बदलते समय की जरूरत हैं कि अब शिक्षक पाठ्यक्रम के बंधक बनने के बजाय बनें बच्चों के सलाहकार
संवाद का पुल बने, शिक्षक का हर कदम,
विद्यार्थी के संशय का हल मिले उसे हरदम।
आज के दौर में किशोरों के सामने चुनौतियाँ तेजी से बदल रही हैं। तकनीकी के विकास और समाज में हो रहे बदलावों ने बच्चों की मानसिकता और उनकी ज़रूरतों को भी प्रभावित किया है। राष्ट्रीय पाठ्यचर्या और पाठ्यक्रम पर राष्ट्रीय फोकस समूह का आधार पत्र बताता है कि किशोरावस्था एक ऐसा समय है, जब बच्चे सामाजिक और व्यक्तिगत अस्थिरता से गुजरते हैं। ऐसे में शिक्षकों को न केवल पढ़ाई तक सीमित रहना चाहिए, बल्कि एक सलाहकार की भूमिका भी निभानी चाहिए। यह भूमिका उन्हें मानसिक और सामाजिक समस्याओं से निपटने में मदद करने की होनी चाहिए।
आज तकनीकी का उपयोग जितना बढ़ा है, उसका दुरुपयोग भी उतना ही बढ़ गया है। मोबाइल फोन और इंटरनेट की सस्ती उपलब्धता ने अश्लील सामग्री तक बच्चों की पहुँच आसान बना दी है। पहले सिनेमाघरों में वयस्क फिल्मों पर आयु प्रतिबंध था, लेकिन अब यह सीमाएँ लगभग समाप्त हो चुकी हैं। किशोरों के मन और समाज पर इसका गहरा असर पड़ रहा है। ऐसे में शिक्षकों को इन मुद्दों पर खुलकर बात करनी होगी और विद्यार्थियों को तकनीकी का सही उपयोग सिखाना होगा।
विद्यालयों में अब ऐसे विषयों पर चर्चा का माहौल बनाना बेहद जरूरी हो गया है। शिक्षकों को चाहिए कि वे बच्चों को यह भरोसा दिलाएँ कि उनकी समस्याएँ सुनी जाएँगी और उनका सही समाधान मिलेगा। किशोरों को यह समझाने की जरूरत है कि तकनीकी का सही उपयोग उनके जीवन को बेहतर बना सकता है।
तकनीकी उपकरणों और स्मार्ट कक्षाओं के आने से शिक्षा में कई बदलाव हुए हैं। लेकिन इसके कारण शिक्षकों और विद्यार्थियों के बीच संवाद कम हो गया है। पहले शिक्षक विद्यार्थियों से खुलकर बात कर सकते थे और उनकी समस्याओं को समझ सकते थे। आज कुछ विद्यालय कंपनियों की तरह काम कर रहे हैं, जहाँ यह व्यक्तिगत जुड़ाव कम होता जा रहा है। इससे न केवल विद्यार्थियों की समस्याएँ बढ़ रही हैं, बल्कि शिक्षकों के पास सलाह देने के अवसर भी सीमित हो गए हैं।
शिक्षकों को चाहिए कि वे विद्यार्थियों से संवाद को फिर से बढ़ावा दें। व्यक्तिगत समस्याओं और सामाजिक अशांति पर चर्चा के लिए समय निकालें। यह जरूरी है कि शिक्षक विद्यार्थियों के साथ एक दोस्त और मार्गदर्शक की भूमिका निभाएँ।
आज के समय में शिक्षक विद्यार्थियों के लिए केवल एक पाठ पढ़ाने वाले नहीं, बल्कि एक दोस्त, मार्गदर्शक और सहायक के रूप में महत्वपूर्ण हैं। जब विद्यार्थी अपने मन की बातें बिना किसी डर के कह सकें और शिक्षक उनकी समस्याओं को समझकर सही दिशा में मार्गदर्शन करें, तभी शिक्षा का असली उद्देश्य पूरा होता है।
यहाँ यह समझना जरूरी है कि शिक्षक केवल पाठ्यक्रम तक सीमित न रहें। वे विद्यार्थियों के जीवन में उनकी समस्याओं का समाधान करने वाले, उन्हें दिशा देने वाले और सच्चे मार्गदर्शक बनें। तभी शिक्षा के माध्यम से समाज को बेहतर बनाया जा सकता है।
✍️ लेखक : प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर
परिचय
बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।
शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।
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