सरकार द्वारा अध्यापक शिक्षा के लिए राष्ट्रीय स्तर की प्रवेश परीक्षा प्रस्तावित है। यह भारत में अध्यापक शिक्षा के विकास की दिशा में लिया गया प्रभावशाली कदम होगा। अध्यापक शिक्षा की गुणवत्ता में हो रहा हृास देश के विकास के लिए हितकर नहीं है। जिस प्रकार शिक्षा का अधिकार कानून को लागू किए जाने के लिए अध्यापक शिक्षा के मात्रात्मक विकास के क्रम में इसकी गुणात्मकता से समझौता किया जा रहा है- आने वाले वर्षो में देश और समाज को इसकी कीमत अवश्य चुकानी होगी। अध्यापक शिक्षा और अध्यापक शिक्षकों की शिक्षा किसी भी राष्ट्र एवं समाज के स्वाभाविक विकास के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण कारक हैं। सरकारी तंत्र द्वारा दी जाने वाली अध्यापक शिक्षा की कीमत पर आज निजी संस्थानों की दुकान चल पड़ी है। देश के महत्त्वपूर्ण राज्यों में शुमार बिहार और झारखंड तो इस दृष्टि से लाचार ही हैं। बिहार में जहाँ सिर्फ पटना विश्वविद्यालय में शिक्षा संकाय है, झारखंड के किसी विश्वविद्यालय में आज भी शिक्षा संकाय खोलने की कोशिश तक नहीं हुई है। स्व-वित्त-पोषित योजना के तहत अध्यापक शिक्षा दिए जाने की कोशिश शुभ संकेत नहीं है-समावेशी शिक्षा या समावेशी अध्यापक शिक्षा के लिए। मानव संसाधन से युक्त इस तरह के राज्यों के हर विश्वविद्यालय में शिक्षा-संकाय एवं शिक्षा-विभाग राज्य सरकारों द्वारा खोले जाने की जरूरत है। यदि अध्यापक शिक्षा के स्तर की बात करें तो देश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों के शिक्षा-संकायों या शिक्षा-विभागों द्वारा दी जाने वाली शिक्षा की तुलना निजी शिक्षा महाविद्यालयों से नहीं की जा सकती। दुर्भाग्य से सरकार की शिथिलता के कारण ऐसे संस्थानों की स्थिति भी बिगड़ती जा रही है। अब इस दिशा में सोचना अधिक जरूरी है कि पहले किस मर्ज का उपाय हो-संरचनात्मक विकास का या नामांकन पद्धति का। कहना न होगा कि अपनी बहुत-सी सीमाओं में भी इन विश्वविद्यालयों के बीएड या एमएड पाठ्यक्रम में नामांकन के लिए अपेक्षाकृत एक प्रभावी पद्धति मौजूद है, अत: इनमें सुधार की कोशिश पहले की जानी चाहिए। 

शिक्षक शिक्षा-व्यवस्था का सबसे महत्त्वपूर्ण घटक है, और उसकी प्रभावी शिक्षा का संबंध विकास के सभी पहलुओं से है। शिक्षा का कोई भी दर्शन, शिक्षा की कोई भी संस्तुति, कोई भी शिक्षा-शास्त्री या फिर कोई भी व्यक्ति शिक्षा एवं मानव विकास के लिए शिक्षक से अधिक महत्त्वपूर्ण किसी अन्य को नहीं मानता तो फिर शिक्षक एवं अध्यापक शिक्षा की यह स्थिति क्यों है? क्यों राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 को कहना पड़ रहा है कि अधिक मात्रा में अर्ध-शिक्षकों की नियुक्ति शिक्षकों की पहचान एवं अध्यापन के पेशे के लिए संकट है? पाठ्यचर्या ने यह भी सुझाव दिया है कि अध्यापक शिक्षा को विद्यालयी शिक्षा की आवश्यकता के प्रति अधिक संवेदनशील होने की जरूरत है। 

विद्यालयी शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यर्चया की रूपरेखा (2000) का कहना है, ‘‘पाठ्यचर्या के निर्माण और क्रियान्वयन में शिक्षकों की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। इसलिए विद्यालयी पाठ्यचर्या में निरंतर होने वाले परिवर्त्तन अध्यापक शिक्षा कार्यक्रमों तक आवश्यक रूप से छन कर जाने चाहिए।’ अध्यापक शिक्षा एवं अध्यापक के महत्त्व का विवरण करते हुए कोठारी शिक्षा आयोग ने ठीक ही कहा है कि शिक्षा के स्तर को सीधे रूप में प्रभावित करने वाले सभी तत्वों और राष्ट्रीय विकास में शिक्षक की गुणवत्ता, कार्य-कुशलता एवं चरित्र सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। आयोग ने अध्यापक शिक्षा की उपयोगिता पर बल देते हुए कहा है कि इस कार्यक्रम पर किए जाने वाले खर्च की तुलना में इससे भविष्य में मिलने वाले फायदे बहुत अधिक हैं। नामांकन राष्ट्रीय स्तर की प्रवेश परीक्षा के माध्यम से होने की स्थिति में गुणात्मकता स्वत: बढ़ जाएगी किंतु नामांकन पद्धति के आवश्यक तत्वों पर विमर्श जरूरी है। आम तौर पर विश्वविद्यालयों में सामान्य ज्ञान, आंकिक गणना, शिक्षण अभिक्षमता आदि से संबंधित सामान्य प्रकृति की प्रवेश परीक्षा ली जाती है। इस नामांकन परीक्षा में विषय-वस्तु की परीक्षा नहीं ली जाती। इस वजह से गणित एवं विज्ञान विषयों की तुलना में इतिहास एवं राजनीतिशास्त्र के विद्यार्थी ज्यादा संख्या में उत्तीर्ण हो जाते हैं। देश के सामने यह भी गंभीर प्रश्न है कि हमें किस विषय विशेष के लिए कितने शिक्षकों की जरूरत है? कई विश्वविद्यालय इस प्रकार की सामान्य नामांकन प्रवेश परीक्षा की दृष्टि से अपवाद हो सकते हैं, किन्तु अब जरूरत एक राष्ट्रीय प्रारूप की है। सामान्य पत्र के अतिरिक्त प्रत्येक विद्यार्थी की अपने विषय विशेष से संबंधित परीक्षा भी ली जानी चाहिए। विद्वान से विद्वान व्यक्ति भी संवाद की दृष्टि से कमजोर होने की स्थिति में शिक्षक नहीं हो सकता। इस वजह से साक्षात्कार भी नामांकन पण्राली का एक भाग होना चाहिए। इसमें उत्तीर्ण होना जरूरी भी होना चाहिए। सफल साक्षात्कार से गुजरने वाले विद्यार्थियों की मेधा-सूची उनके सामान्य एवं विषय विशेष के पत्र के अंक के आधार पर बनाई जानी चाहिए। विषयवार आवश्यकता के आलोक में सफल घोषित विद्यार्थियों की नामांकन सूची प्रकाशित की जानी चाहिए। जैसा केंद्र सरकार हर तीन वर्ष पर उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रम में बदलाव के लिए सोच रही है, वैसा ही प्रयास अध्यापक शिक्षा के लिए भी होना चाहिए। राष्ट्रीय पाठ्यचर्या के आधार पर एक राष्ट्रीय स्तर का पाठ्यक्रम बनाया जाना चाहिए। क्षेत्रीय आवश्यकता एवं इनपुट के आलोक में क्षेत्र विशेष का पाठ्यक्रम अंतिम रूप से स्वीकार किया जाए। अध्यापक शिक्षा पाठ्यक्रम पर विद्यालयी एवं महाविद्यालयी शिक्षा का प्रभाव गंभीर है, इन स्तरों की शिक्षा की कमजोरी का भार भी शिक्षक को ही ढोना पड़ता है। अब राष्ट्रीय स्तर की प्रवेश परीक्षा के साथ-साथ राष्ट्रीय स्तर का पाठ्यक्रम भी जरूरी है। शिक्षण व्यवसाय को आकर्षक बनाया जाना जरूरी है ताकि प्रतिभाशाली विद्यार्थी इस पेशे में आ सकें। वस्तुत: अध्यापक शिक्षा का यथोचित विकास नहीं हो सका है और यह अभी भी विद्यालयी शिक्षा और उच्च शिक्षा की तुलना में शैशवास्था में है।


Enter Your E-MAIL for Free Updates :   

Post a Comment

 
Top