मीना की दुनिया - रेडियो प्रसारण
50 - आज की कहानी का शीर्षक- ‘दोस्त का फर्ज’
भोलू का दोस्त महेश, भोलू के घर के बाहर खड़ा है। महेश भोलू के पिताजी
के सामने जाने से झिझकता है क्योंकि उसे उनसे सामने जाने से डर लगता है।
भोलू उसे अन्दर ले जाता है और अपने पिताजी से परिचय करवाता है। भोलू बताता
है कि दो दिन बाद स्वतंत्रता दिवस समारोह होने के कारण आज जल्दी छुट्टी हो
गयी और बहिन जी ने हर बच्चे को एक छोटा लेख लिखने को कहा है|। मैं और महेश
साथ बैठकर अपना - अपना लेख लिखेंगे।
भोलू के पिताजी - लेख लिखना किस विषय पर है?
भोलू - कोई ऐसा व्यक्ति जिससे हमें प्रेरणा मिलती हो।
भोलू के पिताजी - लेख लिखना किस विषय पर है?
भोलू - कोई ऐसा व्यक्ति जिससे हमें प्रेरणा मिलती हो।
भोलू के पिताजी - (महेश से) तुम्हे किस व्यक्ति से प्रेरणा मिलती है?
महेश - महात्मा गाँधी से, सच बोलने की प्रेरणा।
भोलू के पिताजी - तुम्हे इतना पसीना क्यों आ रहा है महेश?
(महेश जेब से रूमाल निकालकर पसीना पोंछता है।)
दोनों अपना-अपना लेख लिखने चले जाते हैं।
और अगले दिन.......
भोलू के पिताजी- कहाँ जा रहे हो? भोलू!
भोलू- महेश के घर।
भोलू के पिताजी भोलू को महेश के घर जाने से मना कर देते हैं और कहते है कि भोलू अच्छा लड़का नहीं है............और उससे कभी बात न करने को भी कहते हैं।
भोलू उदास हो घर के बाहर बैठा है, तभी मीना वहां आ जाती है| मीना के उदासी का कारण पूंछने पर भोलू सारी बात बता देता है।
मीना कहती है चाचाजी ने ऐसा क्यों किया होगा?
(मिठ्ठू भोलू के घर से उडता हुआ आया ..........उसकी पूंछ में गुटखे का पैकेट लगा है)
भोलू को सारी बात समझ आ जाती है ..कल जब महेश ने अपनी जब से रूमाल निकला था तब ही ये पैकेट उसकी जेब से निकला होगा। भोलू मीना से कहता है कि पिछले हफ्ते ही उसने महेश को गुटखा खाते हुए देखा था, मैंने उसे समझाया भी था तम्बाकू चबाना अच्छी बात नहीं, इससे सेहत को बहुत नुकसान होता है। और उसने मुझसे तम्बाकू छोड़ने का वादा भी किया था। दोनों यह शंका समाधान करने कि कहीं महेश के जेब से निकला पैकेट पहले का तो नहीं, महेश के पास जाते है।
महेश, भोलू के सामने अपनी गलती स्वीकारता है ( खांसते हुए) भोलू को सफाई देने की कोशिश करता है|। महेश को बार-बार खांसने पर मीना उसे नर्स बहिनजी के पास लेकर जाती है|। नर्स बहिन जी जांच करने पर पाती हैं कि महेश के गले में घाव हो गए हैं|। उन्हें लगता है कि महेश ने बाज़ार से कोई चटपटी चीज खायी है ......... ..महेश पूरी बात बता देता है।
बहिन जी समझाती है कि बुरी आदत एक बार लग जाये तो इन्हें छोड़ना बहुत मुश्किल होता है लेकिन ऐसी बात नहीं कि इन्हें छोड़ा नहीं जा सकता बस इसके लिए थोड़े समय और दृढ निश्चय की जरूरत होती है। नर्स बहिन जी- (भोलू से) एक सच्चे दोस्त का फर्ज होता है कि वह अपने दोस्त को बुरी आदतों से दूर रखने में मदद करे।
भोलू के पूंछने पर बहिन जी बताती हैं कि जब महेश को गुटखा खाने की इच्छा हो,उसका ध्यान बटाये ताकि इसका गुटखा खाने का दिल ही न करे। और महेश से कहतीं हैं कि तुम अपने साथ नीम की दातून हमेशा रखा करो ताकि जब भी तुम्हे गुटखा खाने की इच्छा हो तो तुम गुटखा खाने की जगह दातून चबा सको। ..और इस सबसे जरूरी है महेश का दृढ निश्चय। महेश गुटखा न खाने का संकल्प लेता है।
....और स्वतंत्रता दिवस समारोह के दिन जब भोलू के लेख पढ़ने की बारी आती है.......अपने लेख में महेश के दृढ निश्चय की तारीफ करता है कि उसने गुटखा खाना छोड़ दिया है। अगर दृढ निश्चय हो तो सच्ची लगन से मुश्किल से मुश्किल काम भी किया जा सकता है।
महेश - महात्मा गाँधी से, सच बोलने की प्रेरणा।
भोलू के पिताजी - तुम्हे इतना पसीना क्यों आ रहा है महेश?
(महेश जेब से रूमाल निकालकर पसीना पोंछता है।)
दोनों अपना-अपना लेख लिखने चले जाते हैं।
और अगले दिन.......
भोलू के पिताजी- कहाँ जा रहे हो? भोलू!
भोलू- महेश के घर।
भोलू के पिताजी भोलू को महेश के घर जाने से मना कर देते हैं और कहते है कि भोलू अच्छा लड़का नहीं है............और उससे कभी बात न करने को भी कहते हैं।
भोलू उदास हो घर के बाहर बैठा है, तभी मीना वहां आ जाती है| मीना के उदासी का कारण पूंछने पर भोलू सारी बात बता देता है।
मीना कहती है चाचाजी ने ऐसा क्यों किया होगा?
(मिठ्ठू भोलू के घर से उडता हुआ आया ..........उसकी पूंछ में गुटखे का पैकेट लगा है)
भोलू को सारी बात समझ आ जाती है ..कल जब महेश ने अपनी जब से रूमाल निकला था तब ही ये पैकेट उसकी जेब से निकला होगा। भोलू मीना से कहता है कि पिछले हफ्ते ही उसने महेश को गुटखा खाते हुए देखा था, मैंने उसे समझाया भी था तम्बाकू चबाना अच्छी बात नहीं, इससे सेहत को बहुत नुकसान होता है। और उसने मुझसे तम्बाकू छोड़ने का वादा भी किया था। दोनों यह शंका समाधान करने कि कहीं महेश के जेब से निकला पैकेट पहले का तो नहीं, महेश के पास जाते है।
महेश, भोलू के सामने अपनी गलती स्वीकारता है ( खांसते हुए) भोलू को सफाई देने की कोशिश करता है|। महेश को बार-बार खांसने पर मीना उसे नर्स बहिनजी के पास लेकर जाती है|। नर्स बहिन जी जांच करने पर पाती हैं कि महेश के गले में घाव हो गए हैं|। उन्हें लगता है कि महेश ने बाज़ार से कोई चटपटी चीज खायी है ......... ..महेश पूरी बात बता देता है।
बहिन जी समझाती है कि बुरी आदत एक बार लग जाये तो इन्हें छोड़ना बहुत मुश्किल होता है लेकिन ऐसी बात नहीं कि इन्हें छोड़ा नहीं जा सकता बस इसके लिए थोड़े समय और दृढ निश्चय की जरूरत होती है। नर्स बहिन जी- (भोलू से) एक सच्चे दोस्त का फर्ज होता है कि वह अपने दोस्त को बुरी आदतों से दूर रखने में मदद करे।
भोलू के पूंछने पर बहिन जी बताती हैं कि जब महेश को गुटखा खाने की इच्छा हो,उसका ध्यान बटाये ताकि इसका गुटखा खाने का दिल ही न करे। और महेश से कहतीं हैं कि तुम अपने साथ नीम की दातून हमेशा रखा करो ताकि जब भी तुम्हे गुटखा खाने की इच्छा हो तो तुम गुटखा खाने की जगह दातून चबा सको। ..और इस सबसे जरूरी है महेश का दृढ निश्चय। महेश गुटखा न खाने का संकल्प लेता है।
....और स्वतंत्रता दिवस समारोह के दिन जब भोलू के लेख पढ़ने की बारी आती है.......अपने लेख में महेश के दृढ निश्चय की तारीफ करता है कि उसने गुटखा खाना छोड़ दिया है। अगर दृढ निश्चय हो तो सच्ची लगन से मुश्किल से मुश्किल काम भी किया जा सकता है।
आज का गीत
आज का खेल- ‘ कड़ियाँ जोड़ पहेली तोड़’
१)मिट्टी से मैं बनती हूँ,हूँ बुरे वक्त की साथी।
बूँद-बूँद सागर बनता है बात यही सिखलाती॥
२)एक आँख है मेरी, उसमे नोट या सिक्के डालो।
जब में भर जाऊं तो उसको तोड़ो और निकालो।
- गुल्लक
मीना एक बालिका शिक्षा और जागरूकता के लिए समर्पित एक काल्पनिक कार्टून कैरेक्टर है। यूनिसेफ पोषित इस कार्यक्रम का अधिकसे अधिक फैलाव हो इस नजरिए से इन कहानियों का पूरे देश में रेडियो और टीवी प्रसारण किया जा रहा है। प्राइमरी का मास्टर एडमिन टीम भी इस अभियान में साथ है और इसके पीछे इनको लिपिबद्ध करने में लगा हुआ है। आशा है आप सभी को यह प्रयास पसंद आयेगा। फ़ेसबुक पर भी आप मीना की दुनिया को Follow कर सकते हैं।