■ सरकारी स्कूलों में प्राथमिक से लेकर हाईस्कूल तक की शिक्षा के बारे में आमतौर से धारणा यही है कि उनमें कुछ नवाचार नहीं होता।

परिषदीय प्राथमिक स्कूलों में अभी तक प्रदान की जाने वाली शिक्षा का अद्यतनीकरण और उन्नयन जरूरी हो गया है। अब प्राथमिक शिक्षकों के लिए पारंपरिक विषयों के अलावा पर्यावरण, बाल मनोविज्ञान और सूचना तकनीकी जैसे विषयों की भी जानकारी रखनी जरूरी कर दी गई है। खासकर शिक्षक बनने के लिए प्रयासरत अभ्यर्थियों को अपने इस ज्ञान की परीक्षा से गुजरना भी पड़ेगा। यह समय की मांग भी है। 

वस्तुत: सूचना और ज्ञान के नित नवीन शाखाओं के उभरने और नए प्रयोगों के कारण शिक्षक का अद्यतन जानकारी से लैस होना जरूरी है। शिक्षामित्रों का समायोजन रद होने के बाद बेसिक शिक्षा निदेशालय ने परिषदीय प्राथमिक स्कूलों में 68,500 शिक्षकों की भर्ती के लिए शासन को प्रस्ताव भेजा है तो, परिषदीय प्राथमिक स्कूलों में शिक्षकों की भर्ती के लिए पहली बार आयोजित लिखित परीक्षा का प्रारूप भी राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एससीईआरटी) ने तैयार कर लिया है। 

इसके मुताबिक अब परिषदीय स्कूलों में शिक्षक बनने के लिए अभ्यर्थियों का पारंपरिक विषयों के अलावा तार्किक ज्ञान, सूचना तकनीकी और जीवन कौशल/ प्रबंधन एवं अभिवृत्ति जैसे क्षेत्रों में भी जानकारी का ज्ञान परखा जाएगा। पर्यावरण के क्षेत्र में उनसे पृथ्वी की संरचना, नदियां, पर्वत, महाद्वीप, महासागर व जीव, प्राकृतिक संपदा, अक्षांश व देशांतर, सौरमंडल, भारतीय भूगोल, पर्यावरण संरक्षण और प्राकृतिक आपदा प्रबंधन का ज्ञान अपेक्षित होगा। सूचना तकनीकी के क्षेत्र में अभ्यर्थियों को शिक्षण कौशल विकास, कक्षा-शिक्षण तथा विद्यालय प्रबंधन के क्षेत्र में सूचना तकनीकी, कंप्यूटर, इंटरनेट, स्मार्टफोन, शिक्षण में उपयोगी एप्स और डिजिटल शिक्षण सामग्री के उपयोग की जानकारी से संबंधित सवालों से गुजरना होगा।

 सरकारी स्कूलों में प्राथमिक से लेकर हाईस्कूल तक की शिक्षा के बारे में धारणा यही है कि उनमें कुछ नवाचार नहीं होता। एक बंधे बंधाए र्ढे पर ही शिक्षा आगे बढ़ती रहती है लेकिन, जिस तेजी से दुनिया बदल रही है, उसका स्वरूप और जरूरतें बदल रही हैं, नई तकनीकी व्यवहार में आ रही है, व्यावहारिक जीवन की रूपरेखा में बदलाव आ रहा है, उसे देखते हुए बच्चों की शिक्षा के तौर तरीकों में भी बदलाव की जरूरत है। प्रयास शुरू हो चुका है, समय ही बताएगा कि प्राथमिक शिक्षक उस कसौटी पर कितना खरा उतर पाते हैं और बच्चों का बेहतर भविष्य गढ़ने में इससे कितनी मदद मिलेगी।


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