स्पेन में अभिभावकों का मानना है कि इसके बोझ से बच्चों का व्यक्तित्व प्रभावित हो रहा है।
स्पेन में माता-पिता स्कूली बच्चों को दिए जाने वाले होमवर्क से नाराज हैं।
वे हर हाल में अपने बच्चों को इस बोझ से मुक्त करना चाहते हैं। एक अरसे से
वे ज्यादा होमवर्क का विरोध करते रहे हैं। उनका कहना है कि ज्यादा होमवर्क
बच्चों की मानसिक सेहत के लिए भी हानिकारक है। होमवर्क ने बच्चों की अन्य
गतिविधियों, जैसे खेल, संगीत, थिएटर, बागवानी, घूमने आदि सभी बातों को खत्म
कर दिया है। माता-पिता का मानना है कि शिक्षा बच्चों के विकास के लिए होती
है, न कि उन्हें परेशान करने के लिए।इसीलिए स्पेनिश एलाइन्स ऑफ पेरेंटस
एसोसिएशन ने ज्यादा होमवर्क दिए जाने के खिलाफ हड़ताल का एलान किया है।
पूरे नवंबर भर ज्यादा से ज्यादा माता-पिता को इस आंदोलन में भाग लेने के
लिए आमंत्रित किया जाएगा। एसोसिएशन के प्रेसीडेंट जोस लुई पेजोस का कहना है
कि शिक्षक होने के गुरूर में उन्होंने अपना साधारण विवेक खो दिया है।
शिक्षा का ढांचा ऐसा बना दिया गया है, जहां स्कूल जाने वाले लड़के-लड़कियों
के पास जरा सा भी फ्री टाइम नहीं बचा है। यही नहीं, स्कूल अपने काम अब
माता-पिता को सौंप रहे हैं। ऐसा उन्हें नहीं करना चाहिए। तीन से लेकर छह
साल तक के बच्चों को हर रोज कम से कम आधा घंटा होमवर्क करना पड़ता है।
बच्चों पर इस ज्यादती को हम कभी स्वीकार नहीं कर सकते। स्पेन के करीब
12,000 स्कूल अभिभावकों की इस हड़ताल के दायरे में आएंगे।
साल 2012 में ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक को-ऑपरेशन ऐंड डेवलपमेंट ने अपने एक अध्ययन में पाया था कि स्पेन में बच्चों को हफ्ते में साढ़े छह घंटे से अधिक होमवर्क करना पड़ता है, जबकि अन्य 38 देशों में यह समय 4.9 घंटे है। स्पेन के माता-पिता की बात सुनकर अपने यहां के बच्चों की याद आती है। यहां होमवर्क घंटे-मिनट से नहीं, विषय के हिसाब से तय होता है। छोटे से छोटा बच्च तक इतना होमवर्क लाता है कि माता-पिता परेशान हो जाते हैं। और छुट्टियों की तो पूछिए मत। बच्चे खेलने-कूदने, घूमने के मुकाबले होमवर्क करने, और उससे ज्यादा इस चिंता में लगे रहते हैं कि पता नहीं, पूरा भी होगा या नहीं। कहीं घूमने भी जाना हो, तो पहले होमवर्क निपटाते हैं, वरना उसकी चिंता में घूमने का मजा भी किरकिरा हो जाता है।
जैसा कि स्पेन में हो रहा है कि
अध्यापक बच्चों को घर के लिए ज्यादा से ज्यादा काम सौंपकर अपनी जिम्मेदारी
से मुक्त हो लेते हैं, अपने यहां भी कमोबेश यही स्थिति है। इसलिए हर बच्चे
को स्कूल के बाद ट्यूशन की मदद लेनी पड़ती है। इस तरह उसका दिन स्कूल और
उसके काम में निकल जाता है। हमारे यहां भी बच्चों पर किताबों व इम्तिहान और
हर हाल में अच्छी रैंक लाने का इतना बोझ लदा है कि उनके पास किसी खेल-कूद
या अन्य गतिविधि के लिए वक्त ही नहीं बचा है। स्पेन के उदाहरण से सीखकर
स्कूलों को इस समस्या के बारे में सोचना चाहिए।
लेखिका
क्षमा शर्मा
(ये लेखिका के अपने विचार
हैं)
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