बेसिक शिक्षा में पाठ्यपुस्तक वितरण की लेटलतीफी को लेकर चिंताजनक स्थिति पर जागरण संपादकीय
प्राइमरी विद्यालयों में प्रवेश के बाद बच्चों के स्कूल छोड़ने को लेकर सरकार अक्सर चिंता जताती रहती है, लेकिन इसके पीछे की वजहों पर भी गौर किया जाना चाहिए। इसका एक प्रमुख कारण तो यही है कि विद्यालय बच्चों में पढ़ाई के प्रति रुचि नहीं जागृत कर पा रहे हैं। बच्चों को विद्यालय में रोके रखने के लिए जरूरी है कि नियमित कक्षाएं चलें और पढ़ाई हो, लेकिन ऐसा तभी संभव है जब पाठ्यपुस्तकें उपलब्ध होंगी।
सरकारी कामकाज में उदासीनता का इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है कि आधा शैक्षिक सत्र बीतने के बाद किसी भी जिले में प्राइमरी कक्षाओं के लिए शत-प्रतिशत पुस्तकों की आपूर्ति नहीं की जा सकी है। विभागीय अधिकारी इसका ठीकरा प्रकाशकों पर फोड़ते हैं लेकिन उनसे आपूर्ति कराने के लिए दबाव बनाने की जिम्मेदारी किसकी है?
जिन प्रकाशकों से इसके लिए करार किया गया था, उनमें एक-दो के खिलाफ भी कड़े कदम उठाए गए होते तो निश्चित तौर पर इसका कुछ असर होता । सिर्फ नोटिस देने को कार्रवाई नहीं माना जा सकता। आखिर यह बच्चों के भविष्य का मसला है। प्रदेश के 1.33 लाख प्राथमिक विद्यालयों में इस बार 1.92 करोड़ बच्चे प्रवेश पा चुके हैं।
बेसिक शिक्षा विभाग ने जून माह में ही इन बच्चों को पुस्तकें उपलब्ध कराने के लिए 13 प्रकाशकों से करार किया था। इन बच्चों के लिए 11 करोड़ 50 लाख पुस्तकें प्रकाशित होनी थीं, लेकिन प्रकाशक तय समय के भीतर ऐसा नहीं कर पाए ।
कोढ़ में खाज यह कि पांचवीं कक्षा के लिए प्रकाशित वाटिका पुस्तक में राष्ट्रगान ही गलत छाप दिया गया और दस जिलों में उनकी आपूर्ति भी कर दी गई। अब इन्हें वापस मंगाया जा रहा है। इस तरह की लापरवाही आखिरकार बच्चों का ही नुकसान करती हैं।
शिक्षा की नींव मजबूत होनी चाहिए लेकिन इसके लिए विभाग को हर स्तर पर गंभीरता से निगाह रखनी होगी। बच्चों की जरूरतों को समझा जाना चाहिए, उनके लिए पठन-पाठन का वातावरण बनाया जाना चाहिए, समय से पुस्तकें उपलब्ध होनी चाहिए तभी वह विद्यालयों में टिके रहेंगे और ड्राप आउट को कम किया जा सकेगा।
साभार : जागरण संपादकीय
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