यूँ तो बेसिक शिक्षा में शैक्षिक गुणवत्ता और सुधार के नाम पर पिछले कई वर्षों से तरह-तरह के फरमान, आदेश-निर्देश शासन-प्रशासन एवं अधिकारियों द्वारा दिए जाते रहे हैं। गुणवत्ता सुधार के नाम पर शासन-प्रशासन द्वारा कुछ तो ऐसी भी नीतियां बनीं और ऐसे आदेश-निर्देश भी जारी हुए जिनका कि बेसिक शिक्षा गुणवत्ता सुधार के सम्बन्ध में नगण्य महत्व है। इतना ही नहीं दूरदर्शिता के अभाव में जारी आदेशों-निर्देशों से बेसिक शिक्षा में गुणवत्ता सुधार की जगह नकारात्मक असर ही पड़ा और गुणवत्ता में और भी गिरावट आती चली गई।
शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 कानून की ही चर्चा करें तो 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों को कक्षाओं में फेल न करने का नियम हो, प्रवेश हेतु बच्चे की आयु के आधार पर कक्षाओं का निर्धारण करना हो, विद्यालय प्रबंध समिति में बिना किसी पारिश्रमिक के उसके सदस्यों को विभिन्न जिम्मेदारी देने और उनसे शिक्षा सुधार के क्षेत्र में विभिन्न योगदानों की अपेक्षाओं की बात हो, अधिनियम में ऐसे बहुत से नियम बनाए गए जिनको लागू करने के लिए दिए जाने वाले आदेशों-निर्देशों में व्यावहारिक पहलुओं को नजर अंदाज किया गया। इतना ही नहीं आरटीई एक्ट में भी विभिन्न पंजिकाओं को तैयार करने, सूचनाओं, विभिन्न फाइलों और कागजी औपचारिकताओं को पूरित करने हेतु क्लर्क पद का सृजन करने का उल्लेख कहीं नहीं है। अधिनियम द्वारा ही शिक्षकों को ढेर सारी गैर शैक्षणिक जिम्मेदारी दे दी गई है। इसका दुष्परिणाम ये हुआ कि शैक्षिक गुणवत्ता का सुधार धरातल पर होने के स्थान पर समस्त औपचारिकता केवल सूचनाओं के आदान-प्रदान, पंजिकाओं, फाइलों तथा निरीक्षण, जांच और कार्रवाई तक सिमट कर रह गई।
बेसिक शिक्षा में गिरती गुणवत्ता की बात हो तो एमडीएम की चर्चा न करना बेईमानी होगी। विद्यालयों में पके-पकाए मध्याह्न भोजन वितरण योजना की शुरुआत 2001 में की गई। एमडीएम से 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों के स्वास्थ्य-पोषण, शिक्षा से जुड़ाव/नामांकन, विद्यालयों में बच्चों के ठहराव आदि के सम्बन्ध में आवश्यकता से ज्यादा अपेक्षा शासन द्वारा की गई। एमडीएम बनवाने, उसका वितरण करवाने सहित उससे जुड़ी पंजिकाएं तथा सूचना तैयार करने तक की लगभग पूर्ण जिम्मेदारी और जवाबदेही शिक्षकों को देकर बेसिक शिक्षा में गिरती गुणवत्ता में मानो आग में घी डालने का ही काम किया गया।
इधर उत्तर प्रदेश में शासन सत्ता का बदलाव हुआ है। नई सरकार बेसिक शिक्षा में गिरती गुणवत्ता को लेकर चिन्ता व्यक्त कर चुकी है। बेसिक शिक्षा में गिरती गुणवत्ता के सुधार के नाम पर नई सरकार की छटपटाहट मुख्यमंत्री सहित अन्य मंत्रियों के विभिन्न बयानों में साफ नजर आ रही है।
पूर्व में विभिन्न सरकारों, मीडिया के कुछ पत्रकारों तथा कुछ अन्य विचारकों ने बेसिक शिक्षा में गिरती गुणवत्ता का एक मात्र कारण और जिम्मेदार शिक्षकों को ही माना है। विभिन्न शासन द्वारा पूर्वाग्रह से ग्रसित इसी अवधारणा के आधार पर पिछले कई वर्षों से बेसिक शिक्षा में गिरती गुणवत्ता के सुधार के नाम पर वास्तविक कारणों की पड़ताल कर उसके आधार पर सुधार के प्रयास करने की जगह एक सूत्रीय कार्य हो रहा है और वो है विद्यालयों का निरीक्षण/जांच, शिक्षकों का निलंबन, वेतन बाधित करने जैसी दण्डात्मक कार्रवाई। गोया कि बेसिक शिक्षा में गिरती गुणवत्ता का एकमात्र कारण विद्यालयों के जांच/निरीक्षण और बेसिक शिक्षकों के विरुद्ध दण्डात्मक कार्रवाई/सख्ती की कमी ही हो। पूर्वाग्रह से ग्रसित इसी अवधारणा का परिणाम है कि पिछले कुछ वर्षों से शासन को जब कभी भी बेसिक शिक्षा की गिरती गुणवत्ता की फिक्र होती है तो गुणवत्ता सुधार के लिए उसके द्वारा अधिकारियों को विद्यालयों के निरीक्षण का लक्ष्य देकर शिक्षकों के विरुद्ध दण्डात्मक कार्रवाई की सूचना मांगी जाती है। शासन द्वारा इस काम के लिए अपनी समस्त ऊर्जा, संसाधन तथा शक्तियां लगा दी जाती है। इतना ही नहीं जिले के विभिन्न विभागों के अधिकारियों तथा अन्य विभाग के कर्मचारियों द्वारा गोपनीय योजना बनाकर विद्यालयों पर छापा डालने जैसी ऐसी कार्रवाई होती है जैसे कि विद्यालय न होकर कोई आपराधिक अड्डा हो। जांच का ये तरीका न तो विद्यालय और न ही शिक्षक के लिए ही शोभनीय है। गुणवत्ता सुधार के लिए अगर कभी कुछ अलग से करने का प्रयास भी होता है तो वह भी बिना वास्तविक कारण की पड़ताल किए बिना व्यावहारिक पक्ष को जाने आदेश-निर्देश जारी कर दिए जाते हैं। इन परिस्थितियों में बेसिक शिक्षा में गुणवत्ता सुधार के नाम पर शिक्षकों का केवल शारीरिक, मानसिक तथा आर्थिक शोषण ही होता आ रहा है। बेसिक शिक्षा में गुणवत्ता सुधार के नाम पर ये तमाशा बन्द होना ही चाहिए।
शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 कानून की ही चर्चा करें तो 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों को कक्षाओं में फेल न करने का नियम हो, प्रवेश हेतु बच्चे की आयु के आधार पर कक्षाओं का निर्धारण करना हो, विद्यालय प्रबंध समिति में बिना किसी पारिश्रमिक के उसके सदस्यों को विभिन्न जिम्मेदारी देने और उनसे शिक्षा सुधार के क्षेत्र में विभिन्न योगदानों की अपेक्षाओं की बात हो, अधिनियम में ऐसे बहुत से नियम बनाए गए जिनको लागू करने के लिए दिए जाने वाले आदेशों-निर्देशों में व्यावहारिक पहलुओं को नजर अंदाज किया गया। इतना ही नहीं आरटीई एक्ट में भी विभिन्न पंजिकाओं को तैयार करने, सूचनाओं, विभिन्न फाइलों और कागजी औपचारिकताओं को पूरित करने हेतु क्लर्क पद का सृजन करने का उल्लेख कहीं नहीं है। अधिनियम द्वारा ही शिक्षकों को ढेर सारी गैर शैक्षणिक जिम्मेदारी दे दी गई है। इसका दुष्परिणाम ये हुआ कि शैक्षिक गुणवत्ता का सुधार धरातल पर होने के स्थान पर समस्त औपचारिकता केवल सूचनाओं के आदान-प्रदान, पंजिकाओं, फाइलों तथा निरीक्षण, जांच और कार्रवाई तक सिमट कर रह गई।
बेसिक शिक्षा में गिरती गुणवत्ता की बात हो तो एमडीएम की चर्चा न करना बेईमानी होगी। विद्यालयों में पके-पकाए मध्याह्न भोजन वितरण योजना की शुरुआत 2001 में की गई। एमडीएम से 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों के स्वास्थ्य-पोषण, शिक्षा से जुड़ाव/नामांकन, विद्यालयों में बच्चों के ठहराव आदि के सम्बन्ध में आवश्यकता से ज्यादा अपेक्षा शासन द्वारा की गई। एमडीएम बनवाने, उसका वितरण करवाने सहित उससे जुड़ी पंजिकाएं तथा सूचना तैयार करने तक की लगभग पूर्ण जिम्मेदारी और जवाबदेही शिक्षकों को देकर बेसिक शिक्षा में गिरती गुणवत्ता में मानो आग में घी डालने का ही काम किया गया।
इधर उत्तर प्रदेश में शासन सत्ता का बदलाव हुआ है। नई सरकार बेसिक शिक्षा में गिरती गुणवत्ता को लेकर चिन्ता व्यक्त कर चुकी है। बेसिक शिक्षा में गिरती गुणवत्ता के सुधार के नाम पर नई सरकार की छटपटाहट मुख्यमंत्री सहित अन्य मंत्रियों के विभिन्न बयानों में साफ नजर आ रही है।
पूर्व में विभिन्न सरकारों, मीडिया के कुछ पत्रकारों तथा कुछ अन्य विचारकों ने बेसिक शिक्षा में गिरती गुणवत्ता का एक मात्र कारण और जिम्मेदार शिक्षकों को ही माना है। विभिन्न शासन द्वारा पूर्वाग्रह से ग्रसित इसी अवधारणा के आधार पर पिछले कई वर्षों से बेसिक शिक्षा में गिरती गुणवत्ता के सुधार के नाम पर वास्तविक कारणों की पड़ताल कर उसके आधार पर सुधार के प्रयास करने की जगह एक सूत्रीय कार्य हो रहा है और वो है विद्यालयों का निरीक्षण/जांच, शिक्षकों का निलंबन, वेतन बाधित करने जैसी दण्डात्मक कार्रवाई। गोया कि बेसिक शिक्षा में गिरती गुणवत्ता का एकमात्र कारण विद्यालयों के जांच/निरीक्षण और बेसिक शिक्षकों के विरुद्ध दण्डात्मक कार्रवाई/सख्ती की कमी ही हो। पूर्वाग्रह से ग्रसित इसी अवधारणा का परिणाम है कि पिछले कुछ वर्षों से शासन को जब कभी भी बेसिक शिक्षा की गिरती गुणवत्ता की फिक्र होती है तो गुणवत्ता सुधार के लिए उसके द्वारा अधिकारियों को विद्यालयों के निरीक्षण का लक्ष्य देकर शिक्षकों के विरुद्ध दण्डात्मक कार्रवाई की सूचना मांगी जाती है। शासन द्वारा इस काम के लिए अपनी समस्त ऊर्जा, संसाधन तथा शक्तियां लगा दी जाती है। इतना ही नहीं जिले के विभिन्न विभागों के अधिकारियों तथा अन्य विभाग के कर्मचारियों द्वारा गोपनीय योजना बनाकर विद्यालयों पर छापा डालने जैसी ऐसी कार्रवाई होती है जैसे कि विद्यालय न होकर कोई आपराधिक अड्डा हो। जांच का ये तरीका न तो विद्यालय और न ही शिक्षक के लिए ही शोभनीय है। गुणवत्ता सुधार के लिए अगर कभी कुछ अलग से करने का प्रयास भी होता है तो वह भी बिना वास्तविक कारण की पड़ताल किए बिना व्यावहारिक पक्ष को जाने आदेश-निर्देश जारी कर दिए जाते हैं। इन परिस्थितियों में बेसिक शिक्षा में गुणवत्ता सुधार के नाम पर शिक्षकों का केवल शारीरिक, मानसिक तथा आर्थिक शोषण ही होता आ रहा है। बेसिक शिक्षा में गुणवत्ता सुधार के नाम पर ये तमाशा बन्द होना ही चाहिए।
बेसिक शिक्षा में गिरती गुणवत्ता बेशक चिंता का विषय है। कुछ शिक्षकों को छोड़ दिया जाए तो कई बेसिक शिक्षक स्वयं इस गिरावट से चिंतित हैं। यद्यपि कि मेरी नजर में ये आदर्श स्थिति तो नहीं है परन्तु कई शिक्षक अपना वेतन तक खर्च करके विद्यालय के भौतिक, शैक्षिक वातावरण को सुधारने की हरसंभव कोशिश कर रहे हैं। अन्य कई शिक्षक गुणवत्ता सुधार के लिए करना तो बहुत कुछ चाहते हैं पर गैर शैक्षणिक कार्यों की अधिकता, जांच, निरीक्षण और दंडात्मक कार्रवाई का मानसिक दबाव उन्हें एकाग्रता के साथ शिक्षण से जुड़ने ही नहीं दे रहा। उसे कक्षा-शिक्षण के दौरान भी इस बात की चिंता रहती है कि कहीं ऐसा न हो कोई अधिकारी निरीक्षण करने आ जाए और बच्चों के कम नामांकन, नामांकन के सापेक्ष कम छात्र उपस्थिति, किसी अधूरे पूरित पंजिका या विद्यालय भवन के टूट-फूट के आरोप में उसका वेतन बाधित/निलंबित कर दिया जाए । अन्तत: ये स्थिति शिक्षा के गुणवत्ता सुधार में बाधक है।
पिछली सरकारों की तरह बेसिक शिक्षा में गिरती गुणवत्ता का दिखावटी सुधार न करके प्रदेश की नई सरकार को अगर वास्तविक सुधार करना है तो सबसे पहले बेसिक शिक्षा में गिरती गुणवत्ता के कारण के सम्बन्ध में पूर्वाग्रह से ग्रसित अवधारणा से बाहर निकल कर गंभीर प्रयास करते हुए शुरुआत करना पड़ेगा। सर्वप्रथम बेसिक शिक्षा में गिरती गुणवत्ता के वास्तविक कारणों का पता लगाना पड़ेगा। क्योंकि आज तक बेसिक शिक्षा में गुणवत्ता सुधार के समस्त प्रयास कारण और व्यावहारिकता को जाने-समझे बगैर ही किए गए। परिणामत: गुणवत्ता सुधार में अपेक्षित सफलता और दूर होती चली गई।
कैसे होगा बेसिक शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार ?
ये प्रश्न अपने आप में महत्वपूर्ण है कि आखिर कैसे होगा बेसिक शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार ? बेसिक शिक्षा में गुणवत्ता की कमी के वास्तविक कारणों को जानने के लिए एक समिति बनाने की आवश्यकता है। समिति में शिक्षाविद् विशेषज्ञों के साथ-साथ निश्चित संख्या में जागरूक एवं सक्रिय शिक्षकों को अनिवार्य रूप से सम्मिलित किया जाए। यह भी ध्यान रखना पड़ेगा कि समिति बेसिक शिक्षा में गिरती गुणवत्ता के कारणों के सम्बन्ध में पूर्व स्थापित पूर्वाग्रह से ग्रसित अवधारणा से प्रभावित हुए बगैर अपना कार्य सम्पादित करे। समिति सभी पहलुओं का अध्ययन करने हेतु विद्यालयों और गांवों में जाए। वातानुकूलित कार्यालयों में बैठकर निर्णय और निष्कर्ष निकालने और रिपोर्ट प्रस्तुत करने जैसी पूर्व की कमियों से बचना पड़ेगा। समिति शैक्षिक गुणवत्ता में बाधक सभी पहलुओं का अध्ययन करने के बाद बेसिक शिक्षा में गिरती गुणवत्ता के वास्तविक कारणों को बिन्दुवार चिह्नित करे। उसके बाद व्यावहारिकता की कसौटी पर परखने के बाद ही कारण को ध्यान में रखते हुए समिति उसका समाधान प्रस्तुत करते हुए अपनी रिपोर्ट शासन को सौंपे। तदनुरूप जब शासन द्वारा कानून बनेगा और सम्बन्धित आदेश-निर्देश जारी होंगे। बेसिक शिक्षा से जुड़े सभी लोगों जिसमें अभिभावकों को भी शामिल किया जाए की जिम्मेदारी, जवाबदेही तय करते हुए सख्ती से उसका अनुपालन किया और कराया जाए। उसके बाद ही बेसिक शिक्षा में गुणवत्ता सुधार की कल्पना की जा सकती है। यहां यह भी ध्यातव्य है कि बेसिक शिक्षा में गुणवत्ता सुधार के उद्देश्य की पूर्ति में केंद्रीय अधिनियम बाधा न बने केंद्र को भी उस सीमा तक सहयोग करना पड़ेगा।
ध्यान रहे इस कोशिश में बेसिक शिक्षकों की मूलभूत तथा व्यक्तिगत समस्याओं को समिति तथा शासन द्वारा नजर अंदाज करना बेसिक शिक्षा में गुणवत्ता सुधार के उद्देश्य पूर्ति में बाधक बन सकता है।
उम्मीद है कि प्रदेश की नई सरकार बेसिक शिक्षा के गुणवत्ता सुधार के लिए प्रतिबद्ध होकर इस हेतु लीक से हटकर कार्य करते हुए सर्वप्रथम गुणवत्ता में कमी के वास्तविक कारणों की पड़ताल कराएगी और उसके बाद ही सम्बन्धित कारणों के समाधान हेतु गंभीर प्रयास करेगी।
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