किसी विद्यार्थी की मुस्कान न छीन पाए कोई परीक्षा

अक्सर विद्यार्थी जीवन में विद्यार्थियों के चेहरे पर एक मुस्कान खिली रहती है, पर परीक्षा करीब आते ही यह मुस्कान कम होने लगती है। परीक्षा अपने साथ अक्सर लाती है तनाव, डर, अपेक्षाएं और चिंता। यह तनाव आखिर है क्या? इसका छात्र पर क्या प्रभाव पड़ता है? 


तनाव को किसी कठिन परिस्थिति के कारण होने वाले मानसिक असंतुलन के रूप में देखा जा सकता है। तनाव एक स्वाभाविक मानवीय प्रतिक्रिया है, जो हमें अपने जीवन में चुनौतियों और खतरों से निपटने के लिए प्रेरित करती है। हर व्यक्ति अपने जीवन में कुछ हद तक तनाव का अनुभव करता ही है, पर परीक्षा के समय छात्रों में होने वाला तनाव हमारे दिन-प्रतिदिन के तनाव की तुलना में बहुत गंभीर है। 


एनसीईआरटी ने जनवरी से मार्च, 2022 के बीच 3,79,842 विद्यार्थियों को लेकर एक सर्वेक्षण किया था। इसमें यह पाया गया कि हमारे विद्यालयों में कक्षा 9-12 के लगभग 80 प्रतिशत विद्यार्थी, परीक्षा और उसमें अपने प्रदर्शन को लेकर तनाव महसूस करते हैं। उन बच्चों में से अधिकांश ने यह भी बताया कि तनाव से जुड़े इन विचारों को वे अपने साथियों या अपने परिवार के सदस्यों के साथ साझा करने में असहज महसूस करते हैं। 33 प्रतिशत से अधिक विद्यार्थियों ने बताया कि वे नियमित रूप से अपने सहपाठियों के दबाव का सामना करते हैं।


जैसे-जैसे विद्यार्थी उच्चतर कक्षाओं की ओर बढ़ते हैं, उनकी व्यक्तिगत तथा विद्यालयी जीवन से संतुष्टि कम हो जाती है। रिश्तों के प्रति बढ़ती संवेदनशीलता, साथियों का दबाव, बोर्ड परीक्षा का डर तथा खुद की पहचान खोने का डर जैसी चुनौतियां बढ़ती जाती हैं। 


परीक्षा से जुड़ी परेशानियों के अनेक कारण हो सकते हैं। इसमें जीवन-शैली से जुड़े मुद्दे भी शामिल हैं, जैसे- नींद पूरी न हो पाना, कुपोषण, शारीरिक गतिविधियों की कमी आदि। इसमें कुछ मनोवैज्ञानिक कारण भी शामिल हो सकते हैं, जैसे- परीक्षा में असफल होने का डर, अच्छे अंकों के लिए परिवार का दबाव, साथियों का दबाव, नकारात्मक सोच और आत्म-आलोचना, मसलन- मैं इस काबिल नहीं हूं, मैं यह कर नहीं सकता आदि। 

हम ऐसा क्या कर सकते हैं, जिससे उन्हें इस स्थिति से न गुजरना पड़े? इस महत्वपूर्ण समस्या और इसके समाधान की ओर सबका ध्यान आकर्षित किया है- ‘परीक्षा पर चर्चा’ कार्यक्रम ने। इस कार्यक्रम की संकल्पना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा छह वर्ष पूर्व की गई थी। इस कार्यक्रम में वह विद्यार्थियों, उनके अभिभावकों और शिक्षकों से परीक्षा व जीवन से जुड़े मुद्दों पर बात करते हैं। इस कार्यक्रम का आयोजन शिक्षा मंत्रालय द्वारा किया जाता है। 


इस वर्ष ‘परीक्षा पर चर्चा’ कार्यक्रम का सातवां संस्करण आयोजित किया जा रहा है। इस साल 2.26 करोड़ नामांकन प्राप्त हुए हैं। प्रधानमंत्री नई दिल्ली के प्रगति मैदान में 29 जनवरी को इन प्रतिभागियों के साथ परीक्षा पर चर्चा करेंगे। 

इसमें कक्षा 6 से 12 के विद्यार्थियों, शिक्षकों और अभिभावकों को शामिल होने का अवसर मिलता है। इसमें भाग लेने के लिए पहले प्रश्नोत्तरी/निबंध/ स्लोगन प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता रहा है। इस वर्ष पंजीकरण की प्रक्रिया में नयापन लाते हुए एक अनूठी प्रश्नोत्तरी की शुरुआत की गई है, जिसमें चंद्रयान, खेलों में भारत की उपलब्धियां आदि जैसे नए विषयों को शामिल किया गया है।


 प्रधानमंत्री से विद्यार्थी कौन-से प्रश्न पूछेंगे और चर्चा कर सकेंगे, इसके लिए भी एक पारदर्शी प्रक्रिया अपनाई गई है। कक्षा छठी से बारहवीं तक के विद्यार्थियों से प्रश्न आमंत्रित किए गए।  विद्यार्थियों को यह स्वतंत्रता थी कि वे परीक्षा के तनाव से निपटने या सामान्य रूप से जीवन के बारे में अपनी पसंद के ऐसे प्रश्न भेज सकते थे, जिन्हें वे प्रधानमंत्री से पूछना चाहेंगे।  

इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री विद्यार्थियों के शिक्षक, मार्गदर्शक और अभिभावक की भूमिका में होते हैं। विगत वर्षों में इस कार्यक्रम के सफल आयोजन ने हमारे विद्यार्थियों के मस्तिष्क से तनाव कम करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सुखद है, इसके माध्यम से विद्यार्थियों को परीक्षा को एक उत्सव के रूप में मनाने का अवसर मिल पा रहा है और वे आनंदपूर्वक परीक्षा देने के महत्व को समझने लगे हैं।



✍️ हिमांशु गुप्त

सचिव, सीबीएसई 

(ये लेखक के अपने विचार हैं) 

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