरत के लिए भी वंचित रखा जाएगा तो शिक्षा  और शिक्षण कभी नहीं हो सकता है, और ऐसा करके कोई भी सरकार दिखावा मात्र ही करती है। जिस तरह से शिक्षा के संदर्भ में आज शिक्षकों को मशीन मांग कर शिक्षणेत्तर कार्यों को कराया जा रहा है तथा काम के समय तथा कार्यों का भार संतुलित नहीं है अधिकारी व सरकारी मनमानी आदेश आदेश लादकर शिक्षकों को उनके स्वयं के संसाधनों के प्रयोग के लिए विवश कर रहे हैं,किसी भी प्रकार की सुरक्षा चाहे वह जीवन स्वास्थ्य या सम्मान हो उससे पल्ला झाड़ कर ठेंगा दिखा रहे हैं तब भी अपनी जिम्मेदारी निभाते हुआ एक शिक्षक रोशनी की मसाज लिए खड़ा है । यह जानते हुए भी की जो आने वाली पीढियां में रोशनी भरने का काम कर रहा है उसके बुढ़ापे में सरकारों ने अंधेरा भर दिया है। 


आज उसे इससे भी बड़ा डर है कि कहीं सबसे महत्वपूर्ण समय में उसे 50 साल में जब सबसे ज्यादा जिम्मेदारियां का बोझ होता है जबरन उसे बाहर करके उसके पेशे से वंचित न कर दिया जाए नौकरशाही और लाल फीता शाही जैसे आदेशों में पढ़कर जान पड़ता है कि अधिकारी/ उच्च अधिकारी शिक्षकों से किस तरह से अपनी भाषा शैली की  अव्यवहारिकता से पेश आ रहे हैं, आज शिक्षक उद्वेलित एवं अंर्तदद्ध से भरा है वह स्वयं अस्थिर हो रहा है क्योंकि उसके कार्य सम्मान की अस्मिता पर अधिकारियों/ सरकारों द्वारा लगातार प्रश्न चिन्ह लगाया जा रहा है । 

यह मेरे अनुभव में आ रहा है कि आज भारतीय समाज में शिक्षक एक असंतोषपूर्ण दौर में है यह उसके पद प्रतिष्ठा व सम्मान पर कुठाराघात का ही परिणाम है, सरकारों को चाहिए की नीतियों में शिक्षकों को शामिल करें, उनके विचारों को सम्मिलित करें उनके मानसिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक हर कदम को उठाए जिससे वह समाज की आवश्यकता अपेक्षाओं को पूर्ण करने में सक्षम बन सके, यह तभी संभव है जब सरकारी/अधिकारी व समाज अपने शिक्षकों पर विश्वास करेंगे। 

विश्वास विहीन शिक्षा /शिक्षक और शिक्षण किसी भी देश /समाज और कर्णधार का निर्माण नहीं कर सकते हैं । एक शिक्षक किसी भी देश का प्रतिबिंब होता है। 

✍️ लेखक : भूपेन्द्र कुमार त्रिपाठी "प्रयागराज से नवीन"

लेखक वर्तमान मे अध्यापक के पद पर कार्यरत हैं। शिक्षा के साथ विभिन्न क्षेत्र में जैसे, प्राथमिक स्वास्थ्य, विकलांगता  व कारपोरेट सेक्टर मे कार्य करने का वृहद अनुभव रहा है। लेखन कार्य हेतु  जब जहाँ संवेदना का प्रस्फुरण होता है, लेखनी से साध लेते  हैं, जो विगत कई वर्षो से जारी है।

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