...............उसमें मदिरा नहीं शीतल जल की धारा बहती है। A+ A- Print Email पाषाण के भीतर भी मधुर स्रोत होते हैं, उसमें मदिरा नहीं शीतल जल की धारा बहती है। जयशंकर प्रसाद
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