नया पाठ्यक्रम
उत्तर प्रदेश में मदरसों में पढ़ाए जाने वाले विषयों को और भी उन्नत बना कर उसे रोजगार से जोड़ने की कवायद चल रही है। इस काम में एनसीईआरटी की किताबों की मदद ली जा रही है। यूपी मदरसा बोर्ड की नवंबर और दिसंबर में महत्वपूर्ण बैठक होने जा रही है, जिसमें इसके प्रारूप पर विचार किया जाएगा और मदरसा पाठ्यक्रम में संशोधन को अंतिम रूप दिया जाएगा। स्वरूप तय हो जाने के बाद सत्र 2017-18 से मदरसों में नया सिलेबस शुरू हो जाएगा।

यह मामला बहुत संवेदनशील है इसलिए राज्य सरकार ने पहले ही तय कर दिया है कि मदरसों में पढ़ाई जा रही धार्मिक शिक्षा में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा। सरकार ने मदरसा बोर्ड के रजिस्ट्रार के साथ ही मदरसा प्रबंधकों, मुस्लिम विचारकों, एनसीईआरटी के प्रतिनिधियों के साथ कई बैठकें की हैं। अभी प्रदेश में कुल 19 हजार दो सौ 13 मदरसे हैं जिनमें 560 राज्य सरकार से अनुदानित हैं।

मदरसों का नया पाठ्यक्रम एक नई रौशनी लेकर. आएगा और प्रदेश की  प्रगति में भी निश्चय ही भागीदार बनेगा।

यह शुभ संकेत है कि मदरसे खुद ही दीनी तालीम के साथ नई शिक्षा की ओर अग्रसारित हो चुके हैं। लखनऊ और इलाहाबाद जैसे कई जिलों में ऐसे मदरसे भी हैं जो सुविधा और पढ़ाई में मॉडर्न स्कूलों को भी मात दे चुके हैं। समय के साथ कंधे से कंधा मिला कर चलना ही समझदारी होती है। जो यह नहीं करता वह पीढ़ियों पीछे छूट जाता है। अगर आज की पीढ़ी को दीनी तालीम के साथ आधुनिक तालीम देने की ओर समाज बढ़ रहे हैं तो यह वक्त की बड़ी जरूरत है। रोजगारपरक या वोकेशनल शिक्षा, जिसे कौशल विकास भी कहा जा रहा है, इस पीढ़ी के भविष्य को सुगम बनाने के लिए है।

विज्ञान और तकनीक की शिक्षा बच्चों के लिए बहुत आवश्यक है। यही पढ़ाई उन्हें जीवन की दौड़ में आगे रखेगी। यदि कोई युवा परंपरागत व्यवसाय या शिक्षा में नई तकनीक को अपनाता है तो उसी की उन्नति होनी है। अगर वह समाज कुछ लोगों को रोजगार देने में कामयाब रहा तो उसी की प्रगति होगी। ऐसे में मदरसों का नया पाठ्यक्रम एक नई रौशनी लेकर आएगा और प्रदेश की प्रगति में भी निश्चय ही भागीदार बनेगा। आवश्यकता उसे मन से स्वीकार करने की है।

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