पुरानी पेंशन पर लामबंदी


राज्य विधानसभाओं और लोकसभा चुनाव से ठीक पहले देश में पुरानी पेंशन बहाली के आंदोलन से सरकार पर दबाव तो बना ही है।


पुरानी पेंशन बहाली के लिए लाखों कर्मचारियों ने एक बार फिर दिल्ली के रामलीला मैदान में जोरदार प्रदर्शन किया है। आगामी चुनावों को देखते हुए इस मांग को स्वीकार करने की संभावना बढ़ती जा रही है। उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में भी न्यायिक सेवा के कर्मचारियों को पुरानी पेंशन देने की घोषणा सुनाई दो है, तो पांच राज्यों ने पहले ही पुरानी पेंशन बहाली की घोषणा कर रखी है। 


विगत 10 अगस्त को भी रामलीला मैदान में केंद्रीय कर्मचारियों ने पुरानी पेंशन योजना की बहाली के लिए प्रदर्शन किया था और लगभग 60 कर्मचारी संगठनों ने प्रधानमंत्री को संयुक्त प्रत्यावेदन भेजा था। पूरे देश के कर्मचारियों का दबाव इस समय पुरानी पेंशन बहाली को लेकर है।


सरकार की ओर से नई पेंशन योजना को लाभप्रद बनाने के भी प्रयास हुए हैं। वित्त सचिव की अध्यक्षता मैं एक समिति बनाई गई थी। समिति के सुझावों के अनुसार कुछ सुधार भी किए गए हैं, जिनमें न्यूनतम योगदान में कमी, एनपीएस में शामिल होने के लिए उम्र सीमा 65 से बढ़ाकर 70 करने और वार्षिकी खरीदने हेतु संचित कोष का 40 प्रतिशत उपभोग की सीमा को खत्म करने की बात शामिल है। सरकार का कहना है कि वह नई पेंशन योजना को पुरानी पेंशन की तरह कारगर बनाएगी।


कर्मचारी नेता किसी भी दशा में नई पेंशन योजना को स्वीकार नहीं करना चाहते हैं। उनका कहना है कि अगर सरकार पुरानी पेंशन की तरह ही नई पेंशन योजना से लाभ देना चाहती है, तब भला पुरानी पेंशन योजना को लागू करने से पीछे क्यों हट रही है? जब कुछ राज्यों में पुरानी पेंशन योजना लागू करने का प्रस्ताव पास हो चुका है, तब सरकार को पुरानी पेंशन योजना को बहाल कर देना चाहिए। 


सरकार की ओर से नई पेंशन व्यवस्था के अंतर्गत एक निश्चित आय देने पर फोकस किया जा रहा है, यानी न्यूनतम गारंटी पेंशन की व्यवस्था करने की बात की जा रही है। नई पेंशन योजना में सरकार अपनी भागीदारी को 14 फीसदी से ज्यादा करने के बारे में सोच रही है, मगर कर्मचारी नेताओं को इस पर एतबार नहीं है उनका कहना है कि एक और सरकार अपनी भागीदारी बढ़ाने की बात कर रही है, तो दूसरी ओर सरकारी खजाने पर कोई अतिरिक्त बोझ नहीं डालना चाहती है।


देखा जाए, तो उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे दो बड़े राज्यों का निर्णय ही पुरानी पेंशन बहाली की राह में रोड़ा है। मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव करीब होने के कारण वहां की सरकार पर इस मांग को लेकर ज्यादा दबाव है। पेंशन का मामला सरकारी कर्मचारियों के बुढ़ापे की सुरक्षा से जुड़ा है। दक्षिण भारत के अधिकांश राज्यों में पुरानी पेंशन के प्रति आम राय बन जाने के कारण उत्तर भारत के मुख्य हिंदी प्रदेशों में इस मांग को स्वीकार करने का दबाव बढ़ा है।


सेवानिवृत्त कर्मचारियों की चिंताएं अपनी जगह हैं, तो सरकार को सरकारी खजाने पर बढ़ता व्यय चिंता का कारण बन रहा है। एक ओर बढ़ती महंगाई और स्वास्थ्य की चिंता रिटायर्ड कर्मचारियों को चिंतित कर रही है, तो दूसरी तरफ बढ़ता राजकोषीय घाटा चिंता का कारण है कुछ अर्थशास्त्रियों का मानना है कि पेंशन की राशि बाजार की तरलता को बढ़ाती है और इससे बाजार को गति मिलती है। इसके सहारे सरकार अतिरिक्त व्यय उठाने का जोखिम ले सकती है।


नई पेंशन योजना में अंतिम आहरित वेतन का 50 प्रतिशन पेंशन गारंटी न होना तथा इलाज व्यय और महंगाई भत्ते की सुविधा का अभाव पुरानी पेंशन योजना के मुकाबले अस्वीकार्य बना रही है। यही कारण है कि एक करोड़ से अधिक कर्मचारियों और उनके आश्रितों ने अपने हस्ताक्षर युक्त एक ज्ञापन राष्ट्रपति महोदया को प्रेषित किया था।


देश के चार सौ से अधिक कर्मचारी संगठन पुरानी पेंशन को बहाल करने की मांग को लेकर विगत कई वर्षों से संघर्ष कर रहे हैं। सेना के रिटायर्ड कर्मचारियों का भी उन्हें समर्थन हासिल है। विभिन्न राज्य विधानसभाओं और लोकसभा के चुनाव से ठीक पहले पूरे देश में जिस तरह से पुरानी पेंशन की मांग को लेकर लामबंदी देखी जा रही है, वैसे में, सरकार पर कर्मचारियों की मांग को स्वीकार करने और उन्हें पुरानी पेंशन तोहफा देने का दबाव दिखाई दे रहा है।


✍️ सुभाष चंद्र कुशवाहा

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