5 सितम्बर का दिन शिक्षकों के लिए विशेष होता है इस दिन पूरे देश में श्रेष्ठ कार्य करने वाले  शिक्षकों को  महामहिम राष्ट्रपति स्वयं अपने हाथों से उन्हें सम्मानित करते हैं शेष श्रेष्ठ शिक्षकों को प्रदेश के राज्यपाल महोदय सम्मानित करते हैं। विद्यालयों में बच्चे अपने प्रिय शिक्षक को भी अलग अलग तरीके से सम्मानित कर उन्हें गौरवान्वित करते हैं।
   गत वर्ष सोशल मीडिया पर बाराबंकी की मैडम बॉबी का वीडियो शेयर हुआ था। हमने भी आगे बढ़ाया तो बड़े अच्छे कमेंट मिले, लोगों ने कहा कि इन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार मिलना चाहिए पर कैसे इसका उत्तर कोई नहीं दे पाया। वर्ष 2016 के पुरस्कारों पर माध्यमिक शिक्षा में काफी हंगामा हुआ था। चयन में पक्षपात के आरोप और इंटरव्यू के नंबर के विवाद में मामला न्यायालय की चौखट तक पहुँचता दिखा। शिक्षा के पुरस्कारों में यह कोई पहली बार नहीं हुआ है विगत वर्षों में भी चयनित अभ्यार्थियों के बारे में ऐसी प्रतिक्रियाएं आती रहीं हैं।
      किसी भी अध्यापक के जीवन का एक सबसे बड़ा सपना होता है कि उसे राष्ट्रपति जी के हाथों से पुरस्कार प्राप्त हो। दो वर्ष पूर्व हमारे एक मित्र को यह पुरस्कार प्राप्त हुआ उनसे ज्यादा फख्र हमें था क्योंकि हम उनके मित्र थे निःसंदेह यह पुरस्कार उनकी प्रतिभा का सम्मान था। कुछ दिन बाद उनके एक साथी उनके घर पर उनसे कुछ गंभीर चर्चा कर रहे थे पर मेरे पहुँचते ही चर्चा पर विराम हो गया बाद में पूछने पर पता चला कि वह इस पुरस्कार के लिए फाइल बनाना सीखने आये थे। हमने भी उनसे मजाक में कहा कि हमारी फाइल बनवा दो तो मित्र बोले अभी तुम्हारी उम्र नहीं हुयी है फिर भी अगर तुम्हारा मन है तो तैयारी शुरू कर दो। मेरे मन में जिज्ञासा उत्पन्न हो गयी, अभी तक मुझे लगता था कि विद्यालय में सर्वस्व समर्पित कर देने से ही पुरस्कार मिल जाता होगा पर आज पता चला कि इसके लिए फाइल खुद ही बनानी पड़ती है और फाइल बनाने की तैयारी वर्षो पहले से शुरू हो जाती है।
   कुछ दिन बाद मैंने उन्हें फिर पकड़ा और फाइल की चर्चा छेड़ दी तो उन्होंने बताया कि फाइल में बहुत सारे काम दिखाने पड़ते है आप को काफी प्रमाणपत्र मिले हो, आपने किताबें लिखी हो, समाचार पत्रों में आपके लेख छपे हों, आपके छात्रों ने प्रतियोगी परीक्षा में भाग लेकर विजय हांसिल की हो। आपके अधिकारी ने आपके लिए प्रोत्साहन वाली आख्याएं लिखी हो। हम सोच में पढ़ गए क्योंकि हमारे कई साथी गजब की मेहनत करते थे पर उन्होंने कभी स्कूल के बाहर की बात सोची ही नहीं थी अपना पूरा जीवन स्कूल के बच्चों को समर्पित कर दिया पर कभी अख़बार में नाम तक न छपा था तो उन्हें कैसे ये पुरस्कार मिल पायेगा?
       उन्होंने हमें बताया कि कुछ लोग तो बाकायदा इसके लिए प्लान करते हैं अपने स्कूल के हर कार्यक्रम की खबर अख़बार में छपवाते हैं और मीडिया में सामाजिक और आर्थिक निवेश भी करते हैं। अपने छोटे से बड़े अधिकारियों से सम्पर्क रखते हैं ताकि ब्लॉक और जिला स्तर के कार्यक्रम के प्रमाण पत्र आसानी से हांसिल कर सकें। स्थानीय और गुमनाम पत्रिकाओं में अपने लेख प्रकाशित करवाते हैं स्कूल में मेहनत भले ही न करें पर फील्ड में बहुत मेहनत करते हैं।
    मैंने पूछा ये सब तो ठीक है पर फाइल में दिखाए कार्यो का सत्यापन नहीं होता है तो मुस्कराकर बोले ,नहीं कोई सत्यापन नहीं होता एक बार फाइल निकल गयी तो हर चरण में आपको अपने व्यक्तिगत और राजनैतिक सम्बन्ध के सहारे फाइल मुख्यालय तक पहुँचानी है। यह एक कठिन काम है यहाँ आपको काफी सजग और सतर्क रहना जरूरी है अन्यथा कभी भी आपकी फाइल ऊपर से नीचे पहुँच सकती है। अंतिम चरण में भी दो चीजें आवश्यक है या तो आपका काम मजबूत हो या आपकी राजनैतिक हैसियत। 

ज्यादातर अच्छे काम वाली फाइल राज्य से  आगे भेज दी जाती है पर कई प्रभावशाली लोग भी अपने संबंधो और जुगाड़ की दम पर मौका पा जाते हैं और कई बार तो दसियों साल से स्कूल ना जाने वाले लोग भी इस सूची में स्थान पा जाते हैं और इन्ही कुछ प्रभावशाली लोगों की बजह से हर बार ईमानदार और मेहनती लोगों पर प्रश्न लग जाता है।

       मेरे दिमाग में कई प्रश्न उमड़ रहे थे कि क्या मेहनती और ईमानदार व्यक्ति को अध्यापन के साथ अपनी फाइल की भी तैयारी करते रहना चाहिए? क्या भविष्य में केवल जुगाड़ू लोगों को ही यह पुरस्कार मिलेगा? क्या कोई ऐसा सिस्टम भी बनेगा कि किसी ईमानदार अध्यापक को अपने आप यह सम्मान मिल जाए? मेरे दिमाग में उन मित्रों के चेहरे भी घूमने लगे जिन्हें कुछ वर्ष पूर्व ही छपास रोग लगा था दिमाग पर जोर डालने पर क्लियर हुआ कि इस पुरस्कार के लिए आवश्यक सेवा अवधि अब पूरी होने को है।इसलिए फाइल मैनजेमेंट कार्यक्रम चल रहा है।
        मैंने जानकारी के बाद कई कर्मठ अध्यापकों को अपनी फाइल बनाने के लिए प्रेरित करना चाहा तो उन्होंने साफ़ इंकार कर दिया। उनका कहना था इतने प्रपंच करना और खुद की फाइल बनाकर सम्मान माँगना उन्हें अच्छा नही लगता। बातचीत में यह भी पता चला  कि अभी तक ज्यादातर लोग अपने सेवा के अंतिम वर्ष में आवेदन करते थे ताकि सम्मान के साथ सेवा काल विस्तार हो जाये और कुछ आर्थिक लाभ भी मिल जाएं।पर कुछ सालों से युवाओं में पुरस्कार पाने का चस्का बढा़ है और कई पात्र युवाओं के साथ अपात्र व्यक्ति भी अपनी जुगाड़ के चलते पुरस्कार पा गए।
   कुछ भी हो फाइल मैनजेमेंट जानने के बाद इस पुरस्कार की गरिमा अब मेरे मन में नहीं रही है। जो ईमानदार व्यक्ति जिंदगी में अपना विद्यालय छोड़कर जिला मुख्यालय न गया हो वह अपनी फाइल किन दस्तावेजों के सहारे और किस सिफारिश की दम पर राज्यपाल और मुख्यमंत्री तक पहुचाँ पायेगा और जब सरकार उन शिक्षा के सिपाहियों को सम्मानित नहीं करेगी तो इन पुरस्कारों का कोई औचित्य नहीं।

Disclaimer-ये लेखक के निजी विचार हैं जरुरी नहीं है कि आप इनसे सहमत हों तथ्य पुरस्कार प्राप्त निजी मित्रों से ऑफ द रिकॉर्ड बातचीत पर आधारित हैं इन्हें सार्वजानिक बयान न माना जाए।
लेखक
अवनीन्द्र सिंह जादौन
सहायक अध्यापक
महामंत्री टीचर्स क्लब उत्तर प्रदेश

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