प्राइमरी का मास्टर डॉट कॉम के फैलाव के साथ कई ऐसे साथी इस कड़ी में जुड़े जो विचारवान भी हैं और लगातार कई दुश्वारियों के बावजूद बेहतर विद्यालय कैसे चलें, इस पर लगातार कोशिश करते भी है। कुछ ऐसे ऑनलाइन साथी भी हैं जो शिक्षकीय दायित्व से परे होकर भी इसी जद्दोजहद में लगे हुये हैं। इसी कड़ी में आज आप सबको श्री संदीप शर्मा  जी के विचारों से परिचित कराया जा रहा है। मूलतः जनपद मुरादाबाद के निवासी श्री संदीप शर्मा पिछले चार साल से ‘’असर सेंटर’’ में ‘’उत्तर प्रदेश’’के लिए ‘’असर एसोसिएट’’ के रूप में कार्य कर के उत्तर प्रदेश के बच्चों के शैक्षिणिक स्तर में सुधार के लिए निरंतर प्रयासरत हैं। उनका प्रयास है कि उत्तर प्रदेश के नागरिक अपने बच्चों की शिक्षा के प्रति जागरूक बने जिससे उनका और उनके बच्चों का भविष्य उज्जवल बने। संदीप जी का  'आपकी बात' में स्वागत है।

इस आलेख में उन्होने प्राथमिक शिक्षा के उस पक्ष की ओर ध्यान दिलाने की कोशिश की है कि तमाम विद्यालयी संसाधनों  की उपलब्धता और अनुपलब्धता के सवालों के बीच भी हमारा सारा ध्यान और फोकस बच्चों की शैक्षिक गुणवत्ता पर ही होना चाहिए। कुछ परिवर्तन आए हैं , कुछ और आने चाहिए।  इस आलेख में उन्होने असर रिपोर्ट के आंकड़ों से सही तस्वीर प्रस्तुत करने की कोशिश की है।  हो सकता है कि आप उनकी बातों से शत प्रतिशत सहमत ना हो फिर भी विचार विमर्श  की यह कड़ी कुछ ना कुछ सकारात्मक प्रतिफल तो देगी ही, इस आशा के साथ आपके समक्ष श्री संदीप शर्मा जी का आलेख प्रस्तुत है।






सोच  तो  बदली है, क्या परिस्थितियाँ भी बदलेंगी?


पिछले वर्ष उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री जी ने लखनऊ जिले के एक विद्यालय का निरीक्षण किया था, और उन्होंने जो वहां किया, वह वाकई तारीफ के काबिल है। उन्होंने वहां विद्यालय की सुविधाओं के साथ साथ बच्चों के शैक्षिणिक स्तर को लेकर चिंता जाहिर की। उत्तर प्रदेश में शायद पहली बार ऐसा हुआ की किसी जनप्रतिनिधि ने बच्चों के शैक्षिक स्तर पर चिंता जताई। क्योंकि अक्सर देखा जाता है कि कोई अधिकारी या जनप्रतिनिधि जब भी किसी विद्यालय का निरीक्षण करते है तो उनका पूरा ध्यान शैक्षिक स्तर के अलावा विद्यालय की सुविधाओं या अन्य बातों पर होता है।  जिस चीज़ पर उनका पूरा फोकस होना चाहिए या बच्चे जिस चीज़ के लिए विद्यालय आते है उस पर बहुत कम ध्यान होता है।

यदि उत्तर प्रदेश की बात की जाए, असर-2014 की रिपोर्ट में भी दिख रहा है कि पिछले कुछ सालों में विद्यालय की सुविधाओं में काफी वृद्धि हुई है,  हालाँकि अभी इसमें अभी और सुधार की जरूरत है।  असर- 2014 में जिन विद्यालयों का अवलोकन किया गया उनमे से 93.9% विद्यालय ऐसे मिले जहाँ बच्चों को मध्यान्ह भोजन दिया गया था, वही 84.5% विद्यालय ऐसे थे जिनको अप्रैल 2013 से मार्च 2014 के वित्तीय वर्ष में विद्यालय रखरखाव अनुदान प्राप्त हुआ था।


उत्तर प्रदेश के लिए अगर एक अच्छी बात है तो यह की यहाँ 6 -14 साल के 95.2% बच्चे विद्यालयों में नामांकित है,  और शतप्रतिशत नामांकन के लिए प्रदेश सरकार और शिक्षकों का प्रयास जारी है, परन्तु बड़ी  तेज़ी से नामांकन निजी विद्यालयों में बढ़ रहा है। जहाँ वर्ष 2010 में सरकारी विद्यालयों में नामांकन 53.7% था और और निजी विद्यालयों में 39.3% वहीं वर्ष 2014 में यह आंकड़ा एक दम उलट हो गया है, जहाँ सरकारी विद्यालयों में नामांकन की दर घटकर सिर्फ 41.1% रह गई है वहीं निजी विद्यालयों में नामांकन दर बढ़ कर 51.7% हो गई है। 

दूसरी चिंता का विषय हमारे लिए उपस्थिति है।  उत्तर प्रदेश में बच्चों की उपस्थिति सिर्फ 54.7% ही है। दूसरे पहलू से अगर देखें तो इससे बेहतर उपस्थिति शिक्षकों की है प्रदेश में 85.6% शिक्षक विद्यालय में उपस्थित पाये गए यह आंकड़ा और भी अच्छा होता यदि शिक्षकों को गैर शैक्षिक कार्यों में न लगाया गया होता।

अब यदि बात की जाये बच्चों के शैक्षिक स्तर की जिस पर मुख्यमंत्री जी ने अपने निरीक्षण के दौरान और अभी हाल ही प्रदेश के शिक्षामंत्री जी ने शिक्षकों के नाम लिखे गये अपने संबोधन में चिंता व्यक्त की है।  असर-2014 की रिपोर्ट में भी सामने आया है कि उत्तर प्रदेश में भाषा में कक्षा-5 के 44.7% बच्चे ही कक्षा-2 के स्तर का पाठ (एक सरल सी कहानी) पढ़ पाते है, यानि जो कहानी बच्चों को कक्षा-2 मेंपढ़नी आ जानी चाहिये वह कहानी प्रदेश के आधे से अधिक बच्चे कक्षा-5 में भी नहीं पढ़ पाते। वहीं अगर गणित की बात की जाये तो स्थिति और भी चिंताजनक वनी हुई है है।  गणित में कक्षा- 5 के सिर्फ 25.7% बच्चे ही साधारण भाग का सवाल हल कर पाते है और सिर्फ 21.0% बच्चे ही साधारण घटाने का सवाल हल कर सकते है। 

एक बात यहाँ ध्यान देने वाली है की यह स्तर सिर्फ सरकारी विद्यालय के बच्चों का ही नहीं है, क्योंकि असर एक घरेलू सर्वेक्षण है और असर विद्यालय में सर्वे न करके अभिभावकों के सामने बच्चों के घर जाकर सर्वे करता है जिससे अभिभावक भी अपने बच्चों की शैक्षिक स्थिति को लेकर जागरूक हो सकें, असर में उस घर के सभी 5-16 साल के बच्चों को भी सर्वेक्षण में शामिल किया जाता है चाहे वो बच्चे सरकारी विद्यालय में पढ़ते हो या निजी विद्यालय में पढ़ते हो या मदरसा में पढ़ते हो या अन्य कही पढ़ते हो।  यहाँ यह बात इसलिए बताना महत्वपूर्ण है क्योंकि कुछ नागरिक समझते है कि असर में सिर्फ सरकारी विद्यालय के बच्चों का सर्वे होता है। 

लेकिन यहाँ अगर सरकारी और निजी विद्यालयों के बीच तुलना की जाये तो जहाँ सरकारी विद्यालयों के भाषा में कक्षा-5 के सिर्फ 26.8% बच्चे ही कक्षा-2 के स्तर का पाठ पढ़ पाते है तो निजी विद्यालयों के 61.4%, वहीं गणित मेंसरकारी विद्यालयों के कक्षा-5 के 28.2% बच्चे ही साधारण घटाने का सवाल हल कर पाते है तो वहीं निजी विद्यालयों के 64.4% बच्चे साधारण घटाने का सवाल हल कर पाते है।  यह सही है कि सरकारी विद्यालय के बच्चों का स्तर बहुत कम है, क्योंकि सरकारी विद्यालयों की अपनी अलग परिस्थितियाँ है अलग समस्याएं है, लेकिन यहाँ ध्यान देने वाली बात यह कि निजी विद्यालय भी बहुत अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रहे है।  जहाँ एक तरफ सरकारी विद्यालयों में बच्चों को निशुल्क पढाई, पुस्तकें, यूनिफार्म, यहाँ तक की भोजन भी मिलता है।  वहीं दूसरी तरफ निजी विद्यालयों में अभिभावकों इन सब के लिये अपनी जेब ढीली करनी पड़ती है।  उसके बाबजूद निजी विद्यालयों का प्रदर्शन पूर्णत: संतुष्ट नहीं करता है।

असर का यह आंकड़ा उन अभिभावकों के लिये भी महत्वपूर्ण है जो अपने बच्चों का निजी विद्यालय में दाखिला करा के निश्चित हो जाते है कि हमारे बच्चे की पढाई बहुत अच्छी चल रही है।  यदि देखा जाये तो यह बहुत महत्वपूर्ण है कि अब अभिभवकों की, शिक्षकों की, जनप्रतिनिधियों की और अधिकारियों की सोच बदली है और अब उनका ध्यान बच्चों के शैक्षिणिक स्तर पर केन्द्रित हुआ है। 

लेकिन प्रश्न अभी भी यही है कि ....
‘’सोच  तो  बदली है, क्या परिस्थितियाँ भी बदलेंगी?’’

संदीप शर्मा
असर सेन्टर
उत्तर प्रदेश


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