मीना की दुनिया-रेडियो प्रसारण
एपिसोड - 22

आज की कहानी का शीर्षक- 
“मजेदार पढ़ाई ~ पढाई हो तो....मजेदार”

आज मीना का स्कूल गर्मियों की छुट्टियों के बाद पहले बार खुला है तभी तो मीना और उसके दोस्त इतने खुश लग रहे हैं।

बहिन जी कक्षा में आतीं हैं और शुरु करतीं हैं पढाई। “आज हम पढेंगे विज्ञान” बहिन जी कहतीं हैं।

बहिन जी-...आज हम पढेंगे जरूर लेकिन बिना किताब के।...हाँ बच्चों आज हम विज्ञान पढेंगे एक अलग तरीके से। मैं तुम सबको दो प्रयोग दूंगी और वो प्रयोग कैसे करना है उसके संकेत मैंने इन पर्चियों पर लिख दिए हैं।

सभी बच्चों ने बहिन जी से एक-एक पर्ची ले ली लेकिन जब उन्होंने पर्चियों को खोल के देखा तो वो हैरान रह गए।...क्योंकि वो पर्चियां तो खाली थीं।

दीपू बोल पड़ता है, ‘बहिन जी, मुझे लगता है शायद आप पर्चियों पर संकेत लिखना भूल गयीं हैं।’
बहिन जी- नही दीपू....मैं इन पर्चियों पे लिखना बिलकुल नहीं भूली।

सभी बच्चे हैरान थे अगर बहिन जी ने पर्चियों पर कुछ लिखा है तो उन्हें दिखाई क्यों नही दे रहा।....कि तभी अचानक मीना ने अपनी पर्ची को सूंघा और वो बहिन जी से बोली, ‘मैं समझ गयी बहिन जी, आपने इन पर्चियों पर अदृश्य स्याही से कुछ लिखा है जिसे पढ़ने के लिए हमें इस पर्चे को गर्म करना होगा।’

बहिन जी- शाबाश! मीना, बिलकुल ठीक पहचाना।बहिन जी ने एक पर्ची को जलते हुए बल्ब के पास रखके उसे गर्म किया और उस पर्ची पर धीरे-धीरे बहिन जी की लिखाई नज़र आने लगी। सब बच्चे ये देख के बहुत हैरान थे।

दीपू कहता है, ‘बहिन जी, ये आपने कैसे किया?
बहिन जी- दीपू, ये तो अब हमें मीना ही बताएगी।

मीना- दोस्तों...बहिन जी ने इन पर्चियों पे नीबू के रस से लिखा था....हाँ जब रस सूख गया तब लिखाई अदृश्य हो गयी। लेकिन जब पर्ची को गर्म किया गया तो नीबू का रस हवा में पायी जाने वाली ऑक्सीजन से मिलके भूरे रंग का हो गया और लिखाई फिर से दिखने लगी।

बहिन जी पहला प्रयोग शुरु करती हैं, ‘ये मैं अपने साथ कुछ चीजें लाई हूँ एक खाली बोतल और एक उबला अंडा। बच्चों...तुम्हें इस अंडे को इस बोतल के अन्दर डालना है, बिना ताकत लगाए।’

गोलू बोला, ‘बहिन जी, बोतल का मुंह तो छोटा सा है, इसमें अंडा अन्दर कैसे जा सकता है?’

बहिन जी- गोलू इसका संकेत मैंने पर्चियों पे पहले ही लिख दिया है। चलो...सब बच्चे देखो कि मीना की पर्ची पर क्या लिखा है?

सभी बच्चे भाग के मीना के पास गए और पर्ची पर लिखा संकेत पढ़ने लगे- “तुम अंडे को बोतल के अन्दर नहीं डाल सकते लेकिन हवा ऐसा कर सकती है।” 


सब बच्चे सोच में पढ़ जाते हैं।
सुमी को बहिन जी का पढाया पाद याद आता है-“ हवा का दवाब”

मीना- हाँ सुमी....मैं समझ गयी, हवा सचमुच उबले हुए अंडे को बोतल के अन्दर धकेल सकती है। अगर बाहरी हवा का दवाब बोतल के अन्दर की हवा के दवाब से ज्यादा हो तो।

....लेकिन ये होगा कैसे?

बोतल के अन्दर कुछ जलाने से।

कृष्णा बोला, ‘ऐसा करने से बोतल के अन्दर हवा का दबाव कुछ कम हो जाएगा।’

सभी बच्चे चर्चा करते हैं कि बोतल के अन्दर आग कैसे जलायें? मीना के माँ बाबा ने उसे सिखाया है-“ बच्चों को आग से दूर रहना चाहिय।”

मीना बहिन जी से बोलती है, ‘बहिन जी क्या आप इस बोतल में कुछ कागज के टुकडे डालके उन्हें जला देंगी।

बहिन जी ने बोतल में कुछ कागज के टुकडे डालकर उन्हें जलाया और बोतल के मुंह पर उबला हुआ अंडा रख दिया और थोड़ी ही देर में .....अंडा बोतल के अन्दर चला गया।

बहिन जी प्रश्न करतीं हैं, ‘...ये कैसे हुआ?’
सुमी जवाब देती है, ‘.....कागल जलाने से बोतल के अन्दर की सारी ऑक्सीजन ख़त्म हो गयी जिससे बोतल के बाहर की हवा का दवाब बोतल की अन्दर की हवा के दवाब से से काफी ज्यादा हो गया इसीलिये अंडा आसानी से बोतल के अन्दर चला गया।’

बहिन जी कहती हैं, ‘अब बारी है दूसरे प्रयोग की- पानी को बिना हाथ लगाये उसे हिलाना।......ये हो सकता है, इसका संकेत मैं पहले ही इन पर्चियों पे लिख चुकी हूँ।

गोलू संकेत पढ़ता है- “अगर प्लास्टिक की कंघी को सही से इस्तेमाल किया जाए तो उससे चीजों को हिलाया जा सकता है।”

दीपू बोला, ‘मैं समझ गया बहिन जी। मैं इस प्लास्टिक की कंघी से पाने हो हिला सकता हूँ..बिना छुए।....बहिन जी, उसके लिए हमें बाहर नल तक जाना होगा

बहिन जी दीपू और बाक़ी बच्चों के साथ पास आयीं। दीपू ने नल खोला जिसमे से पानी की पतली सी धार बहने लगी...दीपू जल्दी-जल्दी अपने बालों में कंघी करने लगा और फिर जब वो धीरे से कंघी को पानी की धार के पास ले गया तो..... ‘अरे ये पाने की धार तो कंघी की तरफ मुड गयी।’ मीना बोल पड़ी।

बहिन जी-....बच्चों दीपू के लिए जोरदार तालियाँ।

(तालियों की गडगडाहट)
बहिन जी- दीपू अब तुम हम सबको बताओ कि ये कैसे हुआ?
दीपू- दोस्तों, ये हुआ स्थिर ऊर्जा के कारण।

मीना विस्तार से बताती है, ‘....बहते पाने में धन प्रभार होता है और बालों के घर्षण होने के कारण कंघी में ऋण प्रभार आ जाता है इसीलिये पानी की धार कंघी की ऋण प्रभार के प्रति आकर्षित हुयी।

बहिन जी- बिलकुल सही जबाब...बच्चों मीना के लिए जोरदार तालियाँ।
(तालियों की गडगडाहट होती रहती है)

बहिन जी- दीपू....कितनी तालियाँ बजाओगे?

दीपू- बहिन जी ये तालियाँ आपके लिए बजा रहा हूँ क्योंकि आपने बहुत ही अच्छे तरीके से हमें दोनों प्रयोग सिखाये आज का ये पाठ हम कभी नहीं भूलेंगे।

मीना, मिठ्ठू की कविता-
“नए तरीकों से टीचर जब हमको पाठ पढ़ाते हैं,
खेल-खेल में हम सारे बच्चे सब कुछ सीख जाते है।”


आज का गीत-
टन-टन-टन सुनो घंटी बजी स्कूल की
चलो स्कूल तुमको पुकारे।
पल-पल-पल रोशनी जो मिली स्कूल की
जगमगाओगे तुम बनके तारे
टन-टन-टन..............
कॉपी और किताबें सारी स्कूल देगा-स्कूल देगा
यूनिफार्म भी तुम्हारी स्कूल देगा-स्कूल देगा
स्कूल अब घर से दूर नहीं है कम हो गए फासले
पहुंचोगे स्कूल के गेट पर थोडा सा भी जो चले
प्यार और नरमी से तुमको पढ़ायेंगे टीचर हैं ऐसे भले
टन-टन-टन.......................।
टन-टन-टन- ‘शिक्षा मेरा अधिकार है’

आज का खेल- ‘अक्षरों की अन्त्याक्षरी’

शब्द-‘तबला’

‘त’- ताला (अक्ल पे ताला पड़ना)
‘ब’- बैल (कोल्हू का बैल होना)
‘ल’- लोहा (लोहा मनवाना)


मीना एक बालिका शिक्षा और जागरूकता के लिए समर्पित एक काल्पनिक कार्टून कैरेक्टर है। यूनिसेफ पोषित इस कार्यक्रम का अधिक से अधिक फैलाव हो इस नजरिए से इन कहानियों का पूरे देश में रेडियो और टीवी प्रसारण किया जा रहा है। प्राइमरी का मास्टर एडमिन टीम भी इस अभियान में साथ है और इसके पीछे इनको लिपिबद्ध करने में लगा हुआ है। आशा है आप सभी को यह प्रयास पसंद आयेगा। फ़ेसबुक पर भी आप मीना की दुनिया को Follow कर सकते हैं।  

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