स्कूलों में ही बेंत लगाने (केनिंग) के प्रचलन का परिणाम यह होता है कि सिंगापुर में कानून के अनुसार चलना बच्चे के दैनिक आचरण का हिस्सा बन जाता है, लेकिन...

अपने देश में अपराध बढ़ने की एक बड़ी वजह यह मानी जाती है कि अपराधियों को सजा का कोई खौफ नहीं रह गया है। न्याय व्यवस्था ऐसी है कि वे बिना कोई सजा पाए या नाममात्र की सजा पाकर छूट जाते हैं। शायद इसीलिए अपने यहां तमाम अपराधों के लिए सख्त से सख्त सजा निर्धारित करने की मांग जोर पकड़ रही है। ऐसे में उन देशों के बारे में जानना दिलचस्प होगा, जहां छोटे अपराधों के लिए भी कड़ी सजा का प्रावधान है। उदाहरण के लिए सिंगापुर में अगर आप सड़क पर थूकेंगे तो 500 डॉलर और पार्क में सिगरेट पिएंगे तो 2000 डॉलर का जुर्माना भरना पड़ सकता है। हमारे यहां स्कूलों में, कुछ वर्ष पहले तक अध्यापक-गण छात्रों की बेंत से पिटाई करते थे। अब यह कानूनन जुर्म बना दिया गया है, पर सिंगापुर में यह आज भी है। हां, यह सजा लड़कियों को नहीं दी जाती। लड़कों के लिए छोटी-छोटी बदमाशियों के लिए बेंतों की संख्या स्कूल-प्रशासन द्वारा निर्धारित की जाती है और दाखिले के वक्त अभिभावकों को इसके बारे में बता दिया जाता है। बलात्कार, मादक पदार्थों का अवैध व्यापार, सड़क दुर्घटना में किसी को लापरवाही से कुचल देना, गैर-कानूनी ढंग से ऋण देना या विदेशी वीजा में निर्धारित समय-सीमा से 90 दिनों से अधिक सिंगापुर में रहना, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाना, महिलाओं से छेड़छाड़ करना इत्यादि ऐसे अपराध हैं जिनमें जुर्माने के अतिरिक्त बेंत मारने की सजा है। सिंगापुर की दंड संहिता की धारा 325-332 के अनुसार किसी भी पुरुष अपराधी को, जिसे मेडिकल ऑफिसर ने फिट करार दिया हो और जिसकी उम्र 50 वर्ष से कम हो, ऐसी सजा दी जा सकती है। इसे वे केनिंग कहते हैं। अपराधी को पूरी तरह नंगा कर ऊपर से दोनों हाथ अलग-अलग खूंटी से बांध दिए जाते हैं और नीचे टांगों को थोड़ा फैलाकर उन्हें भी अलग-अलग बांध दिया जाता है। केन, जिसकी मोटाई 1.27 से.मी. से अधिक नहीं होती, को नितंबों पर जोर से मारा जाता है। प्रायः इस चोट के कारण वहां से खून निकलने लगता है। बेंतों की संख्या एक मामले में 24 से अधिक नहीं हो सकती। अगर अलग-अलग मुकदमों में सजा मिली हो तो वह 24 से अधिक हो सकती है। केनिंग के वक्त मौजूद मेडिकल ऑफिसर को अगर ऐसा लगता है कि पिटाई अपराधी की सहन शक्ति की सीमा पार करने वाली है तो वह केनिंग रुकवा कर उसे अस्पताल भेज सकता है। ठीक होने पर अपराधी को बची हुई सजा दी जाती है। 

भारी जुर्माने के कारण कूड़ा फेंकने, सार्वजनिक स्थल पर धूम्रपान करने, लाल-बत्ती पर गाड़ी न रोकने, मिलावट करने जैसे अपराध सिंगापुर के समाज से लगभग गायब हो चुके हैं। स्कूलों में ही बेंत लगाने के प्रचलन का परिणाम यह होता है कि देश के कानून के अनुसार चलना बच्चे के दैनिक आचरण का हिस्सा बन जाता है। यही बच्चा बड़ा होकर जब नौकरी करने लगता है तो उसके मन में यह डर समाया रहता है कि उसे सभी कानूनों को मानना है। 

ये कानून कितने भी कर्मचारी विरोधी क्यों न हों! अगर हड़ताल करना या धरने पर बैठना गैर-कानूनी है तो उसे यह काम नहीं करना है। सिंगापुर में, इसीलिए पिछले कई दशकों से कोई राष्ट्रीय हड़ताल नहीं हो सकी है। छिटपुट घटनाओं को छोड़कर, सरकार की आर्थिक नीतियों के विरुद्ध कोई जुलूस या प्रदर्शन भी देखने को नहीं मिला है। यही कारण है कि सिंगापुर में मीडिया, (प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक, दोनों ) की भूमिका लगभग नगण्य है। अखबारों में विज्ञापनों व ऊट-पटांग गैर-राजनैतिक सूचनाओं के अलावा कुछ भी पढ़ने लायक नहीं मिलता। कला, संस्कृति व साहित्य के क्षेत्र भी इस खौफ से अछूते नहीं। कोई भी नाट्य संस्था सरकार विरोधी नाटक नहीं कर सकती। इन सबका मिला-जुला नतीजा यह है विश्व के देशों में ‘जीवन में प्रसन्नता के सूचकांक’ को देखा जाए तो सिंगापुर का नंबर बहुत नीचे आता है जबकि विकास व प्रति-व्यक्ति आय में वह काफी ऊपर है।  लेखअजेय कुमार    

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