प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मन की बात’ प्रोग्राम में अपने 90 साल के टीचर के प्रति कृतज्ञता जताते हुए शिक्षक दिवस के महत्व को लोगों के सामने बखूबी रखा। यह सुनकर कि पीएम के विद्वान शिक्षक अभी भी उन्हें अपने विचारों से रूबरू कराते रहते हैं और प्रधानमंत्री उनकी बातों को एक ‘पत्राचार पाठ्यक्रम’ के रूप में लेते हैं, एक टीचर के रूप में कोई भी व्यक्ति गर्व का अनुभव करेगा। वास्तव में यही हमारी संस्कृति है। 

माता-पिता और गुरु को समान स्थान देते हुए हमारी परंपरा में शिक्षकों के लिए जो सम्मान है, उसकी बराबरी कोई और नहीं कर सकता। पूर्व राष्ट्रपति डॉ़0 सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन को उन्हीं के इच्छानुसार शिक्षक दिवस के रूप में मनाना हमारी विरासत, गुरु-शिष्य परंपरा और सामाजिक मान्यताओें के अनुरूप एक समृद्ध परिपाटी है। मेरे ख्याल से एक शिक्षक के लिए यह मौका तीन अहम बातों पर गौर करने का होता है। पहला, डॉ0 राधाकृष्णन के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि के रूप में उनके जीवन से प्रेरणा लेना, दूसरा समाज में शिक्षकों की भूमिका और दायित्वों को शिद्दत से महसूस करना और तीसरा, भारत के सुनहरे भविष्य के लिए बच्चों के प्रति अपने उत्तरदायित्वों को पहचान कर उन्हें पूरा करना। 

मेरा मानना है कि एक शिक्षक हमेशा शिक्षक होता है और अगर आप शिक्षक हैं तो आपको इस पर गर्व होना चाहिए। दार्शनिक विचारों वाले डॉ़0 राधाकृष्णन हर रोल में शिक्षक थे। एक बार स्वाधीनता दिवस पर देश को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था कि हमारे पास अवसर मौजूद हैं, लेकिन हमें इस बात से सावधान रहना होगा कि ताकत ज्ञान पर हावी न हो। एक टीचर के रूप में यह हमारा कर्तव्य है कि हम ज्ञान पर ताकत को हावी होने से बचाएं। शिक्षक समाज बनाता है, इसलिए वह ताकत को हावी होने से रोकने में सबसे बड़ा रोल अदा कर सकता है।

उदार शिक्षा की वकालत करने वाले डॉ़ राधाकृष्णन का मानना था कि शिक्षा का उद्देश्य ऐसा होना चाहिए जिसमें व्यक्ति शब्दों के आडंबर से ऊपर उठे। साथ ही, उसके अंदर ऐसी क्षमता पैदा हो जाए जिससे वह परिस्थितियों को अपना गुलाम बना ले। इसके लिए एक शिक्षक को अपने अंदर अच्छे गुणों को विकसित करना होगा। वास्तव में एक अच्छा शिक्षक ही छात्रों को अच्छा और उचित परामर्श दे सकता है। त्याग-बलिदान के बिना कोई भी महान नहीं बन सकता और यह सच्चाई है एक शिक्षक से बड़ा त्यागी कोई नहीं होता। दूसरों के बच्चों के अच्छे भविष्य के लिए वे अपना जीवन समर्पित कर देते हैं और यही उनके जीवन की उपलब्धि होती है। क्लास का हर बच्चा उनके लिए मेडल की तरह होता है। बच्चों की उपलब्धि उनकी अपनी उपलब्धि होती है। आज छात्रों की अपेक्षाएं पहले से अलग हैं। सिखाने की पद्धतियों, रुचि, तकनीकी आविष्कारों और सूचना की भीषण बारिश ने अध्यापकों के लिए नई चुनौतियों खड़ी की हैं। हमारे लिए खुद को नए सिरे से तैयार कर अपनी पहचान को छात्रों के लिए उपयोगी बनाना जरूरी है। आज जब देश नई शिक्षा प्रणाली के नए प्रावधानों की चर्चा कर रहा है तो डॉ़ राधाकृष्णन के ज्ञान और आदर्शों का अनुसरण मील का पत्थर साबित हो सकता है।


लेखक
अशोक पाण्डेय 

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