जानिए! विद्यालय शिक्षण स्टाफ में टीम भावना विकसित करने के उपाय
"राहों में मंजिल तब मिलती है जरूर,
जब साथ चले सारा परिवार भरपूर।"
विद्यालय एक ऐसी संस्था है, जहां भविष्य के नायक और नायिकाएं शिक्षा के साथ-साथ अपने जीवन के विविध पहलुओं का विकास करते हैं। शिक्षा सिर्फ कक्षा में दी जाने वाली जानकारी तक सीमित नहीं है, बल्कि यह विद्यार्थियों को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाने का साधन है। इसके लिए विद्यालय स्टाफ का सहयोगी और संगठित होना अनिवार्य है। टीम भावना की स्थापना विद्यालय के सुचारू संचालन और छात्रों के सर्वांगीण विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है। जब सभी शिक्षक और कर्मचारी मिलकर एक ही उद्देश्य की प्राप्ति के लिए कार्य करते हैं, तो विद्यालय में शिक्षा के स्तर में गुणवत्ता आती है और छात्रों को बेहतर सुविधाएं मिलती हैं।
टीम भावना से काम करने का अर्थ है कि सभी शिक्षक और कर्मचारी एक-दूसरे के विचारों और सुझावों को ध्यानपूर्वक सुनें और समझें। विद्यालय में टीम भावना तब स्थापित होती है जब प्रधानाध्यापक से लेकर शिक्षक और अन्य कर्मचारी सभी एक समान लक्ष्य के प्रति समर्पित रहते हैं। आपसी समझ, समर्पण और सहयोग का माहौल बनाए रखने के लिए सभी सदस्यों को एक-दूसरे की भावनाओं और समस्याओं का ध्यान रखना चाहिए। इससे न केवल कार्यों की गुणवत्ता में वृद्धि होती है, बल्कि विद्यालय के वातावरण में भी एक सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है।
विद्यालय के प्रधानाध्यापक का इस दिशा में विशेष योगदान होता है। प्रधानाध्यापक एक प्रेरक नेता की भूमिका निभाता है, जो अपने स्टाफ को सृजनात्मकता और सहयोग की दिशा में प्रेरित करता है। एक सफल प्रधानाध्यापक विद्यालय के सदस्यों के साथ मिलकर ऐसे वातावरण का निर्माण करता है, जहां सभी को अपने योगदान का महत्व महसूस होता है। प्रत्येक सदस्य को विद्यालय की उपलब्धियों में खुद को महत्वपूर्ण महसूस कराने के लिए प्रधानाध्यापक को उनका उत्साहवर्धन करना चाहिए। जब हर सदस्य यह महसूस करता है कि उसके विचार और प्रयास विद्यालय की सफलता में अहम भूमिका निभाते हैं, तो वह और अधिक समर्पण के साथ काम करता है।
टीम भावना विकसित करने के लिए विद्यालय में खुला संवाद भी अत्यंत आवश्यक है। सभी सदस्यों के बीच नियमित और पारदर्शी संवाद से आपसी समझ और सहयोग को बढ़ावा मिलता है। जब हर कोई अपनी बात खुलकर रख सकता है और दूसरे की बातों को महत्व दिया जाता है, तो एकता की भावना उत्पन्न होती है। विद्यालय में सभी कर्मचारियों के बीच पारस्परिक सम्मान और समानता का माहौल होना चाहिए। ऐसा माहौल तभी बन सकता है जब सभी सदस्यों को उनके अनुभव, योगदान और विचारों के आधार पर सम्मानित किया जाए, न कि उनके पद या व्यक्तिगत स्वार्थों के आधार पर।
इसके साथ ही, विद्यालय में सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ये कार्यक्रम स्टाफ के बीच आपसी मेलजोल और समझ को बढ़ावा देने का अच्छा अवसर प्रदान करते हैं। कार्यक्रमों के माध्यम से शिक्षक और अन्य कर्मचारी एक-दूसरे के साथ व्यक्तिगत और सामाजिक रूप से जुड़ते हैं, जिससे विद्यालय का वातावरण और अधिक सजीव और प्रेरणादायक बनता है। इन आयोजनों में प्रतिभागिता से स्टाफ के बीच आपसी संबंध और मजबूत होते हैं और टीम भावना का विकास होता है।
अंततः, टीम भावना को सुदृढ़ करने के लिए प्रधानाध्यापक को एक दूरदर्शी और कुशल प्रशासक के रूप में कार्य करना चाहिए। एक सफल प्रधानाध्यापक वह होता है, जो न केवल विद्यालय के संसाधनों का समुचित उपयोग करता है, बल्कि विद्यालय के प्रत्येक सदस्य की ताकतों को समझकर उनका उपयोग करता है। यह प्रधानाध्यापक का कर्तव्य है कि वह विद्यालय के सदस्यों को उनकी क्षमता और रुचियों के अनुसार जिम्मेदारियां सौंपे, ताकि हर सदस्य विद्यालय की सफलता में अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान दे सके। जब सभी को उचित जिम्मेदारी मिलती है और हर किसी की सफलता में सहयोगी भूमिका होती है, तो टीम भावना का विकास होता है।
✍️ लेखक : प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर
परिचय
बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।
शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।
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