उसूलों पे जहाँ आँच आये टकराना ज़रूरी है जो ज़िन्दा हों तो फिर ज़िन्दा नज़र आना ज़रूरी है,
नई उम्रों की ख़ुदमुख़्तारियों को कौन समझाये कहाँ से बच के चलना है कहाँ जाना ज़रूरी है

बेसिक शिक्षा के सकारात्मक प्रसार करने को ज्यादा महत्व देने पर कुछ लोग मुझे कहते रहते हैं कि आप सभी का ये मिशन शिक्षण संवाद अकेले बेसिक शिक्षा  के प्रति व्याप्त समाज में नकारात्मक सोच और बुराईयों से पार नहीं पा सकता और मैं हंस कर उन्हें एक कहानी सुनाता हूँ, जो मैंने  एक पुस्तक में पढ़ी थी,आप भी पढ़िए :-
एक जंगल में आग लगी, आग भी इतनी भयावह कि कुछ भी शेष बचने की उम्मीदें नज़र नहीं आ रही थी।  सभी जानवरों में जान बचाने की लिए भागमभाग मची थी, लेकिन एक छोटी नन्हीं चिड़िया इन सबके जान बचाने के उपक्रम से बिलकुल उलट जंगल से सटे सरोवर से अपनी नन्ही चोंच में पानी भर कर उस दावानल में डाल रही थी उसका ये क्रम निरंतर जारी था। पानी दावानल में डालती फिर उड़ कर सरोवर से चोंच भरती फिर उस भयंकर आग को शांत करने का अपने से बन पड़ने वाला प्रयास कर रही थी ! 
जंगल के कई भयंकर नकारात्मक विचार रखने वाले जीव उसके इस क्रियाकलाप पर एक नज़र डालते, तिरस्कृत करने वाली हंसी के साथ अपनी जान बचाने के जुगाड़ में लग जाते।

एक बन्दर से रहा न गया और उसने नन्हीं चिड़िया से पूछ ही लिया,
ये क्या पागलपन है नन्हीं चिड़िया तेरे चोंच भरकर पानी डालने से इस भयंकर दावानल पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। जब जंगल के बड़े - बड़े जीव अपनी जान की जुगत में लगे हुए है तो तुम क्यों बेवकूफों की तरह अपनी जान जोखिम में डाल रही हो।

 साथियों उस नन्ही चिड़िया ने जवाब दिया मरना तो एक दिन सब को है लेकिन जब भी इस जंगल में लगी आग का इतिहास लिखा जायेगा तब मेरा नाम आग बुझाने वालों में लिखा जायेगा न कि तटस्थ रहकर अपनी जान बचाने वालों में, या केवल दर्शक बनकर नकारात्मक उपदेश देने में।

वर्तमान में मिशन शिक्षण संवाद का विस्तार पिछले एक वर्ष में ही देश के 6 राज्यों में,व उत्तरप्रदेश के 53 जनपदों तक हो चुका है, लगभग 10000 से अधिक शिक्षक  इससे स्वयं को जोड़कर बेसिक शिक्षा में सकारात्मक परिवर्तन पर अपना ध्यान दे रहे हैं और ये श्रृंखला नित तीव्र गति से बढ़ रही है। ये इस बात का सूचक है कि मिशन में व्यक्तिवाद के लिए कोई जगह नहीं है और आशा करते हैं कि न ही भविष्य में होगी।


अब आते हैं मुख्य बिंदु पर जिसके लिये ये कहानी सुनायी गयी,
क्या आप केवल अपने विद्यालय या व्यक्तिगत पहचान बनाने तक सीमित रहना चाहते हैं?
क्या आपका एक मात्र लक्ष्य केवल अपने विद्यालय को  सर्वश्रेष्ठ बनाकर अपने उच्च अधिकारियों की नजर में  स्वयं को आदर्श दिखाना है?
क्या आप अपने विद्यालय के लिए किसी पुरुस्कार को पाने की लालसा से विद्यालय में सकारात्मक परिवर्तन कर रहे हैं?
क्या आप केवल स्वयं को सिद्ध करना चाह रहे हैं कि आप सर्वश्रेष्ठ हैं और आपका विद्यालय सर्वोत्तम?
कभी - कभी साधारण व्यक्ति द्वारा दिया एक अच्छा विचार मूर्त रूप नहीं ले पाता, क्यों ?
क्योंकि वो कोई विशिष्ट व्यक्ति द्वारा दिया गया नहीं होता। 
  इन सब बातों का जवाब आप खुद से ही पूछियेगा और उत्तर अगर हाँ होगा तो जाहिर सी बात है आप बताएँगे नहीं समाज को।
  लेकिन उत्तर हाँ में नहीं होना चाहिए, अगर हाँ में हुआ तो मिशन शिक्षण संवाद सफलता में अधूरा है अभी इसके लिए और जागृति लानी होगी।
प्रायः मैंने देखा है कि हर जनपद में कुछ समूह, संगठन  होते हैं जिनका उद्देश्य  बेसिक शिक्षा के उत्थान के लिए होता है, धीरे धीरे वो सब इस कार्य में सकारात्मक पहल कर नकारात्मक प्रचार को कम करने का भी प्रयास करते हैं, धीरे - धीरे जनपद में अधिकारियों के बीच व आस पास उनकी चर्चा भी होने लगती है। फिर एक दिन आता है विचारों के टकराव का जब कोई 2 या विभिन्न समूह आपस में समान विचारों का समन्वय न रखकर स्वयं श्रेष्ठ होने का प्रयास करते हैं। बस वहीं से बेसिक शिक्षा का नकारात्मक प्रचार गति पकड़ता है और जो मूल उद्देश्य था सकारात्मक का वो नकारात्मक में बदल जाता है, क्योंकि वहाँ व्यक्तिवाद हावी हो जाता है कि जो भी अच्छा कार्य हो वो मेरे स्तर से मेरे आस पास के लोगों के द्वारा हो मेरे समूह, संगठन के शिक्षकों के द्वारा हो जिससे शायद मेरा नाम भी आ जाए। सभी के सामने, जैसा राजनीतिक दल करते हैं हर अच्छे कार्य का श्रेय लेने का।
प्रायः यहाँ तक देखा गया है जो शिक्षक अपने विद्यालय और खुद को ही चर्चा में लाना चाहते हैं वो अन्य  बड़े लोगों को यहाँ तक कहते कि आप मेरी प्रशंसा कर देना समूह में, लाइक कर देना, शेयर कर देना, इससे हम  हाईलाइट हो जायेंगे...ये भी नकारात्मक व्यक्तिवाद  है।

मैंने अक्सर लोगों को ये कहते सुना है कि मेरा विद्यालय ऐसा मेरा विद्यालय वैसा। हम ये काम करते वो काम करते, नाम है मेरे विद्यालय का और मेरा। सभी उच्च अधिकारी जानते, अगर हम 2 या 4 दिन विद्यालय न भी जाएँ तो भी कोई समस्या नहीं, सब मैनेज हो जाता।

अपने साथियों के बीच में बैठकर सिर्फ अपने विद्यालय की चर्चा करने मात्र से परिवर्तन नही होगा। परिवर्तन तो तब होगा जब हम अपने कार्यो से और विद्यालयो को प्रेरित कर सके। हमें अपने अंदर से मैं ओर मेरा विद्यालय श्रेष्ठ है की भावना का त्याग करना होगा और हम और हमारे सभी  विद्यालय श्रेष्ठ की भावना को महत्व देना होगा तभी हम सब बेसिक शिक्षा के उत्थान की ओर सबका ध्यान आकर्षित कर सकते है।


  मैंने पाया है कि कई जनपद ऐसे हैं जहाँ बेसिक शिक्षा के सर्वश्रेष्ठ शिक्षक अपना कार्य कर रहे हैं लेकिन वहाँ अच्छे विद्यालय की संख्या का विस्तार न हो रहा, वहीं कुछ ही जनपद ऐसे भी हैं जहाँ ये संख्या लगातार बढ़ रही है।
एक बात और शिक्षक की योग्यता और उसके प्रदर्शन को ही बेसिक के बच्चों की योग्यता मान लेना भूल होगी।
  विषय में योग्य शिक्षक और उसके विद्यालय के बच्चों का योग्य होना दो अलग बात हैं।
कई बार मैंने देखा है कि शिक्षक स्वयं कुछ शिक्षण सामग्री बाजार से बनवाकर लाता है और उसे ऐसे शो करता है जैसे उसके विद्यालय के बच्चों ने बनाया हो।
हमे व्यक्तिवाद से ऊपर उठकर सिर्फ बेसिक शिक्षा के उत्थान के बारे में सोचना होगा और यह तभी होगा जब सब एक साथ मिलकर कार्य करे न कि स्वयं को अलग अलग करके  श्रेष्ठ साबित करने की होड़ में शिक्षा में सकारात्मक सुधार की जगह सिर्फ नकारात्मकता को बढ़ावा दें।
वास्तव में यही तो समस्या है जिस नकारात्मकता को  समाप्त करने के लिए समूह या संगठन का निर्माण किया गया था  वो तो अपने अंदर कूट कूट कर भरी है, पहले उसे समाप्त करना होगा।
व्यक्ति की अपरोक्षानुभूति उसे अन्य व्यक्तियों से विशिष्ट बना देती है। यह अनुभूति किसी विशिष्ट व्यक्ति में नहीं, सभी में होती है। अभिप्राय यह है कि एक ही संसार में रहते हुए, सबके दृष्टिकोण भिन्न हैं, सभी अपने - अपने ढंग के व्यक्ति हैं। 
जब कोई बड़ा उद्देश्य होता है तो छोटी छोटी बातों की कोई जगह नहीं होती अभियान में लेकिन कभी - कभी छोटे छोटे जख्म नासूर बन जाते हैं।
व्यक्तिवाद से ऊपर उठकर सोचना होगा तभी आप हम सब मिलकर बेसिक शिक्षा के सकारात्मक प्रसार में अपनी भूमिका निभा सकते हैं।
अब आपको फैसला करना है कि आपको जंगल की उस नन्हीं चिड़िया मिशन शिक्षण संवाद की तरह बनकर सोचना है और कार्य कर नकारात्मक आग को बुझाना है या उन नकारात्मक जीवों की तरह जो चिड़िया के आग बुझाने की खिल्ली उड़ा रहे थे।


लेखक
आशीष शुक्ल,
प्र०अ०
प्राथमिक विद्यालय बोझवा कुरसेली, हरियावाँ, हरदोई उत्तरप्रदेश 
8182814271

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