आज भी शिक्षक के नसीब में जूते और चप्पल, बेबसी के इस सच की कब बदलेगी तस्वीर?
दबंगों की दुनिया का ये हाल है,
गुरु के सम्मान पर सवाल है।
कब तक सहेगा शिक्षक ये दर्द,
हर दिल में अब यही सवाल है।
शिक्षक, जिसे कभी समाज में ‘गुरु’ की उपाधि मिली थी, आज न केवल अपमान का शिकार है, बल्कि उसे सार्वजनिक रूप से शारीरिक हिंसा का सामना करना पड़ रहा है। झांसी की घटना न केवल हमारे सामाजिक ताने-बाने की गिरावट का प्रमाण है, बल्कि यह दिखाती है कि कैसे हमारे समाज में शिक्षकों के सम्मान का ह्रास हो रहा है। ग्राम प्रधान द्वारा स्कूल के प्रधानाध्यापक पर की गई मारपीट, बच्चों और स्टाफ के सामने की गई अभद्रता, न केवल भयावह है बल्कि यह सवाल खड़ा करती है कि क्या शिक्षक आज भी समाज के नेतृत्वकर्ता और आदर्श माने जाते हैं?
शिक्षक, जो अपने ज्ञान और मेहनत से बच्चों के जीवन को गढ़ता है, उसे आज भी अपने ही अधिकारों के लिए संघर्ष करना पड़ता है। प्रबंध समिति के गठन के नाम पर दबंगई और राजनीतिक हस्तक्षेप केवल शिक्षण प्रक्रिया को बाधित ही नहीं करते, बल्कि शिक्षकों को मानसिक और शारीरिक रूप से भी तोड़ देते हैं।
आज के समय में शिक्षक का स्थान एक प्रेरक शक्ति का नहीं रह गया है। उसे केवल सरकारी आदेशों और सामाजिक दबाव के बीच जकड़ दिया गया है। शिक्षक को प्रशासनिक कागज़ी कार्यों में उलझा दिया गया है, और उसके शैक्षिक कार्य को गौण कर दिया गया है। झांसी की घटना इसका एक प्रत्यक्ष उदाहरण है, जहां एक ग्राम प्रधान ने अपनी मनमानी के चलते शिक्षण प्रक्रिया को ही बाधित कर दिया। जब बच्चों ने अपने शिक्षक को अपमानित और भयभीत होते देखा होगा, तो उन पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा होगा? शिक्षा केवल किताबों और कक्षाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह अनुशासन, आदर्श और नैतिकता का पाठ भी पढ़ाती है। अगर शिक्षक का स्थान इस प्रकार कलंकित होगा, तो बच्चों को समाज के प्रति आदर और सहयोग की भावना कैसे सिखाई जा सकेगी?
सवाल जो शिक्षा व्यवस्था को कटघरे में खड़ा करते हैं? क्या यह वही समाज है जो गुरुओं को देवता मानता था? आज शिक्षक के हिस्से में सम्मान नहीं, बल्कि जूते और गालियां क्यों हैं? क्या शिक्षक सिर्फ़ एक चाबी है, जिसे ताकतवर लोग अपने स्वार्थ के ताले खोलने के लिए इस्तेमाल करते हैं? यह सवाल हर संवेदनशील नागरिक के दिल में उठना ही चाहिए।
स्कूलों में ग्राम प्रधानों के दबाव को कम करने के लिए विद्यालय प्रबंध समिति (SMC) की व्यवस्था लागू की गई थी। इसका उद्देश्य था कि बच्चों के अभिभावक स्कूल प्रबंधन में भागीदार बनें और ग्राम प्रधान के एकाधिकार को खत्म किया जा सके। लेकिन सवाल यह है कि क्या SMC व्यवस्था इस दबाव को खत्म कर पाई? जब प्रधानाध्यापक पर खुलेआम थप्पड़ और जूते बरसाए जाते हैं, तो क्या यह इस व्यवस्था की विफलता नहीं है?
SMC का गठन हुआ, लेकिन प्रधान का दबदबा खत्म नहीं हुआ। स्कूलों में अब भी यह देखने को मिलता है कि प्रधान SMC के गठन में अपनी पसंद के लोगों को शामिल करवाने की पूरी कोशिश करते हैं। बच्चों की शिक्षा का मंदिर आज भी सत्ता के अधिकार छीनने के खेल का मैदान बना हुआ है। सवाल यह है कि जब SMC के बावजूद प्रधान के आदेश चलते हैं, तो इस व्यवस्था का क्या मतलब है?
कैसे कायम है प्रधान का दबाव?
1. प्रबंध समिति की चुनाव प्रक्रिया में दखल: प्रधान अपने समर्थकों को पदाधिकारी बनवाने के लिए शिक्षक और अभिभावकों पर दबाव बनाते हैं।
2. डर का माहौल: विरोध करने पर शिक्षक और स्टाफ को धमकियां मिलती हैं।
3. शारीरिक हिंसा का सहारा: जैसे इस घटना में हुआ, जहां प्रधान ने बच्चों के सामने शिक्षक की पिटाई की। यह दर्शाता है कि प्रधान SMC व्यवस्था को ताक पर रखकर मनमानी कर रहे हैं।
बदलाव की पुकार
यह वक्त है कि समाज अपनी जिम्मेदारी समझे और शिक्षकों के प्रति सम्मान और आदर का भाव पुनः स्थापित करे। इसके लिए जरूरी है:
1. कठोर कानूनी सुरक्षा: शिक्षकों को हिंसा और अपमान से बचाने के लिए कड़े कानून लागू किए जाएं। प्रधान या अन्य बाहरी व्यक्तियों के स्कूल प्रबंधन में दखल पर सख्त कार्रवाई सुनिश्चित की जाए। शिक्षकों के साथ हिंसा करने वालों को तुरंत गिरफ्तार कर सख्त सजा दी जाए।
2. शिक्षकों का मनोबल और सुरक्षा बढ़ाना: शिक्षकों को समाज में आदर्श व्यक्तित्व के रूप में प्रस्तुत करने के लिए सरकारी और सामाजिक प्रयास किए जाएं। स्कूलों में शिक्षकों को आपात स्थिति में सुरक्षा मुहैया कराने हेतु प्रयास हो, इंस्टेट हेल्पलाइन जिस पर तुरंत सहायता मिले।
3. राजनीतिक हस्तक्षेप की समाप्ति: स्कूल के प्रशासन और प्रबंध समितियों में राजनीतिक दबाव को समाप्त कर निष्पक्षता और पारदर्शिता सुनिश्चित की जाए।
4. आदर्श प्रधान: ग्राम प्रधान जैसे पदों पर उन्हीं व्यक्तियों को चुना जाए, जो समाज के प्रति सकारात्मक सोच रखते हों। प्रधान प्रतिनिधियों और पतियों के नाम पर गुंडई की छवि वालों की सार्वजनिक प्रतिष्ठा भंग की जाए।
5. SMC की स्वायत्तता: SMC के सदस्यों को स्वतंत्र रूप से काम करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए।
6. सामाजिक जागरूकता: गांव और शहरी स्तर पर ऐसे कार्यक्रम चलाए जाएं, जो समाज में शिक्षकों की भूमिका और उनके महत्व को समझाएं। शिक्षक केवल नौकरी करने वाला नहीं, बल्कि समाज का निर्माता है। इस सोच को परिवार और शिक्षा प्रणाली में शामिल किया जाए।
बदलाव का आह्वान
शिक्षक, समाज का निर्माता, सभ्यता का पथप्रदर्शक और नई पीढ़ी का मार्गदर्शक, आज बेबस और असहाय दिखाई देता है। झांसी की घटना ने यह साबित कर दिया कि हमारे समाज में शिक्षक की गरिमा कितनी असुरक्षित और उपेक्षित है। ग्राम प्रधान द्वारा स्कूल में घुसकर बच्चों के सामने शिक्षक का अपमान और पिटाई सिर्फ एक घटना नहीं, बल्कि यह हमारी सामूहिक सोच और व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न है।
यह घटना हमें चेतावनी देती है कि अगर शिक्षकों को वह सम्मान नहीं मिला, जिसके वे हकदार हैं, तो न केवल शिक्षा व्यवस्था, बल्कि पूरा समाज अंधकार में डूब जाएगा। शिक्षा की बुनियाद तभी मजबूत होगी जब शिक्षकों को स्वतंत्रता और सम्मान मिलेगा। SMC की व्यवस्था को प्रभावी बनाना होगा ताकि ग्राम प्रधान के हस्तक्षेप को समाप्त किया जा सके।
यह समाज की जिम्मेदारी है कि शिक्षक को वह सम्मान दे जो वह वर्षों से खोता आ रहा है। आखिर बड़ा सवाल है कि शिक्षक के स्वाभिमान पर चोट करने वालों के खिलाफ़ कठोर कानून क्यों नहीं बनते? आखिर क्यों स्कूलों में आपातकालीन सुरक्षा सिस्टम लगाना ज़रूरी नहीं समझा जाता? और समाज को यह कब समझ आएगा कि शिक्षक पर हमला, शिक्षा पर हमला है?
यह घटना केवल एक शिक्षक की नहीं, बल्कि पूरे समाज की विफलता है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि शिक्षक सम्मान के साथ अपनी भूमिका निभा सकें। केवल प्रशासन नहीं, बल्कि समाज को भी आगे आकर यह संकल्प लेना होगा कि शिक्षा का मंदिर हिंसा से मुक्त रहेगा।
शिक्षक का कार्य केवल पढ़ाना नहीं, बल्कि बच्चों को जीवन के मूल्यों का पाठ पढ़ाना है। लेकिन जब शिक्षक खुद भय और अपमान के वातावरण में काम करेगा, तो क्या वह बच्चों के भविष्य को संवारेगा? जब तक हमारे समाज में शिक्षक सुरक्षित नहीं होंगे, तब तक शिक्षा प्रणाली मजबूत नहीं होगी। झांसी की घटना जैसे वाकये न केवल शर्मनाक हैं, बल्कि समाज के खोखलेपन को भी उजागर करते हैं।
वो जो उजालों का सौदागर बना,
अंधेरों में खुद को सहता रहा।
जिसने दी सबको उड़ने की उम्मीद,
वो पंख अपने ही कटवाता रहा।
✍️ लेखक : प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर
परिचय
बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।
शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।
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