• संकेतक क्या है?
  • सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में संकेतक का क्या महत्व है?
  • संकेतकों का निर्माण क्यों और कैसे करेंगे?
  • कक्षा शिक्षण में संकेतकों का प्रयोग किस प्रकार करेंगे?

इस आलेख का उद्देश्य शिक्षकों की संकेतक व इसके निर्माण की प्रक्रिया पर समझ व दक्षता विकसित करना और  सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में संकेतकों का उपयोग पर साथी शिक्षकों की समझ व दक्षता विकसित करना है।


संकेतक क्या है?
  • संकेतक हमें बच्चों के प्रगति के मानदण्ड प्रदान करते हैं। संकेतक हमें यह बताते हैं कि बच्चे ने अभी तक कितना ज्ञान व कौशल अर्जित किया है। साथ ही संकेतक हमें यह भी बताते हैं कि बच्चे की प्रगति की दिशा क्या है। साथ ही ये आकलन के प्रति शिक्षक व विद्यालय का नज़रिया प्रस्तुत करते हैं। यह नज़रिया स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार अपने मानदण्डों के निर्धारण को दर्शाता है।
  • शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया सही दिशा में चल रही है या नहीं, यह हमें संकेतक से पता चलता है। पूर्व में हम प्रकरण के आधार पर अपनी शिक्षण योजना बनाते रहे हैं। संकेतक प्रकरण का ही परिवर्धित रूप है। प्रकरण में अक्सर प्रक्रिया स्पष्ट नहीं होती है, जबकि संकेतक स्पष्ट रूप से प्रक्रियागत शिक्षण की बात करता है।

सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में संकेतक का क्या महत्व हैं?
  • सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में सीखने की निरन्तरता को ध्यान में रखते हुए बच्चों के सीखने की बेहतर समझ और उसे केन्द्र में रखने के लिए संकेतक अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं।
  •  संकेतक बच्चों की सीखने की दक्षताओं का आकलन करने के लिए एक रूपरेखा प्रदान करता है।
  • संकेतक अभिभावकों, बच्चों और दूसरों के लिए भी बच्चों की प्रगति को आसान तरीके से समझने के लिए सन्दर्भ बिन्दु की तरह कार्य करते हैं।




संकेतक का निर्माण क्यों और कैसे होना चाहिए?
  • संकेतक विकसित करते समय यह ध्यान रखने की आवश्यकता है कि हम किसी विशेष स्तर/आयु/कक्षा के सत्रान्त पर छात्रों में क्या प्रगति देखना चाहते हैं? इस प्रकार का विज़न, ऐसे संकेतक और अंततः ऐसे छात्र प्रोफाइल विकसित करने में सहायता प्रदान करेगा जो पाठयचर्या की रूपरेखा के अन्तर्गत पाठयक्रम के उद्देश्यों के अनुरूप होंगे। एक शिक्षक में यह क्षमता होनी चाहिए कि वह बच्चे के अन्तर्निहित संभावनाओं की सराहना कर सकें।
  • विकसित किये गये संकेतक पाठ्यक्रमीय लक्ष्यों पर आधारित तथा एक दूसरे से पूर्णतया पृथक रूप से पहचाने जाने चाहिए क्योंकि ये संकेतक कई बार एक कक्षा से लेकर अन्य कक्षाओं तक फैले होते हैं।
  • संकेतक का क्षेत्र केवल पाठ्यपुस्तकों व पाठ्यक्रम पर केन्द्रित नहीं होना चाहिए। वरन यह पाठ्यचर्या के विशेष उद्देश्यों के अनुरूप होना चाहिए।
  • संकेतकों में शिक्षक द्वारा नियोजित किसी कार्य/गतिविधि पर बच्चे की बहुलतायुक्त प्रक्रियाओं को सम्मिलित किया जाना चाहिए।
  • संकेतक का निर्माण बच्चे की अधिगम ग्रहण करने की सततता के रूप में समझते हुए करना चाहिए।
  • संकेतकों से यह पता चलना चाहिए कि अधिगम कार्य के सन्दर्भ में बच्चे कैसे प्रगति करते हैं।
  • संकेतकों के निर्माण करते समय बच्चे के अनुभवों, प्रश्नों एवं अभिव्यक्तियों, विचारों और संवादों को ध्यान में रखना चाहिए।
कक्षा शिक्षण में संकेतक का प्रयोग किस प्रकार किया जाना चाहिए?


यह शिक्षक के लिए चुनौतीपूर्ण स्थिति उत्पन्न करती है जिसमें यह आवश्यक है कि शिक्षक स्वयं अपने कक्षा कक्ष की स्थितियों के अनुसार संकेतक का प्रयोग करे। सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में संकेतक एक महत्वपूर्ण कड़ी है। संकेतक ही वह आधार है जिसके माध्यम से बच्चों से सम्बन्धित क्षेत्र में दक्षता का सुव्यवस्थित विकास किया जाता है। संकेतक का प्रयोग करते समय निम्नलिखित बाते आवश्यक हैं-

  • कक्षा-कक्ष में शिक्षण प्रक्रिया के दौरान संकेतक को बच्चों के लिए सुगम व सहज बनाने के लिए उपयुक्त सहायक सामग्री का प्रयोग किया जाए।
  • सीखने-सिखाने की प्रक्रिया के दौरान संकेतक से सम्बन्धित उन सभी विधियों/प्रयोगों/ गतिविधियों आदि का प्रयोग किया जाये जिनसे संकेतक के उद्देश्य की पूर्ति हो रही हो।
  • संकेतक के कक्षा कक्ष में प्रयोग का आशय है कि बच्चा सीख रहा है। ऐसी स्थिति में यह आवश्यक है कि शिक्षण प्रक्रिया इतनी रोचक, सुगम, व सहज हो कि सीखने-सिखाने की प्रक्रिया पर बच्चे की समझ पूर्णरूप से बन सके।


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