सिस्टम की चक्की में शिक्षक!  आदेश पालनकर्ता से भविष्य निर्माता तक के सफर का आत्मावलोकन 


"शिक्षक की स्याही से, रचे भविष्य के रंग,  
सिस्टम बांध रहा उनको, नियमों के संग।"

शिक्षक किसी भी समाज की नींव होते हैं। वे न केवल छात्रों के शैक्षिक ज्ञान का स्रोत होते हैं, बल्कि उनके चरित्र और भविष्य का निर्माण भी करते हैं। एक अच्छे शिक्षक की भूमिका केवल पाठ्यक्रम पढ़ाने तक सीमित नहीं होती, बल्कि वह अपने छात्रों में जीवन मूल्यों और नैतिकता का बीज भी बोता है। परंतु आधुनिक शिक्षा प्रणाली में, जहां शिक्षक को एक उपकरण की तरह देखा जाने लगा है, यह संतुलन बिगड़ गया है। शिक्षक, जो कभी समाज के मार्गदर्शक हुआ करते थे, आज सिस्टम के हाथों बंधक बन गए हैं।


शिक्षक रचनात्मकता के जन्मदाता होते हैं। वे छात्रों को नई सोच, प्रश्न पूछने और समस्याओं के समाधान ढूंढने के लिए प्रेरित करते हैं। परंतु वर्तमान शिक्षा प्रणाली में, उन्हें पाठ्यक्रम के सख्त ढांचे और परीक्षा परिणामों तक सीमित कर दिया गया है। शिक्षा का उद्देश्य केवल छात्रों को परीक्षा पास कराना बन गया है, जिससे शिक्षक की रचनात्मकता सीमित हो गई है।


शिक्षकों को भविष्य का निर्माता माना जाता है, क्योंकि वे छात्रों को एक बेहतर नागरिक बनने के लिए तैयार करते हैं। लेकिन आधुनिक शिक्षा प्रणाली ने उन्हें एक मशीन की तरह काम करने पर मजबूर कर दिया है। उन्हें छात्रों की व्यक्तिगत जरूरतों को समझने के बजाय, केवल पाठ्यक्रम पूरा करने और निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए काम करना होता है। यह प्रक्रिया न केवल शिक्षक की भूमिका को सीमित करती है, बल्कि छात्रों की व्यक्तिगत विकास की संभावना को भी बाधित करती है।


शिक्षक को ज्ञान का पथ प्रदर्शक माना जाता है। वह छात्रों को अपने अनुभव और ज्ञान से मार्गदर्शन करता है। लेकिन आज के सिस्टम में, शिक्षक केवल आदेश पालनकर्ता बन गए हैं। उन्हें प्रशासनिक आदेशों, सरकारी नीतियों और नियमों का पालन करना होता है। इससे उनकी स्वतंत्र सोच और मार्गदर्शन की क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।


शिक्षक समाज के आधार होते हैं। वे समाज में नैतिकता, अनुशासन और सद्गुणों को फैलाने का काम करते हैं। लेकिन वर्तमान शिक्षा प्रणाली ने उन्हें एक उपकरण के रूप में उपयोग किया है, जिसका मुख्य उद्देश्य केवल छात्रों को शिक्षित करना नहीं, बल्कि प्रशासनिक कार्यों को पूरा करना रह गया है। यह स्थिति न केवल शिक्षक के आत्म-सम्मान को ठेस पहुंचाती है, बल्कि शिक्षा की गुणवत्ता को भी कम करती है।


शिक्षक छात्रों के विकास के लिए अनिवार्य होते हैं। वे उन्हें न केवल शैक्षणिक ज्ञान प्रदान करते हैं, बल्कि जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित भी करते हैं। लेकिन वर्तमान सिस्टम ने शिक्षकों को ऐसे आदेशों और नीतियों के जाल में फंसा दिया है, जिससे वे छात्रों के लिए एक बाधा बन गए हैं। वे छात्रों को वह ध्यान और मार्गदर्शन नहीं दे पा रहे, जिसकी उन्हें वास्तव में जरूरत है।


शिक्षा प्रणाली में सुधार की जरूरत है ताकि शिक्षक फिर से अपने मूल उद्देश्य को पूरा कर सकें। शिक्षकों को अधिक स्वतंत्रता और रचनात्मकता की आवश्यकता है, ताकि वे अपने छात्रों को बेहतर तरीके से तैयार कर सकें। इसके लिए प्रशासनिक कार्यों को कम करना, परीक्षा आधारित शिक्षा प्रणाली में बदलाव लाना, और शिक्षकों के प्रशिक्षण में सुधार करना आवश्यक है। साथ ही, उन्हें केवल पाठ्यक्रम पूरा करने के बजाय छात्रों की व्यक्तिगत विकास पर ध्यान देने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

शिक्षक केवल एक उपकरण नहीं, बल्कि समाज के निर्माता होते हैं। उन्हें वह सम्मान और स्वतंत्रता मिलनी चाहिए, जो उनके काम के लिए आवश्यक है।

"शिक्षक की मेहनत से, बदलता समाज का रंग-ढंग,  
सिस्टम की जंजीरों में फंसकर, हो गया सब बेरंग।"


✍️  लेखक : प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर


परिचय

बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।

शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।

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