शिक्षक बनना: कर्तव्य या बंधन? आज अपने बच्चों को कोई क्यों बनाना चाहेगा शिक्षक?
"अब किसके जिम्मे शिक्षा का भार होगा,
शिक्षक अब एक बेमिशाल किरदार होगा?"
आज के बदलते समाज में शिक्षक बनना एक बड़ी चुनौती बन चुका है। जो कभी एक गर्व का विषय था, वह अब एक जिम्मेदारी और संघर्ष बन गया है। जहां शिक्षा का उद्देश्य ज्ञान देना और समाज को उज्जवल बनाना था, वही अब केवल नियमों और प्रक्रियाओं के बीच खो गया है। प्रश्न उठता है: आखिर कोई क्यों अपने बच्चों को शिक्षक बनाए? इस पेशे में अब वह प्रेरणा कहां है, जो पहले शिक्षकों के प्रति सम्मान और आदर की भावना जगाती थी?
प्रेरणा का संकट
पहले शिक्षक बनने के लिए एक आदर्श और प्रेरणादायक लक्ष्य होता था। माता-पिता अपने बच्चों को शिक्षक बनने के लिए प्रेरित करते थे, क्योंकि यह एक सम्मानजनक पेशा माना जाता था। आज, वही पेशा कहीं न कहीं अपने मूल उद्देश्य से भटक गया है। सरकारी नीति, अत्यधिक शिक्षणेत्तर गतिविधियाँ, और अनियंत्रित नियमों की बाढ़ ने शिक्षक की भूमिका को सीमित और बंधनकारी बना दिया है। ऐसे में नए शिक्षक कैसे बनें और क्यों बनें, जब प्रेरणा का कोई स्त्रोत ही न हो?
शिक्षक बनना अब केवल एक नौकरी रह गई है, जो वेतन और स्थायित्व के लिए की जाती है। शिक्षकों पर लगातार नए नियम और दबाव बढ़ते जा रहे हैं, जिससे उनके पास विद्यार्थियों को शिक्षा देने के लिए पर्याप्त समय और ऊर्जा नहीं बचती। इसके परिणामस्वरूप शिक्षा की गुणवत्ता में गिरावट आई है, और समाज में शिक्षकों का स्थान भी धीरे-धीरे गिरता जा रहा है।
बदलते माहौल में शिक्षकों की स्थिति
आज के शिक्षक उस जाल में फंसे हुए हैं जिसे उन्होंने खुद चुना नहीं था। शिक्षा में अधिक से अधिक शिक्षणेत्तर गतिविधियों की घुसपैठ हो गई है। कभी वे बच्चों को जागरूकता पर भाषण दे रहे होते हैं, तो कभी किसी सरकारी कार्यक्रम का आयोजन कर रहे होते हैं। असल पढ़ाई और बच्चों की बौद्धिक उन्नति के लिए समय कहां बचता है? शिक्षा का असली उद्देश्य भूलकर, शिक्षक इन बाहरी गतिविधियों में उलझ गए हैं। अब सवाल यह है कि इस माहौल में कोई शिक्षक क्यों बने? क्या यह आवश्यक है कि वे उस जिम्मेदारी का बोझ उठाएं जो उनके अपने हितों के विरुद्ध जाती है?
नियमों की बदलती धाराएँ
हर कुछ दिनों में नए नियम लागू होते रहते हैं, जिनका शिक्षकों पर गहरा असर पड़ता है। शिक्षा के तरीकों को बदलने के नाम पर शिक्षकों पर दबाव डाला जाता है कि वे न केवल पढ़ाएं, बल्कि बच्चों की हर छोटी-बड़ी गतिविधि पर ध्यान दें। इस प्रकार, शिक्षक अब सिर्फ शिक्षा देने वाले नहीं रहे, बल्कि वे ऐसे कार्य कर रहे हैं जो उनके कार्यक्षेत्र से बाहर के हैं। नियमों का पालन करते हुए शिक्षक खुद को एक कठपुतली सा महसूस करते हैं, जिनकी डोर सरकार और नियमों के हाथों में है। इस स्थिति में कोई क्यों इस पेशे को अपनाएगा?
शिक्षक बनना: जिम्मेदारी या मजबूरी?
शिक्षक बनना कभी एक कर्तव्य था, लेकिन आज यह अधिकतर लोगों के लिए मजबूरी बन गया है। कुछ लोग इसे केवल स्थिर नौकरी के रूप में अपनाते हैं, जबकि अन्य लोग इसे इसलिए चुनते हैं क्योंकि उनके पास कोई अन्य विकल्प नहीं होता। शिक्षक बनने का सपना देखने वालों की संख्या कम हो रही है। समाज में बदलती धारणाओं और शिक्षा में हो रहे बदलावों के कारण शिक्षक बनने की प्रेरणा धीरे-धीरे खत्म होती जा रही है।
लेकिन, यह ध्यान रखना जरूरी है कि आज भी शिक्षा का महत्व खत्म नहीं हुआ है। समाज में शिक्षा और शिक्षक का महत्व बना रहेगा, क्योंकि बिना शिक्षकों के समाज आगे नहीं बढ़ सकता। जो लोग इस पेशे को चुन रहे हैं, वे उन कठिनाइयों को जानते हुए भी अपने कर्तव्यों को निभा रहे हैं।
भविष्य की दिशा
शिक्षक बनने की प्रेरणा को पुनः जागृत करने के लिए हमें शिक्षा प्रणाली में व्यापक सुधार की आवश्यकता है। शिक्षकों पर शिक्षणेत्तर गतिविधियों का बोझ कम किया जाना चाहिए ताकि वे अपने असल कर्तव्य, यानी पढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर सकें। इसके अलावा, शिक्षकों को अधिक स्वतंत्रता और सम्मान दिया जाना चाहिए, ताकि वे आत्मविश्वास के साथ अपने कार्य कर सकें। शिक्षकों के अधिकारों और जिम्मेदारियों के बीच संतुलन स्थापित करना ही इस पेशे को फिर से प्रेरणादायक बना सकता है।
"बदलें नियम, बढ़े आदर का भाव,
फिर से शिक्षक बने समाज का प्रभाव!"
✍️ लेखक : प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर
परिचय
बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।
शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।
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