बच्चे छुटटी की घंटी के बाद विद्यालय से ऐसे निकल भागते हैं जैसे जेल से छूटे कैदी।  आखिर क्यों? 


विद्यालय बच्चों के जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। यहाँ वे ज्ञान प्राप्त करते हैं, अपने कौशल को विकसित करते हैं, और नए दोस्त बनाते हैं। लेकिन कुछ बच्चे विद्यालय को जेल जैसा महसूस करने लगते हैं। वे छुट्टी की घंटी के बाद विद्यालय से ऐसे निकल भागते हैं जैसे किसी कैदी को जेल से रिहा किया गया हो। ऐसा क्यों होता है? 



इसके कई कारण हो सकते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख कारण इस प्रकार हैं:


🔴 बच्चों को विद्यालय में कई तरह की बाधाओं का सामना करना पड़ता है। इनमें कठिन पाठ्यक्रम, तनावपूर्ण परीक्षाएं, अनुशासनात्मक नियम, और शिक्षकों के दबाव शामिल हैं। इन बाधाओं से बच्चे ऊब जाते हैं और छुट्टी का समय उनके लिए राहत का समय होता है।

🔴 बच्चे विद्यालय में अपने दोस्तों और परिवार से दूर रहते हैं। छुट्टी का समय उनके लिए अपने प्रियजनों के साथ समय बिताने का मौका होता है।

🔴 बच्चे विद्यालय में अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में स्वतंत्र नहीं होते हैं। छुट्टी का समय उनके लिए अपनी भावनाओं को व्यक्त करने और स्वतंत्र रूप से सोचने का मौका होता है।


इन कारणों के अलावा, कुछ बच्चों के लिए छुट्टी का समय एक अवसर होता है कि वे अपने स्कूल के काम से बच सकें। ऐसे बच्चे अक्सर विद्यालय में ध्यान नहीं देते हैं और छुट्टी के समय अपने काम को पूरा करने की कोशिश करते हैं।


शिक्षाशास्त्रीय दृष्टिकोण से, बच्चों के इस व्यवहार को समझने के लिए निम्नलिखित बातों पर विचार करना आवश्यक है:


🟣 बच्चों के विकास के स्तर को ध्यान में रखना चाहिए। बच्चे अपने विकास के स्तर के अनुसार ही सोच और व्यवहार करते हैं। छुट्टी के समय बच्चे अपनी भावनाओं को अधिक स्वतंत्र रूप से व्यक्त करते हैं।

🟣 विद्यालय की व्यवस्था और शैक्षिक प्रक्रिया को बच्चों के अनुकूल बनाना चाहिए। विद्यालय में ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जो बच्चों के लिए रुचिकर और प्रेरक हो।

🟣 शिक्षकों को बच्चों के साथ एक सकारात्मक संबंध बनाना चाहिए। शिक्षकों का सहयोग और मार्गदर्शन बच्चों को विद्यालय में अधिक सहज महसूस कराता है।



बच्चों के इस व्यवहार को रोकने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं:


🟢 विद्यालय में ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जो बच्चों के लिए प्रेरक हो। विद्यालय में ऐसे विषय और गतिविधियां होनी चाहिए जिनमें बच्चे रुचि रखते हों।

🟢 शिक्षकों को बच्चों के साथ एक सकारात्मक संबंध बनाना चाहिए। शिक्षकों को बच्चों को समझने और उनकी भावनाओं का सम्मान करने की आवश्यकता है।

🟢 बच्चों को अपने विद्यालय के काम के प्रति जिम्मेदार बनाना चाहिए। बच्चों को यह समझाना चाहिए कि विद्यालय का काम उनके लिए महत्वपूर्ण है।

इन उपायों के द्वारा बच्चों के इस व्यवहार को कम किया जा सकता है और उन्हें विद्यालय में अधिक सहज महसूस कराया जा सकता है।



बच्चों को विद्यालय को जेल जैसा महसूस करने से रोकने के लिए, विद्यालयों को बच्चों के विकास के स्तर, उनकी रुचियों, और उनकी भावनाओं को ध्यान में रखना चाहिए। विद्यालयों में ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जो बच्चों के लिए प्रेरक और रुचिकर हो। शिक्षकों को बच्चों के साथ एक सकारात्मक संबंध बनाना चाहिए और उन्हें समझने की कोशिश करनी चाहिए।


✍️  लेखक : प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर


परिचय

बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।

शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।

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