बच्चों के अनुकूल दुनिया और शिक्षकों और अभिभावकों में बचपन बनाए रखने की आवश्यकता
बच्चों की हँसी में खिलता है संसार का हर रंग,
हर शिक्षक में जिंदा रहे उनकी उमंग का संग।
बाल दिवस बच्चों के लिए एक विशेष दिन है, जो न केवल उनकी मासूमियत और जिज्ञासा को समझने का अवसर प्रदान करता है, बल्कि हमारे लिए भी एक ऐसा मौका है जब हम यह विचार करें कि क्या हम उनके लिए एक आदर्श वातावरण का निर्माण कर रहे हैं। बच्चों का मानसिक और भावनात्मक विकास तब ही संपूर्णता की ओर बढ़ सकता है जब उनके आसपास का संसार उनके लायक हो और उनकी परवरिश करने वाले लोग - माता-पिता, शिक्षक, और अभिभावक - में भी बालसुलभता का भाव जीवित रहे।
एक बच्चे के लिए अनुकूल दुनिया का अर्थ है ऐसी जगह जहाँ वे बिना किसी भय के अपनी भावनाओं को व्यक्त कर सकें, अपनी कल्पनाओं को साकार कर सकें, और अपनी जिज्ञासा को निर्भयता से प्रश्नों में बदल सकें। आज के समय में यह जरूरी है कि हम बच्चों के लिए एक ऐसा माहौल तैयार करें जहाँ वे स्वतंत्रता के साथ बढ़ सकें, उनकी सोच को प्रोत्साहन मिले, और उनकी गलतियों को सीखने के अवसर के रूप में देखा जाए।
बाल दिवस का अर्थ केवल उत्सव मनाना नहीं है, बल्कि यह हमारे लिए एक स्मरण है कि बच्चों की परवरिश में हम कैसी दुनिया का निर्माण कर रहे हैं। उन्हें एक स्वस्थ और सकारात्मक वातावरण प्रदान करने की दिशा में हमारा यह संकल्प होना चाहिए कि उनका मानसिक विकास बिना किसी मानसिक दबाव के हो।
बाल मनोविज्ञान के आधार पर यह देखा गया है कि बच्चों का विकास उस माहौल पर निर्भर करता है जिसमें वे पले-बढ़े। एक शिक्षक की भूमिका केवल पढ़ाने की नहीं, बल्कि बच्चों के साथ एक ऐसा रिश्ता बनाने की होती है जिसमें वह बालसुलभता के साथ जुड़ सकें। एक शिक्षक जो अपने अंदर बचपन को जीवित रखता है, बच्चों के लिए प्रेरणास्रोत बनता है। उसकी स्नेहपूर्ण दृष्टि बच्चों को सुरक्षा और विश्वास का अनुभव कराती है, जिससे बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ता है और उनका व्यक्तित्व समृद्ध होता है।
शिक्षाशास्त्र के अनुसार, शिक्षण का उद्देश्य केवल विषयों को पढ़ाना नहीं है, बल्कि बच्चों को एक ऐसा दृष्टिकोण देना है जिससे वे समाज के प्रति संवेदनशील बन सकें। शिक्षक का बच्चों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण ही उसे एक आदर्श भूमिका में रखता है। बाल दिवस इस दृष्टिकोण को अपनाने का एक अवसर है कि हम बच्चों के साथ अपने संवाद में लचीलापन और धैर्य रखें, जिससे उनके सीखने की प्रक्रिया सहज हो सके।
बाल दिवस हमारे लिए एक प्रेरणा है कि हम बच्चों के लिए एक अनुकूल दुनिया बनाने में अपने योगदान को पुनः परिभाषित करें। शिक्षकों और माता-पिता को चाहिए कि वे अपने अंदर का बचपन जीवित रखें ताकि बच्चों को एक ऐसा माहौल मिले जिसमें वे अपनी कल्पना को साकार कर सकें और जीवन के हर पहलू को स्वतंत्रता के साथ सीख सकें। बच्चों के लायक संसार का निर्माण ही बाल दिवस का असली उद्देश्य है।
✍️ लेखक : प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर
परिचय
बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।
शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।
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