यह विचारणीय है कि क्या वास्तव मे मूल्यांकन सिर्फ़ बच्चों का ही होता है ? आप और हम अपने दिन याद करें। आप को सिर्फ़ एक-दो शिक्षक ही क्यों पसंद आते थे और उन शिक्षकों द्वारा पढाये गए विषयों मे आप अव्वल आते थे,  परन्तु अन्य विषयों मे उतने अच्छे नहीं थे। इससे कम से कम यह तो पता चलता है कि कमजोर आप नहीं थे। 

परन्तु कहीं न कंही गडबडी तो हुई पर कंहाँ ? कैसे? क्या दोष शिक्षक मे था या शिक्षक द्वारा अपनाई गई शिक्षण पद्दति का या मूल्यांकन करने वाली विधि का या कँही और?

यह गंभीर तथा विस्तृत विश्लेषण ही निर्णय देने का आधार बन जाएगा कि वास्तव मे बच्चा कितना सीख पाया। अगर कम सीखा तो क्यों और पूरा सीख गया तो कैसे?



शिक्षण मूल्यांकन

बच्चे का मूल्यांकन करते,
शिक्षक भी होते मूल्यांकन के अधीन।
किसी विषय में भिन्नता,
करते हम निष्कर्ष भिन्न।

क्या बच्चे में कमी है,
या हमारी शिक्षण पद्धति।
क्या मूल्यांकन विधि सही है,
या हम करते हैं भेदभाव।

गहराई से विश्लेषण करें,
निष्कर्ष निकालें सही।
बच्चे का सीखने का स्तर,
हो पाएगा स्पष्ट।

अगर बच्चे ने कम सीखा,
तो कारण खोजें हम।
शिक्षक, शिक्षण पद्धति,
या मूल्यांकन विधि।

सही कारण जानकर,
बच्चे को दें सही मार्गदर्शन।
ताकि वो आगे बढ़ सके,
और सफलता पाए जीवन में।


कविता में यह कहा गया है कि शिक्षण मूल्यांकन एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें केवल बच्चे ही नहीं, बल्कि शिक्षक भी मूल्यांकन के अधीन होते हैं। शिक्षक को यह ध्यान रखना चाहिए कि बच्चे के कम अंक सिर्फ़ उसके कमजोर होने का संकेत नहीं हो सकते हैं, बल्कि शिक्षक की शिक्षण पद्धति या मूल्यांकन विधि में भी कमी हो सकती है। 

इसलिए, शिक्षण मूल्यांकन के लिए एक गंभीर और विस्तृत विश्लेषण करना आवश्यक है। इससे बच्चे के वास्तविक सीखने का स्तर पता चलता है और उसे आगे बढ़ने में मदद मिलती है।



✍️  लेखक : प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर


परिचय

बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।

शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।

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