प्राइमरी का मास्टर डॉट कॉम के फैलाव के साथ कई ऐसे साथी इस कड़ी में जुड़े जो विचारवान भी हैं और लगातार कई दुश्वारियों के बावजूद बेहतर विद्यालय कैसे चलें, इस पर लगातार कोशिश विचार के स्तर पर भी और वास्तविक धरातल पर भी करते  है। चिंतन मनन करने वाले ऐसे शिक्षक साथियों की कड़ी में आज आप सबको अवगत कराया जा रहा है जनपद कानपुर देहात के साथी  श्री विमल कुमार जी से!  स्वभाव से सौम्य, अपनी बात कहने में सु-स्पष्ट और मेहनत करने में सबसे आगे ऐसे विचार धनी शिक्षक  श्री विमल कुमार जी  का 'आपकी बात' में स्वागत है।

इस आलेख में उन्होने शिक्षक नीतियों के चलते शिक्षकों के अकर्मण्य होने की छवि बनाए जाए के खिलाफ रणनीति तैयार करने पर बल दिया है।  हो सकता है कि आप उनकी बातों से शत प्रतिशत सहमत ना हो फिर भी विचार विमर्श  की यह कड़ी कुछ ना कुछ सकारात्मक प्रतिफल तो देगी ही, इस आशा के साथ आपके समक्ष   श्री विमल कुमार जी  का आलेख प्रस्तुत है।

 शिक्षक की छवि को बचाने के लिए संघीय और गैरसंघीय सभी ताकतों को एक मंच पर आना ही होगा

समस्या आज केवल बी एल ओ और रैपिड सर्वे की ही नहीं है। बल्कि समस्या है उस प्रत्येक कार्य की है जो शिक्षण कार्य के अतिरिक्त है। क्योंकि सरकार हम पर दोहरे रास्ते से हमला कर रही है। एक तो गैरशैक्षणिक कार्यों में उलझा कर शिक्षण कार्य में बाधा पहुंचा कर और दूसरे शिक्षा की गुणवत्ता व विभिन्न योजनाओं का ढोल पीटकर दुनियां के सामने शिक्षक की छवि को अकर्मण्य साबित करके।

हमको लगता है कि हमारे शिक्षक संगठनों को भी इसी तरह से विभिन्न रास्तों से इन गलत व्यवस्थाओं के खिलाफ समाज के सामने जाना चाहिए।

1- प्रत्येक शिक्षक संगठन सरकार की शिक्षा की असहयोगी नीतियों को जन जन तक पहुंचाये कि हम किन परिस्थितियों में चाह कर भी अच्छा शिक्षण नहीं कर पा रहे, जिससे शासन की विभिन्न योजनाओं की अव्यवहारिक और शिक्षण कार्य में बाधक नीतियों को समाज और शासन के सामने लाया जा सके।

2- शिक्षा की गुणवत्ता के लिए हमारे शिक्षक संगठनों को स्वयं आगे आना चाहिए। शिक्षा गुणवत्ता की नीतियों में ग्रामीण क्षेत्र  के शिक्षकों की सहभागिता सुनिश्चित होनी चाहिए न कि केवल अधिकारियों की। इसके लिए विभिन्न शिक्षक संगठनों को केवल शिक्षा एवं शिक्षक के हित और सम्मान को ध्यान में रखते हुए अनेकता को एकता में बदलना चाहिए तथा उ.प्र.प्रा. शिक्षक संघ को बड़े भाई की भूमिका निभाते हुए सभी को एक मंच पर लाने का प्रयास करना चाहिए, जिससे संघे शक्ति को मूर्त रूप दिया जा सके। जिसका अहसास समय समय पर शासन को भी हो सके और किसी संकट में आह्वान होते ही शत प्रतिशत पालन कर सफलता प्राप्त कर सके। क्योंकि हमारे विचार, व्यवहार, पद और संगठन अलग हो सकते हैं लेकिन उद्देश्य अलग नहीं हो सकते हैं। वह उद्देश्य है शिक्षा एवं शिक्षक के हित और सम्मान की रक्षा करना। फिर भेद और मत भिन्नता कैसी? इसे दूर करना चाहिए।

3- आज प्रचार प्रसार का समय है। इसके लिए प्रदेश के अनुभवी और कर्मठ शिक्षकों को संगठनों द्वारा आगे लाना चाहिए जो समय समय पर विभिन्न समाचार एजेंसियों पर उत्तर देने के लिए अधिकृत हों। क्योंकि आज प्रत्येक छोटी बड़ी बात कुछ पल में सभी के सामने होती है।  इससे हमें अपना पक्ष अधिकारिक रूप से समाज के सामने रखने का मौका मिल सकेगा।  इस काम लिए धन का उपयोग शिक्षक द्वारा दिया जाने वाला सदस्य शुल्क का करना चाहिए। कोई पेपर और चैनल वाकी न बचे जो हमारी मेहनत और अच्छाईयों के प्रचार से तथा शासन की विभिन्न योजनाओं का  शिक्षा हित में क्या उपयोगिता है और कितना असहयोग हैं। इस सब के लिए यदि धन कम पड़े तो सदस्यता शुल्क बढ़ाई जानी चाहिए।

4 - अन्तिम विकल्प के तौर पर यदि हमारी बात शासन न सुने तो न्यायालय में अपने कर्तव्यों और अधिकारों के समन्वय के लिए शासन के खिलाफ जाना चाहिए।

इन सब कार्यों के लिए सबसे पहले शिक्षक को केवल पद से ही नहीं कर्म से भी शिक्षक बनना होगा और शिक्षा के गिरते स्तर के कलंक को छुटाने के लिए किसी भी हद तक आगे आना चाहिए। क्योंकि धन तो कहीं भी कोई कमा लेता है लेकिन शिक्षक जैसे सम्मानित पद पर शायद नहीं। शिक्षक परिवार के सम्मान की रक्षा के लिए शिक्षक संगठनों को भी अपने यहाँ मीडिया और कोर्ट के जानकार शिक्षक भाईयों को सम्मानित स्थान देकर सहयोग लेना चाहिए।

क्योंकि---
☆  किसी कार्य का परिणाम, उसकी कार्य विधि पर निर्भर करता है  ☆
इसलिए---
☆ जागो और जगाओ ........ शिक्षा में नयी रोशनी लाओ ☆


विमल कुमार
शिक्षक परिवार कानपुर (देहात)

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