तीतर के दो आगे तीतर, तीतर के दो पीछे तीतर... बोलो कितने तीतर/ यह गाना शायद आपने भी सुना होगा। गीत गाकर या पहेली बुझाकर बच्चों को पढ़ाना आसान और बेहतरीन तरीका माना जाता है। कंप्यूटर और आईटी के साथ एजुकेशन सिस्टम में भी खूब बदलाव हुआ है। अब ऐसे तमाम उदाहरण आपको मिल जाएंगे, जब टीचर बच्चों के दिमाग में बैठकर पढ़ाने में यकीन रखते हैं। टीचर्स के पढ़ाने के कुछ अलग, कुछ अजब, पर उम्दा तरीकों पर बात कर रहे हैं लोकेश के0 भारती

विता अपनी फ्रेंड के साथ हिस्ट्री ऑनर्स की क्लास में पहली बार गई हैं। इससे पहले उन्होंने हिस्ट्री की सारी क्लास बंक की हैं क्योंकि यह सब्जेक्ट उन्हें बोरिंग लगता है। उनकी एक दोस्त ने बताया कि परवेज सर हिस्ट्री को भी फिजिक्स के स्टाइल में ही पढ़ाते हैं तो कविता भी क्लास में पहुंच गईं। परवेज सर क्लास में पहुंचे और अपना लैपटॉप निकाला। उसे ऑन किया और कुतुबमीनार की थ्री-डी इमेज सभी को दिखाई देने लगी। अब उन्होंने कुतुबमीनार के हर फ्लोर को तोड़ना शुरू कर दिया। साथ ही यह भी बताते गए कि इसे बनाने में किस तरह के पत्थर का इस्तेमाल किया गया है और यह मुगल स्थापत्य कला की पहली मीनार है। एक तो हिस्ट्री की क्लास में लैपटॉप और उस पर थ्री-डी ग्राफिक्स के जरिए पढ़ाना, वाकई परवेज सर ने स्टूडेंट्स का दिल जीत लिया।

क्लास में लेते हैं कई ब्रेक

सोशल स्टडी के टीचर प्रितेश जोशी कहते हैं कि आजकल के बच्चे बहुत स्मार्ट हैं। स्टूडेंट्स का भरोसा जीतना भी जरूरी है। अब सिर्फ लेक्चर देने से काम नहीं चलता। स्टूडेंट्स की बातों को भी गौर से सुनना पड़ता है। मैं सोशल स्टडी पढ़ाता हूं। जब इकनॉमिक्स की क्लास में होता हूं तो उदाहरण भी ऐसे ही देता हूं। मसलन अगर मुझे इनफ्लेशन समझाना है तो मैं पूछता हूं कि आपने अपनी मम्मी से महंगाई के बारे में सुना है/ तो ज्यादातर बच्चे कहते हैं कि मम्मी कहती हैं कि अब हमारी पॉकेट मनी में कटौती की जाएगी क्योंकि दालें, सब्जियां आदि महंगी हो गई हैं। इस पर मैं कहता हूं कि यही तो है इनफ्लेशन।

इसी तरह जब इंग्लिश के क्लास में होता हूं तो किसी स्टूडेंट की तारीफ करने के लिए ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करता हूं, जिनका मतलब अमूमन स्टूडेंट्स को पता नहीं होता। ऐसे में वे मुझसे पूछते हैं कि सर आप मेरी तारीफ कर रहे हैं या खिंचाई/ इस पर मेरा जवाब होता है कि अगर मीनिंग पता नहीं है तो खोजो और उसे लिखकर क्लास रूम के वॉल पर लगा दो। इस तरह सभी स्टूडेंट्स को नए वर्ड के बारे में पता चलता है। अगर कोई क्लास 60 मिनट की है तो टीचर को कम-से-कम 4 ब्रेक लेने चाहिए, मतलब हर 15 मिनट पर आप उस टॉपिक को बदल दें, जिसकी क्लास चल रही थी। पढ़ाई में अगर रोमांच भी शामिल हो जाए तो पढ़ाई मजबूरी नहीं, आदत और मिशन बन जाता है। 
 


सिखाते हैं अनुभवों से

चूंकि साइंस में प्रैक्टिकल और फॉर्म्युले की ही बात ज्यादा होती है। ऐसे में कोई टीचर इसे आर्ट्स स्टाइल में पढ़ाए तो स्टूडेंट्स का ध्यान जाना स्वभाविक है। आईआईटी से पासआउट सतीश कुमार सिन्हा की यही खासियत है। वह आरजीआईपीटी, रायबरेली में पढ़ाते हैं। उन्हें अपने संस्थान से बेस्ट टीचर का अवॉर्ड भी मिला है। इनकी स्पेशलाइजेशन है सिस्मिक ओशिनोग्राफी। जब वह क्लास में होते हैं तो स्टूडेंटस बस इन्हीं को सुनते हैं। दरअसल, ये अपने अब तक अनुभव को ही आधार बनाकर पढ़ाते हैं। मसलन जब वह ऑयल कंपनी में काम करते थे तो किस तरह कि समस्याएं आती थीं। अमेरिका में जॉब के दौरान क्या सीखा आदि। बुक, सिलेबस की बात कम ही होती है। इससे स्टूडेंट्स की दिलचस्पी बनी रहती है। 















ये करके दिखाती हैं

क्लास में कंप्यूटर, टीवी आदि की मदद से पढ़ाई के साथ प्रैक्टिकल डेमंस्ट्रेशन यानी सामने से करके दिखाना भी अब जरूरी हो गया है। साइंस की टीचर टीना सेठी कहती हैं कि बच्चों का ध्यान पढ़ाई में लगाए रखना बड़ी चुनौती होती है। ऐसे में सबसे बेहतर उपाय है प्रैक्टिकल करके दिखाना। अगर मुझे फिजिकल रिऐक्शन और केमिकल रिऐक्शन के बारे में बताना है तो मैं क्लास में दूध और दही दोनों लेकर पहुंच जाती हूं। फिर पूछती हूं कि बताओ क्या हम दूध से दही बना सकते हैं/ जवाब आता है 'हां'। फिर मेरा सवाल होता है कि क्या हम दही से दूध बना सकते हैं तो कुछ बच्चे चुप हो जाते हैं, तो कई बोलते हैं
'नहीं' जो चुप रह जाते हैं, उन्हें मैं कहती हूं कि दही से दूध बनाकर बताओ। फिर पूरी बात समझ में आ जाती है कि दूध से दही बनना एक केमिकल रिऐक्शन है।
 


पढ़ाती हैं रोल कराके

अगर किसी बच्चे को सीपीआर (हार्ट बीट रुकने के बाद किया जाने वाला चेस्ट कंप्रेशन) या चोट के बारे में समझाना हो तो रोल प्ले से बेहतर तरीका शायद ही कोई दूसरा हो। रामजस स्कूल, दिल्ली की टीचर रुचिका छाबड़ा कहती हैं कि जब भी मैं बच्चों को पढ़ाती हूं, तो मेरी कोशिश होती है कि बच्चों को वह रोल प्ले करने दिया जाए। मान लें कि मुझे मेडिकल किट की उपयोगिता बताना है, तो मैं किसी बच्चे को डॉक्टर बना दूंगी और किसी को पेशंट। फिर इन किरदारों को उन्हें निभाने के लिए देती हूं। इससे वे बातों को अच्छी तरह समझ जाते हैं और हमेशा याद।


...और यह भी खूब रही

बात तब की है, जब सुगाता मित्रा फिजक्स की साइंटिस्ट थीं लेकिन उनकी दिलचस्पी बच्चों को पढ़ाने में भी काफी थी। उन्होंने झुग्गी के बच्चों को पढ़ाने के लिए अनोखा तरीका अपनाया। इसके लिए उन्हें अमेरिका में सम्मानित भी किया गया। दरअसल, उन्होंने 1999 में दिल्ली में एक झुग्गी वाले इलाके में एक कंप्यूटर लगाया, यह देखने के लिए कि बच्चे उसके साथ क्या करते हैं/ मित्रा ने कहा, 'अपना प्रोजेक्ट शुरू करते वक्त मुझे मालूम था कि मैंने 'तूफानी बच्चों' के बीच अपना सामान रख दिया है। तोड़फोड़ कर इसका कबाड़ा निकाल दिया जाएगा और इसे बेच दिया जाएगा। लेकिन मैं गलत साबित हुआ। आठ घंटे बाद जब मैं लौटा, तो देखा कि बच्चे अंग्रेजी में इंटरनेट ब्राउज कर रहे हैं। मुझे अहसास हुआ कि गलती से ही सही, मैंने कुछ अनोखा कर दिया है। वे मशीन के आसपास झुंड बना लेते थे। आप उन्हें जितना शांति के साथ लाइन में बैठने को कहेंगे, तो उनके बीच झगड़े की संभावना उतनी ज्यादा होगी। जाहिर तौर पर वे परंपरागत क्लासरूम की मुखालफत करते हैं।' भौतिक विज्ञानी से शिक्षाविद बने मित्रा ने बच्चों को पढ़ाने और सिखाने का ऐसा तरीका निकाला है, जिसका कई देशों ने बाद में इस्तेमाल किया। सभी समुदायों को एक ही नतीजा मिला कि बच्चों की पहुंच अगर इंटरनेट तक हो जाए, तो वे अपनी पढ़ाई का तरीका खुद निकाल सकते हैं, बशर्ते कि बड़े उनकी राह में न आएं।

 

कभी रोटी, कभी बॉल

मुकेश कुमार राय जबलपुर के एक संस्थान में पढ़ाते हैं। एक दिन वह गीले बालों के साथ क्लास में पहुंचते हैं। फिर वह अचानक अपने भीगे बालों से पानी हटाने के लिए गर्दन को बाएं से दाएं और दाएं से बाएं झटका देते हैं। ऐसा वे कई बार करते हैं। फिर वह सभी स्टूडेंट्स से पूछते हैं कि आपने क्या देखा/ सभी ने एक सुर में कहा कि आपने बालों से पानी हटाने की कोशिश की। इस पर मुकेश सर कहते हैं कि यह तो कॉमन बात है, पर खास यह है कि मैंने अपने गर्दन को बाएं से दाएं ही क्यों घुमाया/ आगे-पीछे क्यों नहीं किया/ पानी तो हम आगे-पीछे करके भी हटा सकते हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि हम ऐसा क्यों करते हैं/ फिर उन्होंने बताया कि गर्दन को हम जब घुमाते हैं तो इसमें सकुर्लर मोशन आता है। इससे पानी अपनी जगह छोड़ देता है और बाहर निकल जाता है। इसे आप यूं समझ सकते हैं कि जब किसी बॉल को रस्सी में बांधकर गोल-गोल घुमाते हैं और फिर उस रस्सी को तोड़ देते हैं, तो वह गोल नहीं घूमती है, बल्कि सीधी लाइन में ही बाहर चली जाती है। वहीं गर्दन को आगे पीछे करने पर पानी अपनी जगह छोड़ता तो है, पर सर्कुलर मोशन नहीं होने की वजह से वह फिर अपनी जगह पर वापस आ जाता है। इसे हम फोर्स का एक अलग फीचर भी समझ सकते हैं। इसी तरह बाद की क्लासों में वह कभी बॉटल तो कभी पॉकेट में बॉल लेकर क्लास में एंट्री करते हैं। एक दिन तो उनके पॉकेट से रोटी भी निकली। उन्होंने बताया कि रोटी जिधर से पतली है, वही हिस्सा सबसे पहले तवे पर रखा गया होगा क्योंकि जब हम रोटी पकाते हैं, तो गर्म तवे के संपर्क में आने पर रोटी के उस भाग से पानी पहले भाप बनकर निकल जाता है, जबकि दूसरे भाग से ऐसा नहीं हो पाता है।

कपड़े उतार समझाया

नीदरलैंड्स की एक बायॉलजी टीचर ने अपने स्टूडेंट्स को पढ़ाने का जो तरीका अपनाया, वह भी काफी यूनिक है। बायॉलजी के कुछ सब्जेक्ट जैसे ह्यूमन अनैटमी समझने में बच्चों को परेशानी होती है, लेकिन ग्रोनी हार्ट स्कूल में बायॉलजी पढ़ाने वाली टीचर डेबी हेरकंस ने इस सब्जेक्ट को बच्चों के लिए बहुत आसान कर दिया। बच्चों को पढ़ाते समय उन्होंने अपने कपड़े उतारे और बच्चों को ह्यूमन अनैटमी समझाई। उन्होंने अपने कपड़ों के अंदर एक स्किन टाइट बॉडी सूट पहना था, जिस पर मानव शरीर की आंतरिक संरचना बनी हुई थी।


इन सब उदाहरणों से साबित होता है कि टीचर्स के पढ़ाने के नए और अलग तरीके स्टूडेंट्स के लिए न सिर्फ पढ़ाई को दिलचस्प बना देते हैं, बल्कि इस तरह मिली नॉलेज उनके दिमाग में हमेशा के लिए जगह बना लेती है। जाहिर है, अब सभी टीचर्स को पढ़ाने के नए और स्मार्ट तरीके ईजाद करने होंगे, आखिर वे हैं गुरू कूल.....

पढ़ाने के दिलचस्प तरीके देखें:

tinyurl.com/hshpb72


tinyurl.com/h83zwef




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