फेसबुक और व्हाट्सएप पर ऐसा कथन अक्सर देखने को मिलता है कि

"शिक्षक को उसकी छड़ी लौटा दीजिए और शिक्षक देश में अनुशासन लौटा देगा" 


यह एक ऐसा विचार है जो अक्सर सुनने को मिलता है। इस विचार के पीछे यह मान्यता है कि शारीरिक दंड के माध्यम से अनुशासन बनाए रखा जा सकता है। हालांकि, आज के समय में इस विचार का समर्थन करने के लिए कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।


यह विचार एक नीतिवचन जैसा है जो यह बताता है कि अनुशासन बनाए रखने के लिए शारीरिक दंड एक प्रभावी तरीका है। इस विचार के समर्थन में यह तर्क दिया जाता है कि शारीरिक दंड से बच्चे डर जाते हैं और अनुचित व्यवहार करने से बचते हैं। इससे कक्षा में अनुशासन बनाए रखने में मदद मिलती है।


आज के समय में शिक्षाशास्त्रीय दृष्टिकोण से यह विचार कई कारणों से अमान्य है। सबसे पहले, शारीरिक दंड एक क्रूर और असमान तरीका है। यह उन बच्चों पर असमान रूप से लागू किया जा सकता है जो कमजोर या गरीब हैं। दूसरा, शारीरिक दंड बच्चों को डराता है और उनमें आघात पैदा कर सकता है। इससे उनके आत्म-सम्मान और आत्मविश्वास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। तीसरा, शारीरिक दंड बच्चों को अनुचित व्यवहार के कारणों को समझने में मदद नहीं करता है। इससे उन्हें यह सीखने में मदद नहीं मिलती है। 


शिक्षाशास्त्र के अनुसार, अनुशासन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें बच्चों को सामाजिक नियमों और मानदंडों का पालन करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। यह एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें बच्चों के व्यवहार को समझना, उनके साथ संवाद करना और उन्हें सकारात्मक रूप से प्रेरित करना शामिल है। शारीरिक दंड इस प्रक्रिया का एक हिस्सा नहीं है।


शारीरिक दंड के कई नुकसान हैं। यह बच्चों को डराता है, उनके आत्म-सम्मान को कम करता है, और उन्हें हिंसा के लिए प्रेरित कर सकता है। इसके अलावा, शारीरिक दंड अनुशासन की एक प्रभावी विधि नहीं है। यह केवल अल्पकालिक परिणाम देता है, और बच्चों के व्यवहार में कोई दीर्घकालिक परिवर्तन नहीं करता है।


आज के समय में, अनुशासन बनाए रखने के लिए कई प्रभावी तरीके हैं। इनमें शामिल हैं:


स्पष्ट नियम और अपेक्षाएं निर्धारित करना: बच्चों को यह जानना चाहिए कि उनसे क्या उम्मीद की जाती है।

नियमों का पालन करने के लिए सकारात्मक सुदृढीकरण का उपयोग करना: बच्चों को सकारात्मक व्यवहार के लिए पुरस्कृत किया जाना चाहिए।

नकारात्मक व्यवहार को धीरे-धीरे कम करना: नकारात्मक व्यवहार के लिए दंड का उपयोग किया जाना चाहिए, लेकिन इसे हटाने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए।


शिक्षाविदों का मानना ​​है कि इन तरीकों से अनुशासन बनाए रखा जा सकता है जो बच्चों के विकास और सीखने के लिए हानिकारक नहीं है।

कुल मिलाकर शिक्षाशास्त्रीय दृष्टिकोण से, शारीरिक दंड एक अप्रभावी और हानिकारक तरीका है अनुशासन बनाए रखने का। शारीरिक दंड बच्चों को आक्रामकता, चिंता और अवसाद के लिए जोखिम में डाल सकता है। यह बच्चों के आत्म-सम्मान को भी कम कर सकता है।


आज के समय में, शिक्षकों को अनुशासन बनाए रखने के लिए शारीरिक दंड का उपयोग करने की आवश्यकता नहीं है। उन्हें अनुशासन के अधिक प्रभावी और मानवीय तरीकों को सीखने और अपनाने पर ध्यान देना चाहिए।


✍️  लेखक : प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर


परिचय

बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।

शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।

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