मीना की दुनिया-रेडियो प्रसारण
एपिसोड
61- कहानी का शीर्षक- ‘बातचीत से बात है बनती’
मीना के स्कूल में झाँसी की रानी का नाटक होने वाला है लेकिन मीना और उसके दोस्त इस नाटक में भाग नहीं ले रहे हैं क्योंकि यह नाटक बड़ी क्लास के बच्चों का है।
बहिन जी बच्चों को नाटक का रिहर्सल करवा रहीं हैं।
बहिन जी- (रज्जो से) जोर से बोलो- “मेरा नाम लक्ष्मीबाई है मैं अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दूंगी। ”
रज्जो बार-बार अभ्यास से भी पंक्तियाँ सही नहीं बोल पा रही है।
बहिन जी-(महेश से) अब तुम गंगाधर राव की पंक्तियाँ बोल कर दिखाओ?
महेश- जी बहिन जी, लक्ष्मीबाई तुमने जो ................................
मीना की बहिन जी सब बच्चों को नाटक का अभ्यास कराती रहीं।
...और थोड़ी देर बाद जब मीना स्कूल से वापस लौट रही थी तो उसने हैंडपंप पर बेला दीदी को लक्ष्मीबाई का अभिनय करते हुए देखा।
मीना स्कूल में चल रहे नाटक के रिहर्सल की सारी बात बेला को बताती है और नाटक में भाग लेने की सलाह देती है।
मीना और बेला दीदी घर की तरफ वापस चले...दोनों लालाजी की दुकान के सामने से निकल ही रहे थे कि.....
लाला जी- मीना बेटी मेरा एक काम कर दोगी?
..और लालाजी ने मीना को सरपंच जी के यहाँ नमक की थैली पहुँचाने को कहा।
मीना ने असमर्थता जताते हुए बताया कि उसे निबंध तैयार करना है और मैं देर से पहुंची तो माँ परेशान हो जाएगी।
मीना, लालाजी को तरकीब सुझाते हुए कहती है की शाम को आप ही दुकान बंद करके नमक की थैली सरपंच जी के घर पहुँचा दीजियेगा।
...और अगले दिन स्कूल की छुट्टी के बाद
बेला मीना से कहती है कि कल जिस आत्मविश्वास से लालाजी से बात की मुझे बहुत अच्छा लगा। तुम्हारी बात भी रह गयी और लालजी को बुरा भी नहीं लगा।
मीना बताती है की माँ कहती है कि बातचीत करने से ही बात बनती है। बेला, मीना को बताती है कि वैसे ही उसने अपनी माँ से बात करनी चाही लेकिन मैं कुछ बोल ही नहीं पायी।
बेला, मीना से मदद मांगती है कि मीना उसे भी बातचीत करने का तरीका सिखाये जिसमे कने वाले और सुनने वाले दोनों की बात रह जाती है और किसी को बुरा भी नहीं लगता।
मीना,और बेला बातचीत का अभ्यास करती हैं;
मीना- बेला की,
बेला- चाची (बेला की माँ) की भूमिका निभाते हैं।
जिसमे बेला नाटक भाग लेने की अनुमति मांगती है व बेला की माँ की सारी शंकाओं का समाधान भी आत्मविश्वास के साथ करती है।
(तभी बहिन जी वहां आ जाती हैं..जो उनकी बातचीत का अभ्यास सुन रहीं थी)
बहिन जी समझाती हैं कि बड़ों से नम्रता और आत्मविश्वास के साथ बात की जाए तो वो बच्चों की बात को समझते हैं और कभी नाराज नहीं होते।
.................उसी दिन बेला ने बड़ी नम्रता और आत्मविश्वास के साथ अपनी माँ से बातचीत की और फिर.....बेला की माँ ने उसको नाटक में भाग लेने की अनुमति दे दी।
आज का गीत-
ना है कोई किसी से बड़ा ना कोई किसी से छोटा
काला हो या हो गोरा या हो पतला या छोटा
ऐसा वैसा कैसा भी हो दोस्त तो दोस्त ही होता-२
हम सारे तो कितने खुश हैं दोस्त हमारे पास हैं
सबकी अपनी-अपनी खूबी सारे बहुत ही खास हैं
जल्दी आरे दोस्त पुकारे खेल शुरू अब होता
ऐसा वैसा कैसा भी हो दोस्त तो दोस्त ही होता-२
किसी दोस्त को कम ना समझो कम किसी से कोई नहीं
साथ में लेके चलना सबको प्यारे रखना याद यही
साथ में खाता साथ में गाता साथ में हँसता रोता
ऐसा वैसा कैसा भी हो दोस्त तो दोस्त ही होता-२
आज का खेल- ‘कड़ियाँ जोड़ पहेली तोड़’
१)
साथ में मेरे स्कूल को जाता
साथ मेरे ये वापस आता आधी
छुट्टी में जब खेलूं तब क्लास में ये रह जाता।
२)
कभी झूलता है काँधे पर
कभी पीठ पे चढ़ता
इसे खोलके ही बच्चा स्कूल में घर में बढ़ता।
-बस्ता
मीना एक बालिका शिक्षा और जागरूकता के लिए समर्पित एक काल्पनिक कार्टून कैरेक्टर है। यूनिसेफ पोषित इस कार्यक्रम का अधिकसे अधिक फैलाव हो इस नजरिए से इन कहानियों का पूरे देश में रेडियो और टीवी प्रसारण किया जा रहा है। प्राइमरी का मास्टर एडमिन टीम भी इस अभियान में साथ है और इसके पीछे इनको लिपिबद्ध करने में लगा हुआ है। आशा है आप सभी को यह प्रयास पसंद आयेगा। फ़ेसबुक पर भी आप मीना की दुनिया को Follow कर सकते हैं।
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