बेसिक शिक्षा किसी भी बालक की नींव का आधार होती है, यहाँ एक कोरे कागज के समान बालक एक अलग से वातावरण में आकर भविष्य में अपनी सफलता हेतु नये आयाम स्थापित करता है। जिस दिन वह विद्यालय में अपना प्रथम कदम रखता है शायद उसे भी अहसास नहीं होता कि आगे ये उसके बढ़ते कदम कहाँ से कहाँ लेकर जाएंगे। इस अबोध बालक की उक्त सफलता के पीछे एक बहुत बड़ी शख्सियत खड़ी होती है जिसे "शिक्षक" जैसे शब्द से नवाजा गया है ।
सुनने में मात्र तीन वर्णों से बना छोटा सा शब्द स्वयं में सागर रूपी गहराई लिए होता है ।
बदलते हुए सामाजिक परिवेश में जहाँ एक संस्कृति के लोग स्वयं को भूलकर किसी अन्य भाषा व संस्कृति को सहज स्वीकार करने पर उतारू है उसी समान शिक्षक का सम्मान भी दिनोंदिन पतन की ओर जा रहा है । समाज के कुछ चन्द लोग उक्त कारण को शिक्षक की आजीविका हेतु प्रदत्त पारितोषिक राशि को जिम्मेदार ठहराते है, उनके अनुसार शिक्षक एक बहुत मोटी राशि को तनख्वाह स्वरुप प्राप्त करता है और उसके एवज में मात्र कुछ घण्टे ही कार्य करता है जोकि शायद न्यायसंगत नही लगता है ।
समाज द्वारा कुंठित दृष्टि से शिक्षक की और देखने में हमारी सोशल व प्रिंट मीडिया संपूर्ण सहयोग देती है । देखा जाए तो कुछ मीडिया से जुड़े चन्द लोग अपनी आजीविका को चलाने हेतु आये दिन किसी न किसी विद्यालय में जाकर कुछ भी अनाप शनाप खबर प्रिंट मीडिया में बड़े ही सौहार्दपूर्ण तरीके से मिर्च मसाले के रूप में परोसते है ।

कभी भी ऐसे चन्द लोगों को विद्यालय व शिक्षण अधिगम की अच्छी बातें दिखायी नहीं देती, न ही उन्हें विद्यालय के प्राप्त स्रोतों व उनको निदान हेतु सहयोग की भावना से कोई लेना देना है, मात्र चन्द टीआरपी व कुछ कागज के नोटों की खातिर वो पूरे शिक्षक समाज को नीचा दिखाने का भरसक प्रयास करते हैं ।
क्या कभी उन्होंने किसी विद्यालय में MDM हेतु सरकारी प्राप्त खराब कच्ची सामग्री के बारे में लिखा ?
क्या विद्यालय अनुदान स्वरुप प्राप्त 5000 रु में जो सूची हमें प्रदान की जाती है वो खरीदी जा सकती है ? इसके बारे में कभी छापा ?
क्या विद्यालय रंगाई पुताई हेतु प्राप्त धन से व्हाइट सीमेंट द्वारा पुताई संभव है? उक्त विषयक पर कुछ लिखा ?
क्या शिक्षा विभाग में आये दिन शिक्षा से इतर ढेरों कार्य थोपे जाते हैं, कभी उक्त विषय पर छापा ?
अधिकतर विद्यालयों में ग्राम प्रधान स्वयं के प्रभाव से MDM निर्माण करवाते है, जिसकी गुणवत्ता क्या है सब इससे परिचित है । क्या कभी इस विषय पर कुछ छापा?
प्रत्येक विद्यालय में सफाई कर्मी द्वारा कितने कार्य दिवस सफाई की जाती है क्या कभी इस विषय पर कुछ छापा गया ? सिर्फ मिर्च मसाला स्वरुप बच्चों द्वारा विद्यालय परिसर में सफाई के पोस्टर पेपर में छापे जाते है । क्या विद्यालय में झाड़ू आदि का कार्य भी अध्यापक का है ? क्या ऐसा कोई शासनादेश है कि अध्यापक ही विद्यालय में झाड़ू देंगे ? क्योकि इस कृत्य अपराध का दंश उसे निलंबन स्वरुप आये दिन झेलना पड़ता है । क्या कभी इस विषय पर कोई शीर्षक छापा गया ??
शायद उक्त सभी प्रश्नों के जवाब न में ही प्राप्त हो ।
संपूर्ण उत्तर प्रदेश में ऐसे हजारों विद्यालय हैं जहाँ मात्र एक शिक्षक ही सभी कक्षाओं को पढ़ाते है, पढ़ाने के अतिरिक्त विद्यालय MDM आदि की व्यवस्था भी करते हैं और हमारे अधिकारीगण उससे गुणवत्ता परख शिक्षारूपी खंजर आये दिन घोंपते रहते है? क्या कभी उस बेचारे अध्यापक के मर्म को ध्यान रखकर किसी अधिकारी से उक्त कारण के बारे में जानने की चेष्टा की ?
क्या गुणवत्ता पूर्ण ड्रेस को सिलवाने में प्रदत्त 400 रु काफी है ? इस विषय पर कोई लेख छापा ?
शिक्षक के समाज में गिरते सम्मान का पूर्ण जिम्मेदार मेरे मीडिया से जुड़े कुछ साथी हैं जो परिषदीय विद्यालयों की वास्तविकता को दरकिनार कर मात्र मिर्च मसाला ही छापते है ।
अभी हाल ही में एक प्रतिष्ठित समाचार पत्र में लगातार दो दिन तक छापा गया कि अमुक जनपद के बेसिक शिक्षा अधिकारी ने विद्यालयों में छापामारी की और ..... बच्चों के सापेक्ष...... बच्चे अनुपस्थित मिले । यद्यपि मित्रो अनुपस्थित छात्र संख्या उपस्थित छात्र संख्या से नाममात्र कम थी जबकि अधिकतर गाँवों से बहुत से बालक भट्टे पर मजदूरी हेतु उनके अभिभावकों द्वारा किसी अन्य स्थान/गाँव में ले जाए चुके है । परन्तु सम्मानित पत्रकार साथी को इस बेसिक विभाग का केवल नकारात्मक पक्ष ही दिखाई देता है ।
आये दिन पेपर में बेसिक के अध्यापको की दुर्दशा आप सभी पढ़ते हैं । क्या वास्तव में अध्यापक समाज का इतना पतन हो गया है ??
क्या चन्द अध्यापको की कमियों से पूरा अध्यापक समाज को दुर्व्यवहार की भावना से देखना उचित है ??
मन में दुःख व क्रोध की भावना पैदा होती है ऐसी खबर पढ़कर । काश..... हम समाज की इस कुंठा से बाहर आ सके ।


लेखक
डॉ0 अनुज कुमार राठी
(कलम का सच्चा सिपाही) 
लेखक परिषदीय विद्यालय में प्रधानाध्यापक पद पर कार्यरत है ।


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