त्तर प्रदेश राज्य में शनिवार को ‘‘नो-स्कूल बैग डे’ घोषित करने के प्रस्ताव पर विचार कर रही है। वैसे, माना जा रहा है कि यह राज्य सरकार के अंतर्गत आने वाले स्कूलों पर लागू हो सकता है। लेकिन अगर इस फैसले के दायरे में निजी स्कूल भी लाए जाएं तो ज्यादा अच्छा होता। क्योंकि बच्चों पर पड़ने वाले दबाव को सरकारी या निजी स्कूलों के खांचे में नहीं बांटा जा सकता। स्वाभाविक है, इसे सभी वर्ग के विद्यालयों में लागू कराया जाना चाहिए। वैसे, यह विचार सरकार और स्वयंसेवी संगठनों के स्तर पर काफी पहले से होता रहा है कि बच्चों पर किताबों या भारी बस्ते का बोझ कम किया जाए। 

पिछले कुछ सालों में स्कूल और उनके बोर्ड पर यह दिखने और जतलाने की ज्यादा आजादी थी कि उनके स्कूल के बच्चे ज्यादा तेज और स्मार्ट हैं। जबकि इसका उलटा असर देखा गया। यह विचार इसलिए लिया गया ताकि बच्चे क्रिएटिव गतिविधियों में शामिल हो सकें। साथ ही इससे छात्रों और शिक्षकों के बीच संबंध भी बेहतर होंगे और छात्रों के व्यक्तित्व विकास में सहयोग मिलेगा। देखा गया है कि बच्चों को हमेशा से स्कूल साफ्ट टाग्रेट माना जाता रहा है। यहां तक कि ज्यादा पढ़ाई का और पढ़ाई से इतर गतिविधियों में बेहतर करने का दबाव बच्चों पर बनाया जाता है और न चाहते हुए भी इसमें अभिभावकों की भी मौन सहमति रहती है। इस फैसले से कम-से-कम बच्चों पर मानसिक रूप से छहों दिन भारी बस्ता ले जाने की अनिवार्यता खत्म हो जाएगी। 

हालांकि, योगी सरकार को इसके अलावा शिक्षा के कई मोर्चो पर लड़ाई लड़नी है। मसलन; मुनाफे का कारोबार समझकर स्कूल खोलने वालों पर नकेल कसना भी बेहद जरूरी है। आएदिन स्कूलों की फीस बढ़ोतरी के मामले में हनक और नासमझी देखने को मिलती है। नई सरकार से उन अभिभावकों की यह उम्मीद परवान चढ़ी है कि अब उन्हें मनमाने तरीके से बढ़ी हुई फी देने से निजात मिलेगी। साथ ही उन स्कलों पर भी नकेल कसने की महती आवश्यकता है जो पढ़ाई की आड़ में बेवजह के काम के वास्ते हजारों रुपये देने का दबाव बच्चों के परिजनों पर डालते हैं। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने नि:संदेह अपने एक माह के शासन में कुछ क्रांतिकारी निर्णय लिये हैं और बेहतरी की उम्मीद जनता को उनकी सरकार से है।

साभार : सम्पादकीय राष्ट्रीय सहारा
 
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