जानिए! रटने से आगे बच्चों को तर्क और नवाचार का पाठ कैसे पढ़ाएं?


तर्क से जुड़े हर जवाब और सवाल,
उनसे ही निकलेगा हर हल कमाल।
सोचने की आदत जब पड़ जाएगी,
ज्ञान की गहराई जरूर बढ़ जाएगी।


आज के शिक्षा परिदृश्य में अक्सर देखा जाता है कि शिक्षक बच्चों की याद्दाश्त को मुख्य सफलता मानते हैं। वीडियो और सोशल मीडिया पर यह गर्व के साथ प्रदर्शित किया जाता है कि बच्चे सभी राज्यों, जिलों के नाम या बड़े पहाड़े एक सांस में गिना सकते हैं। हालांकि, यह उपलब्धि उनके स्मरण-शक्ति को दिखाती है, लेकिन क्या यह उनकी समझ और आलोचनात्मक सोच का प्रमाण है?  


शिक्षाशास्त्र के अनुसार, स्मरण-शक्ति शिक्षा का केवल एक चरण है। जब बच्चे केवल जानकारी याद करने तक सीमित रह जाते हैं, तो उनकी रचनात्मकता और समस्याओं को सुलझाने की क्षमता का विकास अवरुद्ध हो सकता है। यह आवश्यक है कि शिक्षण विधियां बच्चों को सोचने, तर्क करने और नए दृष्टिकोण अपनाने की प्रेरणा दें।  शिक्षाशास्त्र में, सीखने की प्रक्रिया को तीन चरणों में देखा जाता है—ज्ञान, समझ, और अनुप्रयोग। तथ्यों को याद करना 'ज्ञान' का हिस्सा है, लेकिन इसका असली महत्व तब होता है जब छात्र उन्हें समझने और दैनिक जीवन में लागू करने की क्षमता विकसित करते हैं।


जब बच्चा राज्यों और जिलों के नाम याद करता है, तो क्या वह यह समझता है कि इन राज्यों की भौगोलिक, सांस्कृतिक या आर्थिक विशेषताएं क्या हैं? क्या पहाड़े रटने से वह गणितीय समस्याओं का समाधान बेहतर ढंग से कर पाता है? सीखने की प्रक्रिया में, जानकारी को संदर्भ में रखना और उसे दैनिक जीवन से जोड़ना अत्यंत आवश्यक है।  इसके लिए कुछ टिप्स दिए जा सकते हैं


प्रश्न पूछने का माहौल बनाएं: छात्रों को जानकारी देने के बजाय उनसे प्रश्न पूछें, जैसे "यह जानकारी आपके लिए कैसे उपयोगी हो सकती है?"

समूह चर्चा का आयोजन: छात्रों को उनके विचार साझा करने और नए दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रोत्साहित करें।

तथ्यों को कहानियों से जोड़ें: राज्यों की राजधानियों को याद कराने के बजाय, उनसे संबंधित ऐतिहासिक या सांस्कृतिक कहानियां साझा करें।

प्रोजेक्ट-आधारित शिक्षण: छात्रों को परियोजनाओं में शामिल करें, जैसे कि नक्शा बनाने या दैनिक जीवन में गणित का उपयोग ढूंढने का काम।

गलतियों से सीखने का अवसर: बच्चों को गलतियाँ करने दें और फिर उन पर विचार करने के लिए प्रेरित करें।


शिक्षकों को यह समझना होगा कि बच्चों की समझ को प्राथमिकता देना ही सही शिक्षा है। केवल स्मरण-शक्ति को महत्व देकर हम बच्चों को यांत्रिकता की ओर धकेलते हैं। शिक्षा का उद्देश्य उन्हें ऐसा नागरिक बनाना है, जो समस्याओं को समझ सके और रचनात्मक समाधान दे सके।  

इसके लिए छात्रों को उन्हें विषयों को अपने दृष्टिकोण से देखने की स्वतंत्रता दें। संभव हो तो शिक्षकों और माता-पिता के लिए एक सहयोगी वातावरण बनाएं। बच्चों को सवाल पूछने और नई चीजें खोजने के लिए प्रोत्साहित करें।

याद्दाश्त केवल पहला कदम है, लेकिन समझ, तर्क और रचनात्मकता की मंज़िल पर पहुंचना ही सच्ची शिक्षा है। आइए, हम शिक्षण में इस दृष्टिकोण को अपनाएं और बच्चों को उनकी पूरी क्षमता का एहसास कराएं।  


 ✍️  लेखक : प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर


परिचय

बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।

शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।




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