मीना की दुनिया-रेडियो प्रसारण
एपिसोड-59 - कहानी का शीर्षक-‘अखबार से क्या सीखा?’

ज़ोर लगा के हईया, दम लगाओ भईया।
ज़ोर लगा के हईया, दम लगाओ भईया।

यह था परिणाम कल रात गाँव में आए तूफ़ान का। मीना के स्कूल की छत, पेड़ गिरने से टूट गई थी और गाँव
के कुछ लोग उस पेड़ को हटाने में लगे थे। सभी बच्चे अपने बस्ते टाँगे  स्कूल के इर्द-गिर्द खड़े थे, इस उम्मीद
में कि शायद आज पढ़ाई न हो।

पर तभी बहनजी ने आकर यह घोषित किया कि जब तक स्कूल की छत के ऊपर से पेड़ नहीं हटता और छत
की मरम्मत नहीं होती तब तक पढ़ाई बाहर ही होगी, हरी-भरी घास पर, पेड़ों के बीच।

”बिना चॉक और ब्लैकबोर्ड के?“ दीपू ने हैरानी से पूछा।
”बिल्कुल! आज हम नए तरीके से पढ़ेंगे!“ बहनजी ने यह कहा और अपनी किताबों के बीच से एक अख़बार निकाला।“

”अख़बार? पर बहनजी अख़बार में तो देष-विदेष की ख़बरें होती हैं ... फिर भला हम उन ख़बरों से क्या सीखेंगे?“ रानो ने असमंजस से पूछा।

”देखते जाओ बच्चों! दुनिया में ऐसी कोई चीज़ नहीं है जिससे हमें कोई सीख न मिले। तो चलें, सीखें कुछ नया?

तुम सब तीन समूह बना लो, मैं हर एक समूह को अख़बार का एक पन्ना दूँगी। हर समूह का एक बच्चा अपने पन्ने से कोई एक ख़बर ज़ोर से पढ़कर सुनाएगा ...ठीक है?“ बहनजी बोली।

”ठीक है बहनजी!“ सभी बच्चों ने एक स्वर में कहा।


पहले बारी थी मीना के समूह की, जिसमें से दीपू ने आकर यह ख़बर पढ़ी -

कल खादरपुर के दो व्यक्तियों की पुरानी दवाई के सेवन से मौत हो गई। खादरपुर के पुलिस अधिकारी ने
बताया कि कुछ असामाजिक तत्व गैर-कानूनी रूप से इन पुरानी दवाइयों को बेच रहे हैं। सामान्यतः हर दवाई
कुछ समय के लिए ही असरदार होती है, लेकिन उस समय के बाद, उस दवाई का असर ख़त्म हो जाता है या
वो ख़तरनाक साबित हो सकती है। दवाई की यह अंतिम तारीख़ हर दवाई पर ज़रूर लिखी होती है ....

इस ख़बर के पढ़े जाने के बाद बहनजी ने बच्चों से पूछा कि इस ख़बर से उन्हें क्या सीखने को मिलता है।
”हमें दवाइयाँ सिर्फ़ डॉक्टर से या फिर दवा की दुकान से ही खरीदनी चाहिए,“ मीना ने कहा।

रानो ने कहा, ”इस ख़बर से हमने यह भी सीखा कि मिलावटी, नकली और पुरानी दवाइयाँ बेचना ना सिर्फ़ गैर-कानूनी है बल्कि एक पाप भी है क्योंकि इससे कई निर्दोष लोगों की जान भी जा सकती है ...

“ और हमने यह भी सीखा कि दवा खरीदने से पहले हमें उस पर छपी अंतिम तारीख़ पढ़नी चाहिए ... और
अगर वह अंतिम तारीख़ बीत चुकी हो तो फिर उसे नहीं खरीदना चाहिए ...“ दीपू ने कहा।

”शाबाश बच्चों! चलो अब दूसरे समूह की बारी है,“ बहनजी बोलीं।

दूसरे समूह से सुनील ने यह ख़बर पढ़ी -
मुंबई  के वानखेड़े  स्टेडियम में कल श्रीलंका के साथ दूसरा एक-दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट मैच भी भारत
ने 60 रनों से जीत लिया ... लेकिन भारत के मास्टर बल्लेबाज़ सचिन तेदुंलकर सिर्फ़ 5 रनों से अपना 44वां शतक लगाने से चूक गए ... सचिन 95 के स्कोर पे रनऑउट हो गए ... दूसरी छोर पर खड़े बल्लेबाज़ हरभजन सिंहसचिन की तरफ़ बिना देखे ही रन लेने के लिए दौड़ पड़े .... और इस प्रकार सचिन अपना विकेट गंवा बैठे।

बहनजी ने अब इस समूह के बच्चों से पूछा कि हमें इस ख़बर से क्या सीख मिलती है?
सुमी ने कहा, ”हरभजन सिंह को दौड़ने से पहले यह देखना चाहिए था कि सचिन भी रन लेना चाहते हैं या नहीं! जब हम एक टीम बना के कोई खेल खेलते हैं तो उस खेल के नियमों के साथ-साथ हमें अपनी टीम के खिलाड़ियों के बारे में भी सोचना चाहिए।“

अब बारी थी तीसरे और आख़िरी समूह की। पर उनके पन्नों में तो सिर्फ़ विज्ञापन ही विज्ञापन थे। तभी बहनजी ने कहा कि विज्ञापनों से भी हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है, बताओ क्या?

सुनील बोला, ”आप बिल्कुल ठीक कह रही हो बहनजी ... मैने एक बार षहर के अख़बार में बहुत से होटलों के
विज्ञापन देखे थे ... हर होटल को एक-ना-एक रसोईया चाहिए था .... मैंने तो सोच भी लिया है कि बड़ा हो कर
मैं किसी बड़े से होटल में एक बड़ा मशहूर रसोईया बनूँगा .... और जब आप मेरे होटल में आओगी तो मैं आपको आलू के परांठे खिलाऊँगा!“

यह सुन बहनजी और सभी बच्चे खिलखिलाकर हँसने लगे।

”देखा बच्चों, सिर्फ़ एक विज्ञापन पढ़ने से सुनील ने आज ही निशचय कर लिया कि वह बड़ा हो कर क्या
बनेगा!“ बहनजी बोली।

मीना ने कहा कि उसने एक विज्ञापन में यह भी पढ़ा था कि यदि हम पानी या बिजली विभाग की सेवाओं से
संतुष्ट नहीं हैं तो हम उन्हें फ़ोन करके अपनी शिकायत दर्ज करवा सकते हैं।

तो इस तरह मीना और उसके दोस्तों ने अख़बार से बहुत कुछ सीखा। और यह भी सीखा कि चाहे कोई भी मुष्किल क्यों न आ जाए, हमें उससे घबरा कर अपना काम नहीं रोकना चाहिए।


आज का गीत-
आज कापी नहीं तो क्या,
आज पेंसिल नहीं तो क्या।
आसपास की चीजों से ,
हम सीखेंगे कुछ नया-नया।
......................................


आज का खेल- ‘कड़ियाँ जोड़ पहेली तोड़’


सुबह तो सबके घर पर आये,
हर एक हाथ में नज़र ये आये।
गिरता आकर दरवाजे पर,
अपने अन्दर दुनियां छिपाए।

उत्तर-‘अखबार’


मीना एक बालिका शिक्षा और जागरूकता के लिए समर्पित एक काल्पनिक कार्टून कैरेक्टर है। यूनिसेफ पोषित इस कार्यक्रम का अधिकसे अधिक फैलाव हो इस नजरिए से इन कहानियों का पूरे देश में रेडियो और टीवी प्रसारण किया जा रहा है। प्राइमरी का मास्टर एडमिन टीम भी इस अभियान में साथ है और इसके पीछे इनको लिपिबद्ध करने में लगा हुआ है। आशा है आप सभी को यह प्रयास पसंद आयेगा। फ़ेसबुक पर भी आप मीना की दुनिया को Follow कर सकते हैं।  

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