विद्यालय या सूचना कलेक्शन सेंटर: शिक्षा की राह में रोड़ा बन रहा सूचनाओं का संसार
सूचना और आंकड़े किसी भी संस्थान के सुचारू संचालन के लिए आवश्यक होते हैं, लेकिन जब ये शिक्षा पर हावी होने लगें, तो हमें ठहरकर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। शिक्षा का असल उद्देश्य छात्रों का समग्र विकास है, और इसे अनावश्यक सूचना-संग्रह के बोझ के नीचे दबने नहीं दिया जा सकता। शिक्षक की भूमिका केवल प्रशासनिक कार्यों तक सीमित नहीं होनी चाहिए; उनकी प्राथमिक जिम्मेदारी छात्रों को ज्ञान प्रदान करना और उन्हें जीवन के लिए तैयार करना है।
"मसला ये नहीं कि फरमाइशें कम हों,
दिक्कत तब जब वक्त-ए-तालीम भी न हो।"
आज के समय में विद्यालय एक महत्वपूर्ण स्थान है, जहां विद्यार्थियों का भविष्य संवरता है। लेकिन जब यही विद्यालय सूचना कलेक्शन सेंटर बन जाएं, तो शिक्षा का मूल उद्देश्य कहीं न कहीं पीछे छूट जाता है। शिक्षा का मंदिर अब आंकड़ों के ढेर में खोता नजर आता है, और शिक्षक—जो अपने विद्यार्थियों के लिए समर्पित होते हैं—दिन-प्रतिदिन सूचना इकट्ठा करने के काम में उलझे रहते हैं।
सूचना का बढ़ता भार:
सूचना का महत्व कोई नई बात नहीं है, और समय के साथ यह हमारी दिनचर्या का हिस्सा बन गया है। लेकिन जब यह प्रवृत्ति हद से अधिक बढ़ जाए, तो यह एक विकराल समस्या का रूप ले लेती है। सरकारी स्कूलों में आए दिन नई सूचनाओं की मांग होने लगी है। उच्च अधिकारियों से लेकर राज्य सरकार तक, हर कोई अपने स्तर पर स्कूलों से आंकड़े मांगता है।
इस प्रवृत्ति का एक बड़ा दोष यह है कि यह शिक्षक के समय और ऊर्जा का बड़ा हिस्सा खा जाती है। जिस समय में शिक्षक को अपने विद्यार्थियों के साथ होना चाहिए, उस समय में वे जानकारी एकत्र करने में लगे होते हैं। खासतौर से उन स्कूलों में, जहां बुनियादी संसाधन कम हैं और अतिरिक्त स्टाफ नहीं है, शिक्षक खुद ही बाबूगिरी के कामों में फंसे रहते हैं।
वास्तविकता और परिणाम:
विभागीय व्हाट्सएप समूहों और अन्य ऑनलाइन माध्यमों पर अक्सर आदेश और निर्देश मिलते हैं, जिनमें अधिकांश गैर-शैक्षणिक होते हैं। एक अध्ययन से यह स्पष्ट हुआ है कि लगभग 90% सूचनाएं स्कूल के शैक्षणिक कार्य से नहीं जुड़ी होतीं, बल्कि इनमें चुनावी ड्यूटी, सर्वे, या अन्य प्रशासनिक काम होते हैं।
इसका परिणाम यह होता है कि शिक्षक का ध्यान बंट जाता है। उनका प्रमुख उद्देश्य, यानी विद्यार्थियों को शिक्षित करना, अब प्राथमिकता से हटकर प्रशासनिक कामों की ओर चला गया है। यह एक विकट समस्या बनती जा रही है, क्योंकि सरकारी स्कूलों में वैसे ही शिक्षकों की कमी है, और ऐसे में जब बाकी के शिक्षकों का समय भी सूचनाएं जुटाने में चला जाए, तो पढ़ाई का क्या होगा?
समस्याओं के समाधान की राह:
इस समस्या से निजात पाने के लिए कुछ ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। सबसे पहले, यह जरूरी है कि सूचना मांगने की प्रक्रिया को व्यवस्थित किया जाए। तत्काल सूचना की मांग करने की प्रवृत्ति पर अविलंब रोक लगनी चाहिए। इसके स्थान पर, स्कूलों से मासिक या त्रैमासिक रूप से सूचनाएं मांगी जानी चाहिए। इससे न केवल शिक्षकों को राहत मिलेगी, बल्कि सूचनाओं की गुणवत्ता भी बेहतर होगी।
इसके अलावा, विभागीय व्हाट्सएप समूहों और अन्य डिजिटल प्लेटफार्मों की गतिविधियों को स्कूल समय में नियंत्रित किया जाना चाहिए। एक सुसंगठित योजना बनाई जानी चाहिए, जिसमें स्पष्ट हो कि किस महीने कौन सी सूचना देनी है। इससे शिक्षकों को पहले से पता होगा कि कब क्या जानकारी देनी है, और वे अपने समय का प्रबंधन बेहतर ढंग से कर सकेंगे।
निष्कर्ष:
सूचना और आंकड़े किसी भी संस्थान के लिए महत्वपूर्ण होते हैं, लेकिन जब यह व्यवस्था शिक्षा पर भारी पड़ने लगे, तो हमें रुककर विचार करना चाहिए। शिक्षा का मूल उद्देश्य विद्यार्थियों का सर्वांगीण विकास है, और इसे सूचना संग्रह के बोझ तले दबने नहीं दिया जा सकता। शिक्षक की भूमिका सिर्फ प्रशासनिक कर्मचारी की नहीं होनी चाहिए; उनका प्रमुख काम विद्यार्थियों को शिक्षा देना है।
"शिक्षा के दीप को खूब जलने दो,
आंकड़ों के बवंडर में खोने न दो।"
समय आ गया है कि हम इस प्रवृत्ति पर लगाम लगाएं और शिक्षक को उसकी असली भूमिका में लौटने का अवसर दें, ताकि हमारे भविष्य के कर्णधार एक उज्जवल भविष्य की ओर बढ़ सकें।
✍️ लेखक : प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर
परिचय
बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।
शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।
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