शिक्षक क्यों न  बने एक जीवनपर्यंत शिक्षार्थी?
 

जो खुद को सिखाए, वही सिखा पाए,  
ज्ञान का दीपक सदा जलता दिखा पाए।  

शिक्षण केवल एक पेशा नहीं, बल्कि एक ऐसा कर्म है जो समाज को सशक्त और उन्नत बनाने की नींव रखता है। शिक्षक को ज्ञान का स्रोत और मार्गदर्शक माना जाता है, लेकिन वास्तविकता यह है कि शिक्षक स्वयं एक निरंतर शिक्षार्थी है। सीखना और सिखाना, दोनों ही प्रक्रियाएँ आपस में गहराई से जुड़ी हुई हैं। यदि शिक्षक सीखना बंद कर दे, तो उसका ज्ञान स्थिर हो जाएगा, और स्थिर ज्ञान से न तो शिक्षा प्रासंगिक रह पाएगी और न ही प्रभावी।  


आज का युग तकनीकी प्रगति और सूचना के विस्फोट का है। इंटरनेट ने ज्ञान तक पहुँच को इतना सरल बना दिया है कि विद्यार्थी अब किसी भी विषय पर विस्तृत जानकारी मात्र कुछ ही क्षणों में प्राप्त कर सकते हैं। यह स्थिति शिक्षकों के लिए एक नई चुनौती पैदा करती है। एक ओर, उन्हें विद्यार्थियों की इस जिज्ञासा को प्रोत्साहित करना है, और दूसरी ओर, स्वयं को समय के साथ अद्यतन भी रखना है।  

शिक्षण केवल पाठ्यक्रम को पढ़ाने तक सीमित नहीं है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें शिक्षकों को विद्यार्थियों के व्यक्तिगत और सामाजिक विकास में भी योगदान देना होता है। यह तभी संभव है जब शिक्षक विषयवस्तु के अलावा शिक्षण की कला और नई तकनीकों को भी अपनाने के लिए तैयार हों।  


भारत में शिक्षकों को नियुक्ति से पहले और उसके बाद विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रमों से गुजरना पड़ता है। ये प्रशिक्षण शिक्षकों को नई शिक्षण विधियों, बच्चों की मनोविज्ञान को समझने और शिक्षा के आधुनिक उपकरणों के उपयोग के लिए तैयार करते हैं। सेवापूर्व प्रशिक्षण शिक्षकों को शिक्षा की बुनियादी समझ देता है, जबकि सेवाकालीन प्रशिक्षण उन्हें बदलती परिस्थितियों के अनुसार ढालने में मदद करता है।  

हालाँकि, यह प्रश्न उठता है कि क्या ये प्रशिक्षण शिक्षक में आजीवन सीखने की भावना उत्पन्न करते हैं? अधिकतर प्रशिक्षण कार्यक्रम एक तयशुदा पाठ्यक्रम और सीमित समय के अनुसार संचालित होते हैं। इनमें स्व-विकास और स्व-अधिगम जैसे पहलुओं पर जोर तो दिया जाता है, लेकिन इसका व्यावहारिक अनुप्रयोग शिक्षकों पर निर्भर करता है। यदि शिक्षक स्वयं सीखने की इच्छा नहीं रखते, तो ये कार्यक्रम केवल औपचारिकता बनकर रह जाते हैं।  


आज के विद्यार्थी तकनीकी उपकरणों और इंटरनेट का कुशलतापूर्वक उपयोग कर रहे हैं। कक्षा में वे अपने शिक्षकों से ऐसे प्रश्न पूछते हैं जिनके उत्तर कभी-कभी शिक्षकों के पास नहीं होते। यह स्थिति शिक्षकों के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकती है, लेकिन यह एक अवसर भी है।  

यदि शिक्षक इस स्थिति को सकारात्मक रूप से लें, तो वे स्वयं को एक बेहतर शिक्षार्थी के रूप में विकसित कर सकते हैं। इंटरनेट और तकनीकी उपकरणों का उपयोग न केवल विद्यार्थियों के लिए, बल्कि शिक्षकों के लिए भी उपयोगी हो सकता है। इसके माध्यम से शिक्षक अपने ज्ञान का विस्तार कर सकते हैं और नई शिक्षण विधियों को अपना सकते हैं।  


शिक्षक के लिए यह आवश्यक है कि वह स्व-विकास की प्रक्रिया को अपनाए। यह केवल पेशेवर ज्ञान तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें नैतिक और सामाजिक विकास भी शामिल है। शिक्षक का व्यक्तित्व विद्यार्थियों पर गहरा प्रभाव डालता है। यदि शिक्षक स्वयं अनुशासित, ज्ञानवान और जिज्ञासु होगा, तो यह गुण विद्यार्थियों में भी स्थानांतरित होंगे।  


शिक्षकों के लिए सबसे बड़ी समस्या समय की कमी है। वे न केवल कक्षा में पढ़ाते हैं, बल्कि अन्य प्रशासनिक कार्यों और सामाजिक दायित्वों का भी निर्वहन करते हैं। ऐसे में स्व-अध्ययन और स्व-विकास के लिए समय निकालना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। इस समस्या का समाधान यह है कि शिक्षक अपने दैनिक जीवन में सीखने की आदत को शामिल करें। यह किसी नई पुस्तक को पढ़ने, नई तकनीकी विधियों को सीखने या अन्य शिक्षकों के अनुभवों से प्रेरणा लेने के रूप में हो सकता है।  


एक शिक्षक और विद्यार्थी के बीच संबंध केवल ज्ञान के आदान-प्रदान तक सीमित नहीं है। यह संबंध विश्वास, सम्मान और प्रेरणा पर आधारित है। यदि शिक्षक स्वयं को एक शिक्षार्थी के रूप में प्रस्तुत करता है, तो वह विद्यार्थियों के लिए एक आदर्श बन सकता है। विद्यार्थी यह समझ सकते हैं कि सीखने की प्रक्रिया कभी समाप्त नहीं होती।  


शिक्षक के रूप में जीवनभर सीखना एक अनिवार्यता है। यह न केवल शिक्षक के व्यक्तिगत विकास के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह शिक्षा की गुणवत्ता को भी प्रभावित करता है। शिक्षकों को चाहिए कि वे अपने पेशे को एक यात्रा के रूप में देखें, जहाँ हर कदम उन्हें कुछ नया सिखाए।  


✍️  लेखक : प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर


परिचय

बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।

शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।

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