शिक्षक होने का तमगा
शिक्षा जगत में बदलाव हमेशा से चर्चा का विषय रहा है। समाज और सरकारें यह मानती हैं कि शिक्षकों की भूमिका केवल आदेश मानने तक सीमित है, लेकिन यह धारणा वास्तविकता से दूर है। शिक्षक न केवल शिक्षा प्रणाली के केंद्र में हैं, बल्कि वे बदलाव के प्रमुख वाहक भी हैं। "शिक्षक होने का तमगा" केवल एक सम्मानजनक पदवी नहीं है, बल्कि यह एक बड़ी जिम्मेदारी और विश्वास का प्रतीक है।
बदलाव के इस दौर में, यह जरूरी है कि शिक्षकों को निर्णय प्रक्रिया का अभिन्न अंग बनाया जाए। आज, शिक्षा प्रणाली में कई परिवर्तन हो रहे हैं, लेकिन इन बदलावों को क्रियान्वित करने वाले शिक्षकों से शायद ही कभी उनकी राय ली जाती है। यह विडंबना है कि जो व्यक्ति प्रत्यक्ष रूप से छात्रों को शिक्षा प्रदान करता है, उसे सुधार प्रक्रिया से दूर रखा जाता है।
शिक्षा का उद्देश्य केवल पाठ्यक्रम पूरा करना नहीं है। यह छात्रों को एक जिम्मेदार नागरिक और जीवन के हर पहलू में सफल बनने में मदद करना है। इसके लिए शिक्षकों को पर्याप्त स्वतंत्रता और सहयोग देना आवश्यक है। आज के शिक्षक केवल आदेश मानने वाले कर्मचारी नहीं हैं; वे शिक्षा प्रणाली के सबसे महत्वपूर्ण हितधारक हैं।
यह जरूरी है कि शिक्षकों को उनकी समस्याओं को व्यक्त करने और सुधारों में सक्रिय भागीदारी का मौका मिले। बदलाव तभी सफल हो सकता है जब उसमें हर शिक्षक का सहयोग हो। इससे न केवल शिक्षकों का आत्मविश्वास बढ़ेगा, बल्कि शिक्षा प्रणाली में एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार होगा।
"शिक्षक होने का तमगा" एक ऐसे समाज का निर्माण करने का संदेश देता है, जहां शिक्षक सम्मानित और प्रेरित महसूस करें। इस दिशा में, नीति-निर्माताओं और समाज को शिक्षकों की आवाज सुननी होगी और उनके अनुभवों का लाभ उठाना होगा।
शिक्षा को सुधारने के लिए केवल बड़ी नीतियां बनाना ही पर्याप्त नहीं है। यह भी आवश्यक है कि इन नीतियों को सही दिशा में ले जाने के लिए शिक्षकों की भागीदारी सुनिश्चित की जाए। अंततः, शिक्षा का तमगा तभी सार्थक होगा जब शिक्षक और समाज मिलकर इसे प्रगति की ओर ले जाएंगे।
✍️ लेखक : प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर
परिचय
बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।
शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।
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