प्राइमरी का मास्टर डॉट कॉम
के फैलाव के साथ कई ऐसे साथी इस कड़ी में जुड़े जो विचारवान भी हैं और
लगातार कई दुश्वारियों के बावजूद बेहतर विद्यालय कैसे चलें, इस पर लगातार
कोशिश करते भी है। चिंतन मनन करने वाले ऐसे शिक्षक साथियों की कड़ी में आज
आप सबको अवगत कराया जा रहा है जनपद कानपुर नगर के शिक्षक प्रतिनिधि साथी श्री अमरेश मिश्र जी से! स्वभाव से सौम्य और अपने विचार प्रखरता से रखने में सबसे आगे ऐसे विचार धनी शिक्षक श्री अमरेश मिश्र जी का 'आपकी बात' में स्वागत है।
इस आलेख में उन्होने प्राथमिक शिक्षा के उस पक्ष की ओर ध्यान दिलाया है कि आखिर हमारा योग्य शिक्षक कक्षा कक्ष से मुंह फिरा के व्यवस्था में ही क्यों शामिल होना चाहता है? क्या हम वह माहौल अपने शिक्षक साथियों को नहीं दे पा रहे जिससे वह कक्षा कक्ष में जाने को प्रोत्साहित हो? हो सकता है कि आप उनकी बातों से शत प्रतिशत सहमत ना हो फिर भी विचार विमर्श की यह कड़ी कुछ ना कुछ सकारात्मक प्रतिफल तो देगी ही, इस आशा के साथ आपके समक्ष श्री अमरेश मिश्र जी का आलेख प्रस्तुत है।
आखिर कक्षा-कक्ष से क्यूँ पलायन करना चाहते हैं शिक्षक ?
सरकारी स्कूलों से बच्चे क्यूँ भागते हैं इस पर कई सर्वेक्षण हो चुके हैं बल्कि एससीईआरटी, एनसीईआरटी, जिला प्रशिक्षण संस्थान (डायट) जैसी कई सरकारी संस्थान का मुख्य कार्य ही इसके संभावित कारणों की पहचान कर उसके निराकरण के उपाय सुझाना है, परन्तु वर्तमान परिस्थितियों में बच्चों के स्कूलों से भागने के कारणों पर अध्ययन से ज्यादा आवश्यक हो गया है कि इस विषय पर शोध किया जाये कि परिषदीय विद्यालयों के शिक्षक कक्षा कक्ष से क्यूँ पलायन करना चाहते हैं? क्यूँ अधिकांश शिक्षक एबीआरसी, एनपीआरसी या अन्य ऐसे कार्यों को करने को उत्सुक होते हैं जिनमे उन्हें विद्यालय जाने से छूट मिलने के साथ ही स्वयं अपने लिए उन प्रतिदिन होने वाली विभागीय जांचो या संभावित कार्यवाहियों की परिधि से बाहर सुरक्षित होने का अहसास होता हैं और जिनकी तलवार आम शिक्षक पर सदैव लटकती ही रहती है।
मैं स्वयं कई ऐसे शिक्षकों को जानता हूँ जो पिछले 8 से 10 वर्षों से स्कूल कभी नहीं गए बल्कि कभी मनोनीत या कभी चयनित एबीआरसी, एनपीआरसी , एमडीएम प्रभारी के रूप में कार्य कर नौकरी का समय काट रहें हैं। उनकी स्थिति तो इतनी ख़राब है कि यदि कभी इस बात की चर्चा होती है कि यह पद समाप्त हो जायेंगे या सारे अटैचमेंट ख़तम कर दिए जायेंगे और सभी को स्कूल जाना होगा तो वे नौकरी से स्वैक्षिक सेवानिवृत्ति लेने की बात सोचने लगते हैं। ऐसी परिस्थितियों में जब सरकार परिषदीय विद्यालयों की दशा सुधारना चाहती है बच्चों को सरकारी स्कूलों में अच्छी शिक्षा देना चाहती है स्कूलों में शिक्षकों की उपस्थिति शतप्रतिशत करना चाहती है इस विषय पर विचार करना और भी ज्यादा जरूरी हो जाता है कि ऐसे वो कौन से कारण हैं जिनकी वजह शिक्षक विद्यालयों से भागना चाहता है?
कहीं इसके मूल में स्वयं वे सरकारी नीतियाँ ही तो नहीं जो शिक्षा में सुधार के लिए बनायीं गयीं थी ? जरूरत है कि सरकार इस बात को समझे कि सिर्फ दंडात्मक कार्यवाही का भय पैदा करके शिक्षकों को विद्यालय में उपस्थित करा देने मात्र से कुछ भी हासिल नहीं होगा जब तक कि शिक्षकों से विद्यालयों में कार्य करने में आने वाली व्यावहारिक कठिनाईयो की जानकारी प्राप्त कर, न केवल उन कारणों को दूर करने प्रयास किया जाये बल्कि ऐसी परिस्थितियों का भी निर्माण किया जा सके जिसमे शिक्षक अच्छी शिक्षा देने के लिए स्वयं प्रोत्साहित हो सकें।
अमरेश मिश्र , मंत्री,
उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ,
शाखा - बिधनू,
जनपद - कानपूर नगर
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