शिक्षक का बच्चों के प्रति स्नेह एंव शिक्षण कार्य के प्रति समर्पण प्रत्यक्ष रूप से बच्चों एवं जन समुदाय पर सकारात्मक प्रभाव डालता है इसके विपरीत, तम्बाकू खाने, शिक्षण के समय अखबार पढ़ने, बुनाई करने आदि कार्यों का अप्रत्यक्ष बुरा प्रभाव पड़ता है।

शिक्षक की अपने बच्चों के बारे में क्या मान्यतायें और विश्वास है, यह सिखाने के तरीकों तथा अपने छात्रों से अपेक्षाओं को बहुत ज्यादा प्रभावित करते हैं। बच्चों में जिज्ञासा पैदा कर हम उनका सीखना आसान कर सकते हैं। उनके अनुभव के आधार पर, रुचियों का ध्यान रखते हुए नवीन जानकारियों एवं अनुभवों को सहज रूप में जोड़ सकते हैं। उन्हें अभिव्यक्ति का पर्याप्त अवसर देकर उनकी कल्पनाशीलता एवं सृजनशीलता को सकारात्मक दिशा दे सकते हैं। तब हम पायेंगे कि हमारा काम आसान होता जा रहा है।




शिक्षक के लिये यह संभव है कि वह पता कर सके कि बच्चे ने गलती क्यों की। शिक्षक को बच्चे एवं समस्या को अलग-अलग करके समझना चाहिये जिससे कि समस्या को चोट पहुंचे, बच्चे को नहीं। अक्सर हमारा संबंध अपने बच्चों के साथ सुगमकर्ता और दोस्त का नहीं होता है। इसीलिये हम बच्चों के साथ गतिविधियां करने में हिचकते हैं । हमारे समाज का परिवेश भी हमारी इस हिचक को तोड़ने में सहायक नहीं होता है। 

गतिविधियों के बारे में उपयुक्त समझ न होने के कारण अक्सर हम पाठों को पूरा कराने में लग जाते हैं और गतिविधियों को निरर्थक एवं समय की बरबादी मानते हैं । जबकि सच्चाई यह है कि गतिविधियों से विभिन्न दक्षताओं का विकास होता है। यह जरूरी है कि करायी गयी गतिविधि उपयुक्त व संतुलित हो।


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