बाल श्रम निरोधक कानून की नई नियमावली मनोरंजन की दुनिया को ज्यादा मानवीय बनाएगी।
नई नियमावली का मकसद न बच्चों की प्रतिभा को रोकना है, न कला को। मकसद है कि बच्चों को बच्चा रहने दिया जाए।
टेलीविजन की दुनिया ने वयस्क, अवयस्क तो क्या, बच्चों की भी जीवन शैली बदल
दी है। जब से टीवी की दुनिया ने बच्चों में छिपे कलाकार की खोज करनी शुरू
की है, बच्चों की रात की नींद और दिन का चैन गायब होता जा रहा है। उनकी
ज्यादा दिलचस्पी उन विषयों की तरफ हो गई है, जिनसे टीवी के मुकाबलों में
हिस्सा लिया जा सकता है। ध्यान पढ़ाई से हटकर टीवी आर्टिस्ट बनने में लग
गया है।
बड़ी तादाद में बच्चे टीवी के मुकाबलों में हिस्सा ले रहे हैं, जिनकी ट्रेनिंग और रिहर्सल में उनसे दिन-रात मेहनत करवाई जाती है। कई बच्चों की पढ़ाई तक छूट रही है। असल बात यह है कि टीवी की दुनिया ने उनका बचपन छीनकर उन्हें मजदूर बना दिया है। टेलीविजन के रिएलिटी शो, क्विज शो, प्रतिभा खोज शो, रेडियो मुकाबलों और ड्रामा में हिस्सा लेने वाले कई बच्चों ने अपने इंटरव्यू में यह बात कबूल की है कि उनकी नींद पूरी नहीं होती, उन्हें देर रात तक रिहर्सल करनी पड़ती है, उन्हें घर का खाना खाए हफ्तों हो जाते हैं, उनकी पढ़ाई छूट गई है, वे स्कूल में पूरा समय नहीं दे पाते।
बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं की लंबे समय
से मांग चल रही थी कि फिल्मों और टीवी में बच्चों के काम करने के
नियम-कायदे तय किए जाएं, ताकि बचपन में व्यवसाय का बोझ उनका बचपन न छीन
सके। अजीब बात है कि फिल्मों और टीवी कार्यक्रमों में पशुओं के इस्तेमाल पर
कानून बन गए थे, लेकिन बच्चों के मामले में चुप्पी थी। अच्छी बात यह है कि
2016 में पास किए गए नए बाल श्रम निरोधक कानून की पिछले हफ्ते जारी नई
नियमावली में यह बात जोड़ दी गई है कि बाल कलाकार के तौर पर बच्चे काम कर
सकते हैं, लेकिन दिन में ज्यादा से ज्यादा पांच घंटे और उसमें से भी तीन
घंटे से ज्यादा वे लगातार काम नहीं कर सकते, यानी तीन घंटे के बाद एक ब्रेक
देना होगा। जहां कहीं भी बच्चों से कलाकार के तौर पर काम लिया जा रहा
होगा, प्रोडय़ूसर को पहले मजिस्ट्रेट से अनुमति लेनी होगी। इसके लिए
नियमावली के साथ एक फॉर्म नत्थी किया गया है, जिसे भरकर मजिस्ट्रेट को देना
होगा, इसमें माता-पिता या अभिभावक की सहमति, अनुमति और उस शख्स का नाम
होगा, जो बच्चों की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार होगा। हर पांच बच्चों पर एक
अलग व्यक्ति जिम्मेदार होगा। जिस फिल्म या टीवी प्रोग्राम में बच्चों को
शामिल किया जाएगा, उस प्रोग्राम में यह दिखाना होगा कि प्रोग्राम बनाते समय
बच्चे का किसी तरह का शोषण नहीं किया गया। एक मजिस्ट्रेट से एक क्षेत्र
में प्राप्त अनुमति सिर्फ छह महीने तक मान्य होगी, प्रोडय़ूसर को बच्चे की
बिना बाधा शिक्षा, समय पर भोजन, आराम, नींद, सभी बातों का ध्यान रखना होगा।
बच्चे द्वारा कलाकार के तौर पर कमाए गए पैसे में से कम से कम 20 प्रतिशत
राशि उसके फिक्स्ड अकाउंट में जमा करानी होगी, जो किसी राष्ट्रीयकृत बैंक
में खोला जाएगा। यह राशि वह वयस्क होने बाद ही इस्तेमाल कर सकेगा।
प्रोडय़ूसर की जिम्मेदारी होगी कि जब तक बच्चा उसकी निगरानी में है, वह बच्चे
की शारीरिक और मानसिक सेहत का पूरा ध्यान रखेगा। बच्चों की पढ़ाई न छूटे,
इसके लिए नियमावली में यह विशेष व्यवस्था की गई है कि कोई भी बच्चा लगातार
27 दिन से ज्यादा काम नहीं करेगा। अगर कोई बच्चा बिना अनुमति के 30 दिनों से
ज्यादा स्कूल से गैर-हाजिर रहता है, तो यह स्कूल की जिम्मेदारी होगी कि वह
संबंधित अधिकारी को अवगत करवाए। कई बार मां-बाप किसी लालच या किसी के कहने
पर अपने बच्चे को उसकी इच्छा के खिलाफ इस तरह के आकर्षक कार्यो में धकेलने
की कोशिश करते हैं, जिससे बच्चे का स्वाभाविक विकास रुक जाता है, इसलिए
बाल श्रम रोकने के कानून की इस नियमावली में प्रावधान किया गया है कि किसी
भी बच्चे को उसकी बिना अनुमति और इच्छा के खिलाफ किसी ऑडियो-वीडियो,
मनोरंजन, खेलों, विज्ञापन आदि में काम करने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा।
उम्मीद है कि ये नियम बच्चों के शोषण को रोकने का काम करेंगे। इसका मकसद न
बच्चों की प्रतिभा को रोकना है और न कला को, मकसद है कि बच्चों को बच्चा बने
रहने दिया जाए।
लेखक
अजय सेतिया ,
पूर्व अध्यक्ष,
बाल संरक्षण आयोग, उत्तराखंड
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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