उत्तर प्रदेश में मिड डे मील रसोइयों के लिए मानदेय बढ़ोत्तरी की मांग पर विश्लेषण



उत्तर प्रदेश में मिड डे मील योजना के तहत कार्यरत रसोइयों की संख्या लगभग पौने 4 लाख है। इन्हें साल में मात्र 10 महीने का मानदेय दिया जाता है, जिसकी राशि मात्र 2000 रुपये प्रति माह है। यह मानदेय इतना कम है कि इससे रसोइयों के परिवार का भरण-पोषण करना मुश्किल हो जाता है।


रसोइयों का काम काफी कठिन होता है। उन्हें सुबह जल्दी उठकर स्कूल पहुंचना होता है और स्कूल के बच्चों के लिए भोजन बनाना होता है। उन्हें अक्सर छुट्टी नहीं मिलती है, भले ही कोई त्योहार हो या कोई अन्य अवसर। उन्हें बिना किसी अतिरिक्त भुगतान के स्कूल की साफ-सफाई भी करनी पड़ती है।


रसोइयों की इस कठिन मेहनत और योगदान को देखते हुए उन्हें उचित पारिश्रमिक मिलना चाहिए। उन्हें साल में 12 महीने मानदेय दिया जाना चाहिए और मानदेय की राशि भी बढ़ाई जानी चाहिए।


रसोइयों की मांग है कि उन्हें न्यूनतम वेतन 10000 रुपये प्रति माह दिया जाए। यह राशि उन्हें अपने परिवार का भरण-पोषण करने में सक्षम बनाएगी।

रसोइयों की मांग को लेकर सरकार से निम्नलिखित मांगें की जा सकती हैं:

🔴 रसोइयों को साल में 12 महीने मानदेय दिया जाए।
🔴 मानदेय की राशि को बढ़ाकर न्यूनतम 10000 रुपये प्रति माह किया जाए।
🔴 रसोइयों को छुट्टी का अधिकार दिया जाए।
🔴 रसोइयों को साफ-सफाई के लिए अतिरिक्त भुगतान दिया जाए।


इन मांगों को पूरा करने से रसोइयों को आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा मिलेगी और वे अपने परिवार का भरण-पोषण करने में सक्षम हो सकेंगे।


रसोइयों की मांगों के समर्थन में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं:

🟣 रसोइयों का काम काफी कठिन और महत्वपूर्ण है। वे स्कूल के बच्चों के लिए भोजन तैयार करते हैं, जो उनके स्वास्थ्य और विकास के लिए आवश्यक है।
🟣 रसोइयों को अक्सर छुट्टी नहीं मिलती है। वे अक्सर त्योहारों और अन्य अवसरों पर भी काम करते हैं।
🟣 रसोइयों को बिना किसी अतिरिक्त भुगतान के स्कूल की साफ-सफाई भी करनी होती है।


रसोइयों की मांगों को पूरा करने से निम्नलिखित लाभ होंगे:

🟢 रसोइयों को आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा मिलेगी।
रसोइयों का मनोबल बढ़ेगा और वे अपना काम बेहतर तरीके से कर सकेंगे।
🟢 रसोइयों के परिवार का भरण-पोषण करने में आसानी होगी।


उत्तर प्रदेश सरकार को रसोइयों की मांगों पर विचार करना चाहिए और उन्हें उचित पारिश्रमिक देने के लिए कदम उठाने चाहिए। यह रसोइयों के साथ न्याय होगा और उनकी मेहनत को भी सम्मान मिलेगा।


यहां कुछ अतिरिक्त तर्क दिए गए हैं जो रसोइयों की मांगों को मजबूत करते हैं:

🟤 मिड डे मील योजना एक महत्वपूर्ण सामाजिक कार्यक्रम है जो स्कूली बच्चों को पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराती है। रसोइयों की मेहनत के बिना यह योजना सफल नहीं हो सकती।
🟤 रसोइयों का काम काफी जिम्मेदारी वाला होता है। उन्हें भोजन की गुणवत्ता और स्वच्छता का ध्यान रखना होता है।
🟤 रसोइयों को अक्सर गरीबी और भेदभाव का सामना करना पड़ता है। उन्हें उचित पारिश्रमिक देकर उनकी सामाजिक स्थिति में सुधार किया जा सकता है।

उत्तर प्रदेश सरकार को रसोइयों की मांगों को गंभीरता से लेना चाहिए और उन्हें उचित पारिश्रमिक देने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए।


रसोइयों की मांग को समर्थन देने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं:

⚫ रसोइयों की मांग को लेकर सोशल मीडिया पर अभियान चलाया जाए।
⚫ रसोइयों की मांग को लेकर सरकार और जनप्रतिनिधियों से संपर्क किया जाए।
⚫ रसोइयों के लिए समर्थन रैली और प्रदर्शन किए जाएं।


रसोइयों की मांग एक महत्वपूर्ण मांग है। यह मांग न केवल रसोइयों के लिए, बल्कि बच्चों के लिए भी महत्वपूर्ण है। बच्चों के लिए पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराने में रसोइयों की महत्वपूर्ण भूमिका है। उन्हें उचित पारिश्रमिक देकर उनकी मेहनत और योगदान को सम्मानित किया जाना चाहिए।



✍️  विचारक : प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर


परिचय

बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।

शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।

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