बेसिक शिक्षा: परीक्षा प्रबंधन में बढ़े बालमन की अहमियत


परीक्षा प्रबंधन शिक्षा प्रणाली का एक अहम हिस्सा है, लेकिन वर्तमान में इसकी व्यवस्था बच्चों के मानसिक और शैक्षणिक विकास को प्रभावित कर रही है। बेसिक शिक्षा परिषद की परीक्षाओं के समय और प्रक्रिया में सुधार की आवश्यकता है, ताकि बच्चों को बेहतर अवसर मिल सके। इस आलेख में, हम परीक्षा प्रबंधन में सुधार के लिए आवश्यक बदलावों पर चर्चा करेंगे।


बेसिक शिक्षा परिषद द्वारा आयोजित परीक्षाओं का प्रबंधन वर्तमान में कई मुद्दों से जूझ रहा है, जिन्हें बच्चों के मानसिक और शैक्षणिक विकास को ध्यान में रखते हुए सुधारने की आवश्यकता है। आज की परीक्षा व्यवस्था केंद्रीकृत पर असंगठित है, जिसके कारण बच्चों को परीक्षा की अनिश्चितताओं का सामना करना पड़ता है। यह असमंजस बच्चों के लिए तनाव का कारण बनता है और उनकी पढ़ाई में बाधा डालता है। 


सबसे पहली और प्रमुख समस्या परीक्षा का अनिश्चित समय है। बहुत बार शिक्षक, बच्चे और अभिभावक यह नहीं जान पाते कि अगली परीक्षा कब होगी, क्योंकि परीक्षा समय सारणी पहले से निर्धारित नहीं होती। इसके कारण बच्चे मानसिक दबाव में रहते हैं, जो उनके शैक्षणिक परिणामों को प्रभावित करता है। 


इसके अलावा, परीक्षा और पढ़ाई के बीच का अंतराल बहुत कम होता है। जब एक परीक्षा के बाद दूसरी परीक्षा आने में समय कम होता है, तो बच्चों को गहराई से पढ़ाई करने और समझने का समय नहीं मिल पाता। यह उनके मानसिक विकास को प्रभावित करता है, क्योंकि बच्चे एक परीक्षा से दूसरी परीक्षा तक दौड़ते रहते हैं, जिसके कारण वे मानसिक रूप से थक जाते हैं।


कभी-कभी परीक्षाओं को जल्दबाजी में आयोजित किया जाता है, खासकर जब समय कम हो। यह स्थिति बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालती है। बच्चों को न केवल विषयों को समझने का समय नहीं मिलता, बल्कि वे मानसिक तनाव और दबाव के कारण अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन भी नहीं कर पाते।


आखिर क्या हो समाधान?  
इन समस्याओं को हल करने के लिए कुछ शिक्षाशास्त्रीय उपाय सुझाए जा सकते हैं। सबसे पहले, परीक्षा की समय सारणी को पहले से निर्धारित किया जाना चाहिए। जब परीक्षा का समय स्पष्ट होता है, तो बच्चे और शिक्षक दोनों ही अपनी तैयारी योजनाबद्ध तरीके से कर सकते हैं। इससे बच्चों को मानसिक शांति मिलती है और वे अपनी पढ़ाई को बेहतर तरीके से समर्पित कर पाते हैं।


इसके अलावा, परीक्षाओं के बीच पर्याप्त समय का अंतराल होना चाहिए। यदि एक परीक्षा और दूसरी परीक्षा के बीच पर्याप्त समय हो, तो बच्चे उन विषयों को गहराई से समझने का समय पा सकते हैं। साथ ही, वे मानसिक रूप से आराम कर सकते हैं, जिससे उनकी सीखने की क्षमता बढ़ेगी।


परीक्षाओं की संख्या को सीमित किया जाना भी आवश्यक है। अत्यधिक परीक्षाएं बच्चों में तनाव उत्पन्न करती हैं, जिससे वे अपनी रचनात्मकता और सोचने की क्षमता को पूरी तरह से प्रदर्शित नहीं कर पाते। यदि परीक्षा की संख्या कम की जाए और उनकी गुणवत्ता में सुधार किया जाए, तो बच्चों को अधिक लाभ होगा। 


आखिरकार, परीक्षा के बजाय सतत और समग्र मूल्यांकन पद्धति पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। इससे बच्चों को केवल परीक्षा की तैयारी करने की बजाय अपनी पूरी क्षमता का प्रदर्शन करने का अवसर मिलेगा, और वे अपनी रचनात्मकता और कौशल को बेहतर तरीके से दिखा सकेंगे।

 
बेसिक शिक्षा परिषद को परीक्षाओं के प्रबंधन पर गंभीरता से पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। शिक्षाशास्त्रीय दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए, बच्चों के मानसिक और शैक्षणिक विकास को प्राथमिकता देनी चाहिए। इससे न केवल बच्चों का समग्र विकास होगा, बल्कि वे परीक्षा को एक चुनौती की बजाय एक अवसर के रूप में देखेंगे।


 ✍️  लेखक : प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर


परिचय

बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।

शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।

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