शिक्षक दिवस : कमजोरों का एक दिवसीय उल्लास समारोह? 

"जिन्हें ज़रूरत है इज्ज़त की, उनके नाम दिवस है,  
सत्ता के साये में जो है, उनका हर दिन खास है।"


"शिक्षक दिवस मनाना, यह दर्शाता है कि शिक्षक समाज के संघर्षरत वर्ग का ही हिस्सा है, जिसकी आवाज को अनसुना किया जाता रहा है। इसलिए ध्यान रहे जब यह दिवस मनाएं तो अपनी आवाज को और बुलंद रखें।"


परसाई के कथ्य से यह स्पष्ट होता है कि यह दिवस मनाने का मूल कारण इस बात को दर्शाता है कि संबंधित वर्ग कमजोर है। थानेदार यानी सामाजिक और प्रशासनिक ताकतधारियों का कोई दिवस नहीं मनाया जाता क्योंकि वे सत्ता और ताकत के प्रतीक होते हैं। यह इस बात को रेखांकित करता है कि समाज में जिनके पास सत्ता और अधिकार हैं, उन्हें किसी विशेष सम्मान या समर्थन की आवश्यकता नहीं होती। यह इस बात का भी संकेत है कि समाज में सत्ता का समीकरण किस प्रकार विकृत हो चुका है।


विशेषकर अध्यापकों की बात करें, तो उन्हें समाज में एक उच्च स्थान दिया जाता है, लेकिन विडंबना यह है कि उनके महत्व को केवल भाषणों और समारोहों तक सीमित कर दिया गया है। असल में, शिक्षक वह वर्ग है जो निरंतर संघर्ष करता है, लेकिन उसकी समस्याओं और उसकी आवाज को गंभीरता से नहीं लिया जाता। 


नीति निर्माता और समाज, दोनों ही इस बात को नजरअंदाज करते आए हैं इसके चलते एक शिक्षक की वैचारिक स्थिति दिनोंदिन कमजोर होती जा रही है। उन्हें केवल शिक्षा के क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि समाज में भी कमजोर और उपेक्षित माना जा रहा है।


यह भी इंगित करना जरूरी है कि जो वर्ग सत्ता में रहे हैं, वे इस असंतुलन को बनाए रखने के प्रयास में हैं, ताकि उन्हें कोई चुनौती न मिले। यह समाज की एक कड़वी सच्चाई को उजागर करता है, जिसमें एक तरफ कमजोर वर्गों के योगदान को सराहा जाता है, जबकि दूसरी तरफ उनके संघर्षों को स्थायी बना दिया जाता है।


"हर साल दिवस में सिमट जाता है उनका सम्मान,
संघर्षों की आवाज़ का क्या कभी होगा बयान?"


✍️  लेखक : प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर


परिचय

बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।

शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।

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