पुस्तकालय की धूल झाड़ें, ज्ञान के दीप जलाएं  


किताबें ज्ञान और बुद्धिमत्ता की अनमोल स्रोत हैं। यह केवल शब्दों का संग्रह नहीं, बल्कि अनुभव, विचार और संस्कारों का एक भंडार हैं। किताबें मानव सभ्यता का वो खजाना हैं, जो न केवल ज्ञान प्रदान करती हैं बल्कि समाज के निर्माण में भी अहम भूमिका निभाती हैं। बच्चों के जीवन में किताबों का महत्व जितना है, उतना ही महत्वपूर्ण है उन्हें पढ़ने की आदत विकसित करना। विशेष रूप से स्कूलों में शिक्षकों की भूमिका इसमें केंद्रीय है, क्योंकि वे बच्चों के लिए इस आदत को विकसित करने का आधार तैयार करते हैं। विद्यालयों में किताबों के प्रति बच्चों की रुचि विकसित करना शिक्षक का एक प्रमुख उत्तरदायित्व है। एक शिक्षित समाज के निर्माण में किताबों की भूमिका तो महत्वपूर्ण है ही, लेकिन इससे अधिक महत्वपूर्ण है बच्चों में किताबें पढ़ने की आदत विकसित करना।  


यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कई बार विद्यालयों के पुस्तकालयों में किताबें रखे रखे सड़ने के लिए छोड़ दी जाती हैं। इनकी हालत देखकर लगता है जैसे ये केवल दीमकों का भोजन बनने के लिए रखी गई हैं। यदि बच्चों के हाथों में किताबें पहुंचाई जाएं और पढ़ने की प्रेरणा दी जाए, तो ये किताबें पढ़ते-पढ़ते भले फट जाएं, लेकिन सड़ने न पाएं। इस बदलाव के लिए शिक्षकों का सक्रिय होना आवश्यक है।  


शिक्षक का काम सिर्फ पाठ्यक्रम पढ़ाना नहीं है; बल्कि बच्चों को किताबों के माध्यम से सीखने और सोचने की दिशा देना है। शिक्षक बच्चों को यह समझाएं कि किताबें केवल परीक्षा पास करने का माध्यम नहीं हैं, बल्कि ज्ञान का असीमित भंडार हैं।  
बच्चों को प्रेरित करने के लिए शिक्षक स्वयं उदाहरण बन सकते हैं। यदि शिक्षक कक्षा में किताबों का उपयोग करेंगे और बच्चों को अतिरिक्त पठन सामग्री की ओर प्रेरित करेंगे, तो बच्चे स्वतः ही इसका अनुसरण करेंगे।  


पढ़ने की आदत एक कौशल है जो न केवल बौद्धिक विकास करती है, बल्कि बच्चों को एक बेहतर इंसान भी बनाती है। यह आदत तर्कशक्ति, कल्पनाशक्ति और समस्या-समाधान कौशल को मजबूत करती है। जब एक बच्चा किताब पढ़ता है, तो वह अलग-अलग संस्कृतियों, विचारों और अनुभवों से परिचित होता है, जो उसके दृष्टिकोण को व्यापक बनाते हैं। पढ़ने की आदत बच्चों के शैक्षणिक प्रदर्शन को सुधारने में मदद करती है। यह आदत केवल स्कूल तक सीमित नहीं रहती, बल्कि उनके पूरे जीवन को प्रभावित करती है। एक बार पढ़ने की आदत विकसित हो जाने के बाद, बच्चा न केवल पाठ्यपुस्तकों तक सीमित रहता है, बल्कि साहित्य, विज्ञान, इतिहास, और अन्य विषयों की गहराई में जाने की क्षमता प्राप्त करता है।


अधिकांश सरकारी विद्यालयों में पुस्तकालयों की स्थिति चिंताजनक रहती आई है। पुस्तकालयों में किताबें केवल अलमारियों की शोभा बढ़ाने के लिए रखी जाती हैं। कई बार इन पर धूल और दीमक का कब्जा हो जाता है। यदि इन्हें बच्चों तक पहुँचाने का प्रयास हो, तो ये किताबें न केवल सुरक्षित रहेंगी, बल्कि अपने उद्देश्य को भी पूरा करेंगी।  

सरकारी विद्यालयों में पढ़ने वाले अधिकतर बच्चे आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग से आते हैं। उनके पास किताबें खरीदने का साधन नहीं होता। यदि शिक्षक उन्हें पुस्तकालय की किताबें पढ़ने को प्रेरित करें, तो यह उनकी शिक्षा में एक बड़ा योगदान होगा। शिक्षक इस आदत को विकसित करने में एक मार्गदर्शक की भूमिका निभाते हैं। बच्चों को पढ़ने के लिए प्रेरित करना, सही किताबें चुनने में मदद करना, और उनकी रुचियों के अनुसार पुस्तकों की सिफारिश करना शिक्षक की जिम्मेदारी है। 


शिक्षक बच्चों को कहानी सुनाने, पुस्तक चर्चा और पुस्तकालय सत्र आयोजित करने के माध्यम से पढ़ने के प्रति उत्सुक बना सकते हैं। विद्यालयों में पुस्तक पठन अभियान चलाए जा सकते हैं, जहां बच्चों को किताबें पढ़ने और उनके सार प्रस्तुत करने का मौका दिया जाए। इस तरह की गतिविधियां बच्चों में पढ़ने की आदत विकसित करेंगी और उनका आत्मविश्वास बढ़ाएंगी।  


ग्रामीण और सरकारी स्कूलों में शिक्षकों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जैसे संसाधनों की कमी, पुस्तकालयों का अभाव, और बच्चों के परिवारों में पढ़ने की आदत की कमी। इन समस्याओं का समाधान सामूहिक प्रयासों से संभव है। स्कूलों में पुस्तक मेले, सामुदायिक पुस्तकालयों का निर्माण, और डिजिटल संसाधनों का उपयोग करके बच्चों को पढ़ने के लिए प्रेरित किया जा सकता है।


किताबें समाज का सबसे बड़ा खजाना हैं, लेकिन उनका उपयोग तभी सार्थक है जब वे पढ़ी जाएं। यदि शिक्षक और विद्यालय मिलकर बच्चों में पढ़ने की आदत विकसित करें, तो यह शिक्षा के क्षेत्र में एक बड़ी क्रांति साबित हो सकती है। किताबें दीमकों का भोजन न बनें, बल्कि बच्चों के ज्ञान का स्रोत बनें।  

बच्चों की आंखों में चमके जो सपना,
किताबें बनाएं हर सपना सच अपना।


 ✍️  लेखक : प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर


परिचय

बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।

शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।

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