दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल ने डीडीए की जमीन पर चलने वाले 298 निजी स्कूलों में दाखिले के लिए जिन दिशा-निर्देशों को मंजूरी दी है, उनमें से ‘‘नेबरहुड’ फॉर्मूले को लेकर निजी स्कूल सरकार से खासा नाराज हैं। इस फार्मूले के दायरे में आने वाले स्कूलों की दलील है कि सरकार का यह कदम ज्यादती वाला है। इससे ‘‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ वाली योजना भी प्रभावित हो सकती है और यह निजी स्कूलों के बीच भी भेदभाव को पैदा करेगा। दूसरी तरफ, दिल्ली सरकार की दलील है कि इन स्कूलों को डीडीए ने जमीन देते वक्त शर्त लगाई थी कि ये आस-पड़ोस के बच्चों को दाखिला देने से मना नहीं कर सकते हैं। देखा जाए तो सरकार की इस दलील को खारिज नहीं किया जा सकता। यहां पर सरकार बाल अधिकारों के संरक्षक की भूमिका में खड़ी दिखाई दे रही है। 

मेडिकल साक्ष्य व समाजशास्त्री भी बच्चों के लिए नेबरहुड स्कूल के पक्ष में हैं। छोटे बच्चों की हड्डियां इतनी परिपक्व नहीं होतीं कि वे रोजाना दूर का सफर कर सकें। इससे उनके स्वास्य पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। गौरतलब है कि नए दिशा-निर्देशों के मुताबिक अब यदि किसी स्कूल में 100 सीटें हैं तो 25 प्रतिशत ईडब्लयूएस को मिलेगीं। फिर 75 सीटों में स्कूल सबसे पहले 1 किमी तक के रेंज के बच्चों को दाखिला देगा। यानी 75 प्रतिशत सीटों के लिए स्कूल 1 किमी के दायरे से आए बच्चों के आवेदनों को अलग करेंगे। 1 किमी तक की दूरी से आए सभी सिबलिंग को प्रवेश मिलेगा। यदि कुल ओपन सीटों से अधिक सिबलिंग के आवेदन आए हैं तो दाखिले के लिए ड्रा करा जाएगा। सिबलिंग का दाखिला होने के बाद बची सीटों के लिए 1 किमी तक के दायरे में रहने वाले अन्य बच्चों को ड्रा के माघ्यम से दाखिला किया जाएगा। अगर 1 किमी के दायरे में रहने वाले बच्चों से सीटें बचती हैं तो 3 किमी के दायरे में रहने वाले बच्चों को दाखिला दिया जाएगा। 3 किमी के दायरे में रहने वाले बच्चों से भी पूरी सीटें नहीं भरती हैं तो 6 किमी के दायरे में रहने वाले बच्चों को दाखिला दिया जाएगा। इसके बाद भी स्कूल में सीटें बचती हैं तो 6 किमी से अधिक दूरी पर रहने वाले बच्चों को दाखिला दिया जा सकता है। 

दरअसल इन दिशा-निर्देशों में साफ कहा गया है कि इन 298 निजी स्कूलों में कोई मैंनेजमेंट कोटा नहीं होगा। सरकारी जमीन पर चल रहे अल्पसंख्यक स्कूल अपने समुदाय के बच्चों के लिए सीटें आरक्षित कर सकते हैं। विशेष श्रेणी के तहत बने निजी स्कूल (सशस्त्र बल, केंद्रीय कर्मचारियों, विशेष बच्चों आदि) विशेष श्रेणी के लिए सीटें आरक्षित कर सकते हैं। दिल्ली के उप मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने नेबरहुड फॉर्मूले का पालन कड़ाई से करने की बात कही है। उन्होंने दावा भी किया है कि सरकारी दिशा-निर्देशों से प्रवेश प्रक्रिया पारदर्शी होगी। बहरहाल, इसका तो पता बाद में ही लगेगा पर सरकार का नेबरहुड फॉर्मूला एक ऐसा दिशा-निर्देश है, जिसके दूरगामी असर होंगे। निजी स्कूल जो लीज पर सरकार से जमीन लेते हैं और सरकार उन्हें उस समय अपनी नीतियों बाबत स्पष्ट कर देती हैं तो बाद में उनका पालन करने से मुकरना या फिर कई तरह की दलीलें देने कहां तक उचित है। यह बात तो स्पष्ट है कि शिक्षा के क्षेत्र में निजीकरण की बढ़ती दखल अंदाजी की राह सरकार की शिक्षा के प्रति उदासीनता या यों कहे कि सरकार का बाजार के आगे सरेंडर करने वाली प्रवृत्ति का ही नतीजा है। यह निजी स्कूलों की सरासर धौंस ही है कि जब भी सरकार आम जन हित की भावना वाला कोई फैसला लेती है तो वे उसके विरोध में खड़े हो जाते हैं। कानून के डर से पालन करने को बाघ्य तो होते हैं पर किस तरह करते हैं,इसका हालिया उदाहरण यहां पेश है। हाल ही में राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग ने 12 उपशिक्षा निदेशकों को समन किया है। दरअसल दिल्ली के निजी स्कूलों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए आरक्षित सीटों के तहत होने वाले दाखिलों के आंकड़ें कई बार मांगने के बाद भी आयोग को उपलब्ध नहीं कराए गए थे। आयोग एक साल से यह आंकड़े मांग रहा है। आयोग एक अध्ययन करा रहा है जिसके लिए इन आंकड़ों की जरूरत है। कई बार कहने के बावजूद अब भी 400 स्कूलों के आंकड़ें नहीं मिले हैं। यह तो एक बानगी है। अब दिल्ली सरकार को देखना है कि वह ऐसा मेकनिज्म तैयार करे कि नेबरहुड फॉमरूला महज कागजी दिशा-निर्देश बन कर ना रह जाए।

लेखिका
अलका आर्य


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