Mdm की व्यापक समीक्षा होने जा रही है कि वर्तमान प्रक्रिया ठीक है या उसमे सुधार होने चाहिये। मेरा सरकार से निवेदन है कि विद्या के मंदिर को गरीबों का लंगर न बनाये। mdm को पूर्णतः खत्म करायें, उसे किसी स्वयंसेवी संस्था के माध्यम से भी जारी रखने का कोई औचित्य नहीं। फिर तो बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार होने लगेगा। 


Mdm पर प्रति छात्र जो कन्वर्जन कास्ट दिया जा रहा है, वही धनराशि छात्र को उसकी प्रतिदिन की उपस्थिति के आधार पर उसके जनधन खाते में माह के अंत में पोस्ट कर दी जाय। इससे विद्यालय लंगर बनने से बचेगारसोइयों का मानदेय बचेगा, शिक्षक को पढ़ाने का समय अधिक मिलेगा और अधिकतम पैसे मिलने के लालच में अभिभावक बच्चों को स्वतः स्कूल भेजने लगेंगे।  जो अभिभावक खेत में गेहूँ कटवाने ले जाते हैं या भैंस चराने भेज दिया करते हैं वे अपने बच्चों को स्कूल भेजेंगे ताकि उनकी उपस्थिति दर्ज हो सके और पैसा ज्यादा मिल सके।  

अक्सर स्कूलों में जाँच में यह बात पता चलती है कि उपस्थिति 50 है और mdm में संख्या 70 दर्ज है और इस पर कार्यवाही हो जाती है। कोटेदार ने 50 की जगह 45 kg की बोरी दी और कहा कि इतना ही सभी बोरी में आता है, उस पर कोई कार्यवाही नहीं करेगा। 50 बच्चे नामांकित आते हैं तो उनके साथ 15 छोटे बच्चे आ जाते हैं जो नामांकित नहीं होते। अब मास्टर 65 न दिखाये तो mdm अपनी जेब से खिलाये।इसका कोई समाधान नहीं हो सकता। न कोटेदार को कोई रोक सकता न मास्टर छोटे गैर नामांकित बच्चों को आने से रोक सकते हैं क्योंकि नामांकित बड़े बच्चे ही उन्हें खेलाते हैं जब उनके माता-पिता दिन में मजदूरी करने गए होते हैं। छोटे बच्चों को यदि मना करेंगे तो बड़े बच्चे उन्हें खेलाने के लिए घर रुक जाएंगे और स्कूल न आएंगे। अतः यह आवश्यक हो गया है कि mdm को समाप्त किया जाय उसका पैसा सीधे उनके खाते में भेजा जाए।जिस प्रकार सरकार सोचती है कि बच्चों को दंड देकर उन्हें सुधारा नहीं जा सकता उसी प्रकार उसे यह भी सोचना चाहिये कि मास्टरों को दण्डित करके mdm में सुधार नहीं किया जा सकता। माँ से बेहतर भोजन कोई नहीं दे सकता, इसलिये बच्चों के जनधन खाते में पैसा भेजकर mdm से उत्पन्न सारी समस्याओं का समाधान करें।

लेखक
मनीराम मौर्य
उ0प्रा0वि0 हरिवंशपुर,
वि0क्षे0-पौली, जनपद-संत कबीर नगर 






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