बालश्रम
की समस्या भारत में ही नहीं, दुनिया कई देशों में एक विकट समस्या के रूप
में विराजमान है। जिसका समाधान खोजना जरूरी है। भारत में 1986 में बालश्रम
निषेध और नियमन अधिनियम पारित हुआ। इस अधिनियम के अनुसार, बालश्रम तकनीकी
सलाहकार समिति नियुक्त की गई। इस समिति की सिफारिश के अनुसार, खतरनाक
उद्योगों में बच्चों की नियुक्ति निषिद्ध है। भारतीय संविधान के मौलिक
अधिकारों में शोषण और अन्याय के विरुद्ध अनुच्छेद 23 और 24 को रखा गया है।
अनुच्छेद 23 खतरनाक उद्योगों में बच्चों के रोजगार पर प्रतिबंध लगाता है।
और संविधान के अनुच्छेद 24 के अनुसार, 14 साल के कम उम्र का कोई भी बच्चा
किसी फैक्ट्री या खदान में काम करने के लिए नियुक्त नहीं किया जाएगा और न
ही किसी अन्य खतरनाक नियोजन में नियुक्त किया जाएगा और फैक्ट्री कानून
1948 के तहत 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के नियोजन को निषिद्ध करता है।
15 से 18 वर्ष तक के किशोर किसी फैक्ट्री में तभी नियुक्त किए जा सकते हैं,
जब उनके पास किसी अधिकृत चिकित्सक का फिटनेस प्रमाण पत्र हो। इस कानून में
14 से 18 वर्ष तक के बच्चों के लिए हर दिन साढ़े चार घंटे की कार्यावधि तय
की गई है और रात में उनके काम करने पर प्रतिबंध लगाया गया है। फिर भी इतने
कड़े कानून होने के बाद भी बच्चों से होटलों, कारखानों, दुकानों इत्यादि
में दिन-रात कार्य कराया जाता है और विभिन्न कानूनों का उल्लंघन किया जाता
है। जिससे मासूम बच्चों का बचपन पूर्ण रूप से प्रभावित होता है।
आज विश्व में जितने बाल श्रमिक हैं, उनमें सबसे ज्यादा भारत देश में हैं। एक अनुमान के अनुसार, विश्व के बाल श्रमिकों का एक तिहाई से ज्यादा हिस्सा भारत में है और भारत के 50 प्रतिशत बच्चे अपने बचपन के अधिकारों से वंचित हैं। न उनके पास शिक्षा की ज्योति पहुंच पा रही है और न ही उचित पोषण। हालांकि फैक्ट्री अधिनियम, बाल अधिनियम, बाल श्रम निरोधक अधिनियम आदि भी बच्चों के अधिकार को सुरक्षा देते हैं। किंतु इसके विपरीत आज की स्थिति बिलकुल अलग है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भारत में 2 करोड़ बाल मजदूर हैं। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार तो भारतीय सरकारी आंकड़ों से लगभग ढाई गुना ज्यादा 5 करोड़ बच्चे बाल मजदूर हैं। असल में कहा जाए तो बच्चे अपनी उम्र के अनुरूप कठिन काम गरीबी के कारण करते हैं। गरीबी ही बच्चे को बाल श्रमिक बनने को मजबूर करती है।
इसके अलावा भी बढ़ती जनसंख्या, सस्ती
मजदूरी, शिक्षा का अभाव और मौजूदा कानूनों का सही तरीके से क्रियान्वित न
हो पाना जैसे कारण बाल श्रम के लिए जिम्मेदार हैं। वर्तमान में भारत देश
में कई जगहों पर आर्थिक तंगी के कारण मां-बाप ही थोड़े पैसों के लिए अपने
बच्चों को ऐसे ठेकेदारों के हाथ बेच देते हैं, जो अपनी सुविधानुसार उनको
होटलों, कोठियों तथा अन्य कारखानों आदि में काम पर लगा देते हैं। और उन्हीं
होटलों, कोठियों और कारखानों के मालिक बच्चों को थोड़ा बहुत खाना देकर
मनमाना काम कराते हैं और घंटों बच्चों की क्षमता के विपरीत या उससे भी
अधिक काम कराना, भर पेट भोजन न देना और मन के अनुसार कार्य न होने पर पिटाई
यही बाल मजदूरों का जीवन बन जाता है। इसके अलावा भी काम देने वाला
नियोक्ता बच्चों को पटाखे बनाना, कालीन बुनना, वेल्डिंग करना, ताले बनाना,
पीतल उद्योग में काम करना, कांच उद्योग, हीरा उद्योग, माचिस, बीड़ी बनाना,
कोयले की खानों में, पत्थर खदानों में, सीमेंट उद्योग, दवा उद्योग आदि सभी
खतरनाक काम अपनी मर्जी के अनुसार कराते हैं। कई बार श्रम करते-करते बच्चों
को यौन शोषण का शिकार भी होना पड़ता है। खतरनाक उद्योगों में काम करने से
कैंसर और टीबी आदि जैसी गंभीर बीमारियां का सामना करना पड़ता है। एक तरह से
बाल श्रमिक का जीवन जीते-जी नरक बन जाता है।
आज बाल मजदूरी समाज पर कलंक है। इसके खात्मे के लिए सरकारों और समाज को मिलकर काम करना होगा। साथ ही साथ बाल मजदूरी पर पूर्णतया रोक लगनी चाहिए। बच्चों के उत्थान और उनके अधिकारों के लिए अनेक योजनाओं का प्रारंभ किया जाना चाहिए। जिससे बच्चों के जीवन पर सकारात्मक प्रभाव दिखे और शिक्षा का अधिकार भी सभी बच्चों के लिए अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए। गरीबी दूर करने वाले सभी व्यावहारिक उपाय उपयोग में लाए जाने चाहिए। बालश्रम की समस्या का समाधान तभी होगा, जब हर बच्चे के पास उसका अधिकार पहुंच जाएगा। इसके लिए जो बच्चे अपने अधिकारों से वंचित हैं, उनके अधिकार उनको दिलाने के लिए समाज और देश को सामूहिक प्रयास करने होंगे।
आज देश के प्रत्येक नागरिक को बाल मजदूरी का उन्मूलन करने की
जरूरत है और देश के किसी भी हिस्से में कोई भी बच्चा बाल श्रमिक दिखे तो
देश के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह बाल मजदूरी का विरोध करे। और
इस दिशा में उचित कार्यवाही करे, साथ ही साथ उनके अधिकार दिलाने के प्रयास
करें। क्योंकि बच्चे ही भारत के भविष्य हैं। क्योंकि जब तक बच्चों को उनके
अधिकारों और शिक्षा से वंचित रखा जाएगा। तब तक देश के उज्ज्वल भविष्य की
कल्पना करना निरर्थक है।
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